बीएस बातचीत
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का ध्यान बॉन्ड बाजार में प्रतिफल के रुझान पर है और केवल 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर ही यह केंद्रित नहीं है। हालांकि 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल का दूसरी दरों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि इसी कारण इस अवधि के बॉन्ड कारोबार में केंद्रीय बैंक को अधिक हस्तक्षेप करना पड़ता है। अनूप रॉय और विशाल छाबडिय़ा को दिए साक्षात्कार में दास ने कहा कि भारत की मौद्रिक नीति घरेलू परिस्थितियों पर केंद्रित रहेगी और इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाएगा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को लेकर क्या रुख अपनाता है। दास ने कहा कि आरबीआई के पास 609 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार उपलब्ध है इसलिए मुद्रा में आने वाले उतार-चढ़ाव से आसानी से निपटा जा सकता है। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के संपादित अंश:
आपने कहा था कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का असर पहली तिमाही तक ही सीमित रहेगा, लेकिन वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) के अनुसार कारोबारी उत्साह कमजोर पड़ गया है और रोजगार, वेतन एवं उत्पादकता आदि मोर्चों पर तत्काल सुधार की उम्मीद नहीं है।
पिछले वर्ष की चौथी तिमाही में आर्थिक गतिविधियां सुधर गई थीं और दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था सुस्ती से बाहर निकल गई थी और वृद्धि दर तेज हो गई थी। इसके बाद दूसरी लहर आ गई है जो मई में चरम पर पहुंच गई। हरेक महीने आने वाले आर्थिक संकेतकों पर गौर करें तो इनमें कुछ में सुधार के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। उदाहरण के लिए माल भाड़े, जीएसटी ई-वे बिल, आयात एवं निर्यात, बिजली उपभोग, भुगतान एवं निपटान प्रणाली में लेनदेन आदि में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। दूसरी लहर में लॉकडाउन सीमित स्तर पर था, इसलिए विनिर्माण सहित आर्थिक गतिविधियों में कोई बाधा नहीं आई। व्यावसायिक स्तर पर कोविड-19 से जुड़ी सावधानियों के साथ गतिविधियां जारी हैं और लोग भी काम-काज के लिए घरों से निकलने लगे हैं। इन बातों के मद्देनजर हमें लगता है कि दूसरी लहर का असर पीछे रह गया है। जुलाई में आर्थिक गतिविधियों में और सुधार आने की उम्मीद है। देश में कोविड-19 से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान तेज हो रहा है और आर्थिक स्थिति सुधर रही है। इन सकारात्मक बातों को ध्यान में रखते हुए हमने अनुमान जारी किया था। हमारा मानना है कि 9.5 प्रतिशत आर्थिक विकास दर का लक्ष्य बिल्कुल हासिल किया जा सकता है।
उपलब्ध आंकड़े संगठित अर्थव्यवस्था के होंगे। देश के असंगठित क्षेत्र के प्रदर्शन को कैसे आंकते हैं जहां कोविड-19 का भीषण असर हुआ है?
पिछले वर्ष ग्रामीण क्षेत्र में कृषि उत्पादन शानदार रहा था और इस वर्ष भी मॉनसून सामान्य रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। उत्पादन में इजाफा और अच्छी वर्षा दोनों से ग्रामीण क्षेत्र को खासी मदद मिलती है और भविष्य में इससे इस क्षेत्र में मांग और आय में वृद्धि होनी चाहिए। देश में असंगठित क्षेत्र से आंकड़े जुटाने के लिए हम आंतरिक स्तर पर समीक्षा एवं सर्वेक्षण करते हैं। आरबीआई ने सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए ऋण पुनगर्ठन की दूसरे चरण की घोषणा की थी। बैंकों एवं सूक्ष्म वित्त संस्थानों के जरिये हमने एमएसएमई के लिए नकदी समर्थन भी देने का बंदोबस्त किया है।
एफएसआर में कहा गया है कि नियामकीय स्तर पर उदारवादी एवं लचीला रुख थमने के बाद बैंकों के बहीखाते की वास्तविकता सामने आएगी। हालांकि इस वर्ष गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के संदर्भ में इस वर्ष के लिए आपका अनुमान अधिक चिंता पैदा करने वाला नहीं है…
जनवरी में जब एफएसआर जारी हुई थी तब भी केंद्रीय बैंक का रुख उदार था। पिछले वर्ष कर्ज की किस्तों के भुगतान से छह महीने की राहत समाप्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने ऋण वर्गीकरण पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी थी और दूसरी तरफ ऋण पुनगर्ठन योजना के क्रियान्वयन पर काम चल ही रहा था। इस वजह से परिसंपत्ति गुणवत्ता की पहचान की कवायद थम गई थी। लिहाजा एफएसआर में दिसंबर 2019 के आंकड़ों को आधार बनाया गया था जिन पर कोविड महामारी का असर नहीं था। जुलाई 2021 की एफएसआर में फंसे ऋणों को लेकर तस्वीर अधिक साफ थी। इस वजह से 31 मार्च 2021 के आंकड़े अधिक वास्तविक और तथ्य परख हैं। महामारी की दूसरी लहर का असर आने वाले महीनों में दिखेगा।
हालांकि मैं यह भी कहूंगा कि देश के बैंक पहले के मुकाबले किसी प्रतिकूल स्थिति से निपटने के लिए अब अधिक सशक्त हैं। इस समय सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (जीएनपीए) 7.5 प्रतिशत है। प्रॉजिवन-कन्वर्जन अनुपात करीब 69 प्रतिशत है और पूंजी पर्याप्तता अनुपात करीब 16 प्रतिशत है। इस लिहाज से बैंक अब बेहतर स्थिति में हैं। हालांकि इससे बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बैंकों की पूंजी बढ़ाने और इन पर नजर रखने की जरूरत है।
अगर फंसे ऋण में अचानक वृद्धि हुई तो क्या आरबीआई नियामकीय स्तर पर बैंकों की मदद के लिए आगे आएगा?
भविष्य में हम क्या करेंगे मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा लेकिन इतना जरूर साफ करना चाहूंगा कि एक संस्थान के तौर पर आरबीआई परिसंपत्ति गुणवत्ता की पहचान में देरी नहीं करेगा और न ही वह प्रक्रिया टालेगा। परिसंपत्ति गुणवत्ता की पहचान समय रहते करना और आवश्चक सुधार करना सदैव अच्छा माना जाता है।
आरबीआई ने फिलहाल महंगाई से इतर ध्यान देने का निर्णय लिया है, लेकिन महंगाई लगातार बढ़ रही है और वास्तविक ब्याज दर शून्य से नीचे जा चुकी है। क्या यह चिंता की बात नहीं है?
कोविड महामारी से पहले उपभोक्ता सूचकांक आधारित महंगाई 4 प्रतिशत के इर्द-गिर्द घूम रही थी। हम उस उपलब्धि को बरकरार रखना चाहेंगे। महंगाई स्थिर रहती है तो निवेशकों, कारोबार और हरेक व्यक्ति के लिए अनिश्चितता कम हो जाती है और इसका सीधा असर वृद्धि दर में तेजी के रूप में दिखता है। हालांकि इसके बाद कोविड महामारी से उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों का असर दिखना शुरू हो गया। अमूमन केंद्रीय बैंक महंगाई 2 से 6 प्रतिशत के दायरे में रखने पर ध्यान केंद्रित करता है और मौद्रिक नीति समिति ने भी उपभोक्ता सूचकांक आधारित महंगाई इसी दायरे में रखने पर जोर दिया। दूसरी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों में कुछ ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं जिसके बाद महंगाई पर अधिक चर्चा होने लगी है। हालांकि महंगाई में इस समय हो रहा इजाफा अस्थायी है जो कुछ दिनों बाद नहीं दिखेगी। महंगाई दरों में मौजूदा तेजी अस्थायी है और मुख्यत: आपूर्ति पक्ष से जुड़े कारणों से दिख रही है। तीसरी तिमाही में महंगाई में कमी आने की उम्मीद है। हम महंगाई दर और इसमें तेजी पर नजर रख रहे हैं। मौद्रिक नीति स्तर पर समर्थन जल्दबाजी में वापस लेने से आर्थिक गतिविधियों में सुधार पर असर होगा। इन बातों को ध्यान में रखते हुए आरबीआई सतर्कता बरतेगा। बदलती परिस्थितियों के अनुरूप एमपीसी उपयुक्त निर्णय लेगी।
आरबीआई अब अनुमान व्यक्त करने में समय सीमा का जिक्र नहीं कर हालात पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसकी क्या वजह है?
जैसा मैंने कहा है कि जल्दबाजी में रुख कड़ा करने से सुधार पर असर होगा। वर्ष 2020 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधरित महंगाई जुलाई-अगस्त में 6 प्रतिशत से अधिक हो गई थी और सितंबर-अक्टूबर में यह 7 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। हालांकि एमपीसी को लगा कि महंगाई दिसंबर और जनवरी में नीचे आए जाएगी। लिहाजा उसने इस सोच के साथ उदारवादी रवैया जारी रखा कि महंगाई में तेजी अस्थायी ही रहेगी। दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच महंगाई कम होकर 4 प्रतिशत से कुछ अधिक रह गई। महंगाई दरों पर हमारी नजर है और अब हमारा मानना है कि हालात आधारित अनुमान मौजूदा संदर्भ में अधिक कारगर और उपयुक्त हैं।
क्या आप बाजार में उम्मीदें नहीं जगा रहे हैं? बॉन्ड बाजार इस बात को लेकर आश्वस्त लगता है कि मुद्रास्फीति के मोर्चे पर चाहे जो भी हो, बॉन्ड का प्रतिफल स्थिर बना रहेगा।
हम मुद्रास्फीति एवं वृद्धि को लेकर बहुत सजग हैं। अर्थव्यवस्था के समक्ष मुख्य चुनौती आर्थिक गतिविधियों की बहाली एवं वृद्धि है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्ष 2020-21 में जीडीपी में 7.3 फीसदी का भारी संकुचन देखा गया था। मौजूदा साल में आर्थिक वृद्धि के 9.5 फीसदी रहने का आधार वही है। अर्थव्यवस्था को महामारी से पहले के वृद्धि स्तर पर फिर से पहुंचने एवं उससे आगे निकलने की जरूरत है। हम इस बात को लेकर बेहद सजग एवं संवेदनशील हैं कि मौद्रिक नीति के नजरिये में जल्दबाजी में किया गया बदलाव आर्थिक बहाली पर गंभीर दुष्परिणाम डाल सकता है। हम मुद्रास्फीति अनुमानों को उदार दायरे के भीतर और मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति लक्ष्य के नजदीक भी रखना चाहते हैं। मुद्रास्फीति में आया मौजूदा मोड़ भी काफी हद तक आपूर्ति से जुड़े मसलों से प्रभावित है। अंतरराष्ट्रीय जिंस एवं कच्चे तेल के दाम भी बढ़े हैं। सरकार ने पिछले हफ्तों में आपूर्ति सुधारने से संबंधित कुछ कदम उठाए हैं। हम केंद्र एवं राज्य सरकारों से करों के मामले में कुछ अन्य कदमों की भी उम्मीद कर रहे हैं।
क्या आरबीआई की नीति सरकार के व्यापक उधारी कार्यक्रम की बंधक बनी हुई है?
यह सही है कि केंद्र एवं राज्यों दोनों के स्तर पर बड़े पैमाने पर उधार लिया जाता है। महामारी ने पिछले वित्त वर्ष में सरकार के राजस्व पर गहरी चोट की थी। हालांकि इस साल हालात बेहतर लग रहे हैं। लेकिन खर्च के मोर्चे पर भी सरकार पर अधिक खर्च करने का दबाव है। इस सबका नतीजा यह हुआ है कि केंद्र एवं राज्य दोनों को ही अधिक उधारी जुटानी पड़ी है। सरकार के कर्ज प्रबंधक के तौर पर आरबीआई उधारी कार्यक्रम का गैर-नुकसानदायक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए लागत को यथासंभव निम्नतम रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए आरबीआई अपनी तरफ से तमाम तरीकों का इस्तेमाल जारी रखेगा।
दिलचस्प बात है कि पिछले एक साल में आरबीआई के कर्ज प्रबंधन कार्य से असल में बेहतर मौद्रिक नीति हस्तांतरण में खासी मदद मिली है। आरबीआई ने अपने स्तर पर जी-सैप एवं टीएल-ट्रो जैसे कई परंपरागत, गैर-पारंपरिक एवं नए तरह के कदम उठाने के साथ सम्यक संचार एवं संकेतों के माध्यम से सरकार की उधारी लागत को पिछले 16 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर ला दिया है। सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) के प्रतिफल निजी क्षेत्र की उधारी में एक बेंचमार्क के तौर पर काम करते हैं। कंपनियां एवं कारोबार कॉर्पोरेट बॉन्ड के जरिये सस्ते फंड जुटाने में सफल रहे। इससे उन्हें समुचित तरलता बनाए रखने और कर्ज चुकाने में मदद मिली। महामारी के दौरान आरबीआई की ऋण प्रबंधन कवायद ने बेहतर ब्याज दरों को सुनिश्चित किया है। कर्ज प्रबंधक के तौर पर आरबीआई के सभी परंपरागत एवं गैर-परंपरागत कार्य मूलत: उसी दिशा में रहे हैं।
आपने बाजार से 10 वर्ष के ज्यादातर बॉन्ड क्यों खरीदे?
असल में 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड का बॉन्ड प्रतिफल वक्र पर कहीं बड़ा असर पड़ता है। हमारा ध्यान समूचे परिपक्वता वक्र पर है। अगर आप हमारी जी-सैप घोषणा पर गौर करें तो पाएंगे कि हमारा निशाना 6-12 साल की परिपक्वता वाली प्रतिभूतियों पर है।
आपने इतना बड़ा भंडार क्यों जमा किया है? क्या अस्थिरता से निपटने के लिए ऐसा किया गया है? या आप एक स्थायी अधिशेष भंडार बनाने में जुटे हुए हैं?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी प्रवाह में अस्थिरता का तत्त्व रहता ही है। खासकर मौजूदा संदर्भ में जब सभी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने बेहद उदार मौद्रिक नीतियां अपनाई हुई हैं, तब स्वाभाविक रूप से हमारे इर्दगिर्द खूब तरलता नजर आती है। लेकिन पूंजी प्रवाह में काफी अस्थिरता भी होती है। ऐसे में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपना बफर तैयार करना है। विदेशी मुद्रा का मजबूत भंडार होना वैश्विक हालात से निपटने के लिहाज से सबसे सुरक्षित घेरा है। यह विनिमय दर को स्थिरता देने में भी अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा देश से पूंजी बाहर निकलने जैसी स्थिति से निपटने की क्षमता को लेकर बाजार के संदेह दूर होते हैं। आज 609 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ भारत काफी बेहतर स्थिति में है। यह 15 महीनों के अनुमानित आयात को कवर करता है। यह हमारे कुल बाह्य ऋण से भी अधिक है।