वर्ष 2014-15 के बाद से फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स इक्जामिनेशन (एफएमजीई) में बैठने वाले छात्रों की संख्या तीन गुना से अधिक बढ़ गई है। यूक्रेन के भारतीय मेडिकल छात्रों ने एफएमजीई में राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है। यह विदेश से डिग्री पाने वाले मेडिकल के छात्रों के लिए एक ऐसी जांच परीक्षा है जिसे उन्हें यहां मेडिकल प्रैक्टिस करने से पहले पास करना ही पड़ता है। वर्ष 2014-15 में, भारत में 404 मेडिकल कॉलेज थे जो हर साल 54,358 एमबीबीएस सीटों की पेशकश करते थे। सरकार ने दिसंबर में संसद को सूचना दी थी कि 2014-15 के बाद से मेडिकल कॉलेजों की संख्या 1.5 गुना बढ़कर 596 हो गई थी और मेडिकल सीटों की संख्या 1.6 गुना बढ़कर 88,120 हो गई है। हालांकि, मेडिकल की पढ़ाई की मांग सीट की आपूर्ति से अधिक है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि एफएमजीई में बैठने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है और इसमें 3.3 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
वर्ष 2021-22 में इस परीक्षा में 41,000 से अधिक छात्र बैठे (इसमें दोबारा बैठने वाले छात्रों को फिर से शामिल किया जा सकता है) जबकि 2014-15 में केवल 12,000 छात्र इस परीक्षा में शामिल हुए थे। यह परीक्षा साल में दो बार जून और दिसंबर में आयोजित की जाती है। इस साल 24 प्रतिशत से अधिक ने एफएमजीई परीक्षा पास की है। इस प्रकार देश में इतनी तादाद में लोग मेडिकल की प्रैक्टिस के लिए अर्हता हासिल कर चुके हैं। यह पिछले कुछ वर्षों में सुधार था।
एफएमजीई के लिए बैठने वाले छात्रों के लिए देश के आधार पर वर्गीकरण 2018-19 के बाद से उपलब्ध नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड ने पिछले तीन वर्षों से अपनी सालाना रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है। लेकिन विश्लेषण से पता चलता है कि 2018-19 में परीक्षा के लिए उपस्थित होने वालों में चार देशों के छात्रों की हिस्सेदारी 73.7 प्रतिशत थी। चीन के मेडिकल छात्रों की हिस्सेदारी 36.7 प्रतिशत, रूस के छात्रों की 16.5 प्रतिशत, यूक्रेन के छात्रों की 12.9 प्रतिशत और नेपाल के छात्रों की हिस्सेदारी 7.6 प्रतिशत थी। चीन के कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले और एफएमजीई में बैठने वाले भारतीय छात्रों का प्रतिशत 2015-16 और 2018-19 के बीच 29.2 प्रतिशत से बढ़कर 36.7 प्रतिशत हो गया। यह उन लोगों के लिए स्थिर रहा जिन्होंने यूक्रेन में पढ़ाई की थी जबकि रूस और नेपाल से मेडिकल डिग्री हासिल करने वालों की संख्या इस परीक्षा में घट गई।
परीक्षा में बैठने वालों की तुलना में परीक्षा पास करने वालों की तादाद सभी देशों के मेडिकल छात्रों के लिहाज से बढ़ी। मसलन यूक्रेन और नेपाल ने 14.1 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया। इसके विपरीत, चीन और रूस के मेडिकल कॉलेजों के छात्र चार साल के राष्ट्रीय औसत से नीचे थे।
हालांकि वर्ष 2015-16 और 2018-19 के बीच परीक्षा में बैठने वाले छात्रों में से बांग्लादेश, जॉर्जिया और फिलिपींस के केवल 7 प्रतिशत छात्र ही थे जिनका प्रदर्शन बहुत बेहतर था और इन देशों के क्रमश: 27.1 प्रतिशत, 20.7 और 25.8 प्रतिशत छात्रों ने परीक्षा पास की।