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Business Standard Manthan 2024: चीन की राह पर चलने के बजाय सेवा के जरिये दबदबा बनाए भारत

Business Standard Manthan 2024: लांबा ने कहा कि देश जो भी रास्ता चुने, सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर मानव पूंजी को बेहतर बनाने की जरूरत है।

Last Updated- March 27, 2024 | 10:43 PM IST
चीन की राह पर चलने के बजाय सेवा के जरिये दबदबा बनाए भारत, Business Standard Manthan 2024: Instead of following China's path, India should dominate through service

Business Standard Manthan 2024: भारत को साल 2047 तक विकसित बनाने के लक्ष्य को देखते हुए अर्थशास्त्री रोहित लांबा ने नीति निर्माताओं से कहा कि भारत को आर्थिक विस्तार के लिए चीन और पूर्वी एशिया के देशों की तर्ज पर कम कौशल वाले विनिर्माण की नीति को अपनाने के बजाय सेवाओं पर आधारित वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

‘बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन’ कार्यक्रम में लांबा ने कहा कि देश जो भी रास्ता चुने, सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर मानव पूंजी को बेहतर बनाने की जरूरत है, जिससे उद्योगों को उत्पादक श्रमिक मिल सकें।

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ ‘ब्रेकिंग द माेल्ड : रीइमेजिंग इंडियाज इकोनॉमिक फ्यूचर’ नामक पुस्तक लिख चुके लांबा इस बात से सहमत नहीं हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से बढ़ रही है। उनका मानना है कि आर्थिक वृद्धि करीब 6 से 6.5 फीसदी है, जो भारत की दीर्घावधि क्षमता भी है।

उन्होंने भारत में आर्थिक तरक्की को लेकर हो रहे प्रचार के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने चेताया, ‘मुझे चिंता है कि एक तरह की आत्मसंतु​ष्टि का माहौल बन रहा है। मुझे दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था 6 या शायद 6.5 फीसदी की दर से बढ़ रही है। यह पर्याप्त नहीं है। अगर हम तथाकथित ‘के’ आकार की रिकवरी के मसले पर ध्यान नहीं देते हैं तो भी यह टिकाऊ नहीं है।’

पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर लांबा ने कहा कि वह कम कौशल वाले विनिर्माण के खिलाफ नहीं हैं, लेकन उस औद्योगिक नीति के खिलाफ हैं, जिसमें सिर्फ इस रणनीति पर ध्यान दिया जा रहा है।

अपनी पुस्तक के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम सोच को इस फार्मूलाबद्ध मॉडल से दूर ले जाना चाहते हैं कि यह (कम कौशल वाला विनिर्माण) ही एकमात्र रास्ता है। हम नहीं कह रहे कि यह राह नहीं है, लेकिन यह एकमात्र रास्ता नहीं है, जिससे भारत की वृद्धि हो सकती है। विचार यह था कि इस सोच में थोड़ा बदलाव किया जाए।’ उन्होंने कहा कि इस समय भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी करीब 2,500 डॉलर है, जब कि चीन की 13,000 डॉलर और कोरिया की करीब 35,000 डॉलर है।

लांबा ने कहा, ‘अगर हम पिछले 30 साल से हम मौजूदा क्षमता के साथ बढ़ते, जो करीब 6 प्रतिशत है और हमारी आबादी में कोई बढ़ोतरी नहीं होती तो हमारी प्रति व्य​क्ति जीडीपी हर 12 साल में दोगुनी हो जाती। इस तरह से हम 2047 तक हम प्रति व्य​क्ति जीडीपी 10,000 डॉलर होने की संभावना देख रहे हैं। हमारे विदेश मंत्री ने कहा कि यह उम्मीद की जा सकती है कि 2047 तक भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 18,000 डॉलर हो जाएगी। शायद विकसित भारत का यही मतलब है। इस तरह से प्रति व्यक्ति जीडीपी में 8,000 डॉलर का अंतर रह सकता है।’

उन्होंने कहा कि मसला यह है कि यह अंतर कैसे भरा जाएगा। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए वजहें बताईं कि भारत विनिर्माण दिग्गज बनने के लिए चीन की नकल क्यों नहीं कर सकता।उन्होंने कहा कि चीन के साथ वियतनाम और बांग्लादेश में श्रम अभी भी सस्ता है। उन्होंने कहा कि भू-राजनीतिक वजहों से फर्में अपने विनिर्माण की रणनीति बदल रही हैं और वे अपने गृह देश के निकट आधार बना रही है। इसके साथ ही विनिर्माण की प्रकृति तेजी से बदल रही है।

उन्होंने कहा कि भारत चिप फैब्रिकेशन संयंत्र स्थापित करने की कवायद कर रहा है, लेकिन वास्तव में यह चिप डिजाइन है, जहां मूल्य वर्धन हो रहा है और इसमें भारत की विशेषज्ञता है। उन्होंने कहा, ‘विभिन्न अनुमानों के मुताबिक 20 फीसदी चिप डिजाइन भारत में हो रहा है।’

सेवा क्षेत्र पर आधारित वृद्धि पर जोर देते हुए लांबा ने कहा कि तृतीयक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लेबर ऑर्बिट्राज है, जिसकी वजह से वैश्विक क्षमता केंद्र इतना अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। लांबा ने कहा कि वृद्धि की राह पर चलने के लिए देश जो भी रास्ता चुने, उसे प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना होगा। लांबा ने कहा, ‘हमें बुनियादी प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा दुरुस्त करने की जरूरत है। हम स्वस्थ व बेहतर कार्यबल तैयार करने से अभी बहुत दूर हैं, जिसकी 2047 तक विकसित भारत बनाने के लक्ष्य में अहम भूमिका है। हम विकास की चाहे जो राह चुनें, यह अहम है।’

राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वे 2019 के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि देश के 30 से 35 फीसदी बच्चे अभी कुपोषण के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद से बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर फिर पहले जैसी हो गई है। उन्होंने कहा, ‘अगर स्कूल में बच्चे जाते भी हैं, तो वे कितना अच्छा सीख रहे हैं? क्या आप 10 साल की उम्र तक लर्निंग मशीन बनाने में सक्षम हैं? हम इस मामले में बहुत अच्छा नहीं कर रहे हैं। दरअसल इसके तमाम साक्ष्य हैं कि 5 से 6 साल की उम्र में बच्चे का स्वास्थ्य व सीखने का कौशल विकसित नहीं हो रहा है। अगर बच्चे का स्वास्थ्य और सीखने का कौशल निश्चित स्तर तक विकसित नहीं हो रहा है तो उनकी क्षमता का बड़ा हिस्सा दुखद रूप से खत्म हो जाता है।’

लांबा ने कहा कि देश के विकास की राह में सबसे बड़ा व्यवधान मानव पूंजी है। उन्होंने कहा, ‘फिलहाल इस पर ध्यान नहीं है। बिल्कुल ध्यान नहीं है। भारत में श्रम बल चीन से सस्ता हो सकता है, लेकिन अगर उसमें कौशल भी शामिल कर लिया जाए तो चीन का श्रम अभी भी सस्ता है।’

उन्होंने वीबॉक्स सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि 2023 तक कॉलेजों से निकलकर आया भारत का 50 फीसदी श्रमबल रोजगार के योग्य नहीं है। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के बारे में लांबा ने कहा कि उद्योगों को संरक्षण देने के लिए शुल्क बढ़ाने के मामले में भारत भी अपवाद नहीं है, लेकिन कहा कि उत्पाद के स्तर पर सब्सिडी देने से वह वास्तव में चिंतित हैं। उन्होंने नीति निर्माताओं को याद दिलाया कि नवाचार को बढ़ावा देने के लिए यह एकमात्र तरीका नहीं है।

First Published - March 27, 2024 | 10:43 PM IST

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