स्पाइसजेट का एक विमान 19 जून को 191 यात्रियों को लेकर पटना हवाई अड्डे से उड़ान भरता है। उड़ान भरते ही विमान के बाएं पंख के नीचे इंजन से चिंगारी और धुआं निकलने लगता है। कैप्टन मोनिका खन्ना विमान को वापस पटना हवाई अड्डे पर ले जाती हैं। जांच में पता चलता है कि विमान के इंजन में एक पक्षी घुस गया था, जिससे उसके पंखे की तीन पंखुड़ियां क्षतिग्रस्त हो गईं। कैप्टन खन्ना का यह कारनामा और तस्वीर सोशल मीडिया पर छा गए।
उसी दिन इंडिगो का भी एक विमान गुवाहाटी हवाई अड्डे से उड़ान भरने के फौरन बाद एक पक्षी के टकरा जाने के कारण हवाई अड्डे पर वापस लाना पड़ा। छह दिन बाद रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ले जा रहे हेलीकॉप्टर की आपातकालीन लैंडिंग वाराणसी में करानी पड़ी, जिसका कारण भी पक्षी टकराना था। हवाई जहाजों से पक्षियों का टकराना एकाएक चर्चा और उत्सुकता का विषय बन गया।
पक्षियों का विमानों से टकराना भारत में कोई अनूठी बात नहीं है। 2021 में रोजाना विमान से पक्षी टकराने की औसतन चार घटनाएं हुईं। इसके लिए पक्षियों को ही दोष नहीं दिया जा सकता। पिछले साल खबर आई थी कि महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में चिपी हवाई अड्डे पर 25-30 सियार रनवे पर टहल रहे थे। हवाई अड्डों पर गायों, कुत्तों, नीलगाय और मरी हुई लोमड़ी तक मिलने की खबर आ चुकी हैं।
इसमें हैरत की बात भी नहीं है क्योंकि भारत में कई हवाई अड्डों के आसपास घनी आबादी वाले इलाके हैं और खुली नालियों या कूड़े के डंपिंग ग्राउंड हैं। पटना हवाई अड्डे के पास खुला हुआ बूचड़खाना है, जिस कारण हवाई अड्डे पर कुछ कर्मचारी पक्षी दूर भगाने के लिए ही रखे गए हैं। पिछले साल अहमदाबाद में हवाई अड्डा अधिकारियों ने बंदर भगाने के लिए एक कर्मचारी को भालू की ड्रेस पहनाकर खड़ा कर दिया था।
मगर पक्षी टकराने के समस्या बंदरों की समस्या से बिल्कुल अलग है। जिस विमान से पक्षी टकराता है, उसे हवाई अड्डों पर सबसे पहले उतारा जाता है और उसके इंजन को फौरन जांच के लिए ले जाते हैं। उनकी मरम्मत बहुत महंगी पड़ती है। हवाई जहाज बनाने वाली कंपनी बोइंग का कहना है कि इंजन आम तौर पर 1 करोड़ डॉलर का होता है और पक्षी या मलबा टकराने के बाद उसकी मरम्मत में 16 लाख डॉलर तक का खर्च आ सकता है। पंखुड़ियों का एक सेट बदलने में ही 25,000 डॉलर खर्च हो सकते हैं। अगर अहम पुर्जों में इतनी खराबी आ जाए कि वे ठीक ही न हो सकें तो नया इंजन खरीदना पड़ता है।
पक्षियों के विमान से टकराने का पता किसी तकनीक या उपकरणों से पता नहीं चल पाता है बल्कि यह मनुष्य की पैनी नजर और सतर्कता से ही पता चलता है मसलन धुआं और चिंगारी देख लेना, मांस जलने की गंध पहचान लेना। कई दफा ऐसी टक्करों का पता ही नहीं चल पाता। मगर पता चले तो विमान में सवार सभी यात्रियों की सुरक्षा पक्की करने के लिए एक ही पल में फैसला लेना होता है।
एक निजी विमान कंपनी में काम करने वाले एक पायलट ने बताया, ‘सबसे पहले आपको विमान के इर्द गिर्द पक्षियों का झुंड दिखता है। उसके बाद अचानक झटके के साथ आवाज आती है और आप समझ जाते हैं कि एक या अधिक पक्षी इंजन में चले गए हैं। आम तौर पर इंजन में कुछ गड़बड़ नहीं लगता और हम उड़ान जारी रखते हैं। मगर कभी-कभी इंजन में अजीब सा कंपन होने लगता है। बड़े पक्षी पंखुड़ियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं और उनसे इंजन में आग भी लग सकती है।’ अमेरिका की विमानन नियामक संस्था भी समय-समय पर होने वाले अपने प्रशिक्षण में बताती है कि पक्षी टकराने से ज्यादातर उड़ानों पर असर नहीं पड़ता और विमान के चालक दल को तो पता भी नहीं चलता कि कोई पक्षी इंजन में समा गया है। पक्षी बहुत बड़ा हो तभी पायलट को इंजन में गड़बड़ी का अहसास होता है। ईंधन जलाने के लिए अंदर जाने वाली हवा पक्षी के कारण रुक जाती है, जिससे कंप्रेसर बंद हो जाता है। इससे उपकरण गड़बड़ी का संकेत देने लगते हैं और पायलट के केबिन में संकेत आने लगते हैं। नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने पशु-पक्षी टकराने की सूचना देने संबंधी दिशानिर्देश तो पहले ही दे रखे हैं मगर उसने माना है कि विमानन उद्योग के साथ यह खतरा जुड़ा ही रहेगा और यही मानकर इससे निपटना चाहिए। 2018 में एक परामर्श में इसने कहा कि कभी-कभी कुछ नहीं करना ही सबसे अच्छा होता है। परामर्श में कहा गया, ‘हवाई अड्डों से पशु-पक्षी भगाने से पहले यह जरूर समझ लेना चाहिए कि कई बार उन्हें भगाने और हालात से नियंत्रण खोने से अच्छा होता है कुछ नहीं करना।’
विश्लेषक बताते हैं कि 2014 में स्पाइसजेट का एक विमान रनवे पर नील गाय से टकराने के बाद डीजीसीए हरकत में आया था। सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के कैप्टन अमित सिंह ने कहा, ‘उससे पहले वह हवाई अड्डों पर जंगली जानवरों के खतरे से बेपरवाह था। डीजीसीए मानता है कि वह पक्षियों की विमान से टक्कर रोकने के लिए अपने लक्ष्य से भी बेहतर काम कर रहा है। मगर उन टक्करों का क्या, जिनकी सूचना ही नहीं मिलती।’
डीजीसीए हवाई अड्डों पर मानव उपस्थिति बढ़ाने, शोर करने वाले उपकरण लगाने और पक्षी भगाने के लिए फ्लेयर गन का इस्तेमाल करने की सलाह देता है। और जब कुछ भी काम न करे तो भालू तो बन ही सकते हैं।
