उत्तर प्रदेश के प्रमुख उद्यमी और जेट निटवियर्स लिमिटेड के चेयरमैन बलराम नरूला मानते हैं कि ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य महत्त्वाकांक्षी जरूर है मगर उसे हासिल करना मुश्किल नहीं है। उन्हें तेज विकास और औद्योगिक प्रगति के लिए जरूरी सभी संभावनाएं उत्तर प्रदेश में नजर आती हैं मगर इसके लिए प्रदेश में अहम भूमिका निभाने वाले छोटे व मझोले उद्योगों, खास तौर पर सूक्ष्म उद्योगों के लिए नई नीति बनाने की जरूरत उन्हें महसूस हो रही है। नरूला ने एमएसएमई क्षेत्र व उत्तर प्रदेश की औद्योगिक तस्वीर तथा संभावनाओं पर सिद्धार्थ कलहंस से बातचीत की। प्रमुख अंश:
ट्रिलियन डालर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पाने में एमएसएमई क्षेत्र की क्या भूमिका रहेगी?
प्रदेश के औद्योगिक हित व जनता के कल्याण के लिए यह लक्ष्य रखा जाना स्वागत योग्य है। यह भी सही है कि यह लक्ष्य हासिल करने में एमएसएमई की भूमिका को सभी मान रहे हैं। प्रदेश में छोटे व मझोले उद्योगों के साथ बड़ी तादाद में सूक्ष्म उद्योग भी हैं। मेरी राय में सूक्ष्म (माइक्रो ) उद्योगों की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका है और उनके लिए अलग से सोचे जाने की जरूरत भी है।
तो क्या आप सूक्ष्म उद्योगों के लिए अलग से नीति और प्रोत्साहनों की जरूरत मानते हैं?
आज एमएसएमई के दायरे में 5 लाख रुपये से लेकर 500 करोड़ रुपये तक के उद्योग शामिल हैं। इसलिए मुझे लगता है कि सूक्ष्म उद्योगों के लिए अलग से नीति बनाए जाने और ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सूक्ष्म उद्योगों को अलग कर उनके लिए नीति बने और प्रोत्साहन भी दिया जाए। परिवार हो या समाज हो, दोनों जगह कमजोरों के लिए खास ध्यान दिया जाता है। यही नजरिया सूक्ष्म उद्योगों के लिए भी होना चाहिए। इनकी तादाद भी सबसे बड़ी है और इनमें आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भी काम करता है। सूक्ष्म उद्यमों को मजबूत कर दिया तो अर्थव्यवस्था की रीढ़ मजबूत हो जाएगी।
नए औद्योगिक क्लस्टर तो बन रहे हैं मगर कानपुर जैसे पुराने औद्योगिक शहरों की अभी क्या हालत है?
यह अच्छी बात है कि नए स्थान उद्योगों के ठिकाने बनकर उभर रहे हैं। जहां तक कानपुर की बात है तो अभी टेक्सटाइल के क्षेत्र में पार्क की बड़ी घोषणा हुई थी। वह पार्क भी उत्तर प्रदेश में हरदोई-लखनऊ सीमा पर बसे संडीला में बनाया जा रहा है। टेक्सटाइल की जान तो कानपुर है, इसलिए यहां टेक्सटाइल पार्क बनता तो बात ही कुछ और होती। शायद कोई मजबूरी रही होगी, जो पार्क यहां नहीं बन रहा। मगर टेक्सटाइल पार्क बनने से कानपुर के दिन जरूर बहुर जाते।
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कानपुर चमड़े और होजरी का बड़ा केंद्र रहा है। अभी दोनों उद्योगों की क्या हालत है?
सूक्ष्म उद्योगों पर ध्यान दिया जाए तो चमड़ा और होजरी ही नहीं, बहुत सारे उद्योग खड़े हो जाएंगे। मैं मानता हूं कि सरकार की मंशा तो ठीक है मगर इस क्षेत्र की ओर ध्यान ही नहीं गया है। सरकार को ज्यों ही समझ आएगा वह तुरंत इस पर ध्यान देगी। होजरी व चमड़ा क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्योगों की बहुत बड़ी भूमिका है और दोनों क्षेत्रों में जॉब वर्कर बड़ी तादाद में हैं। इनके लिए प्रोत्साहन होगा तो चमड़ा और होजरी उद्योग फिर से चमकने लगेंगे। मगर सूक्ष्म और मझोले उद्योगों के लिए एक जैसी नीति रखी गई तब तो भला नहीं होगा।