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छोटे गांव से निकल कर भारत के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी तक

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (2018-2019) के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल ई-कोर्ट, वर्चुअल फाइलिंग सिस्टम और डिजिटल पुस्तकालयों की शुरूआत के लिया जाता है

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- November 24, 2025 | 10:42 AM IST

न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश की कमान संभाल ली। मुख्य न्यायाधीश पद तक का उनका यह सफर एक तरह से भारत की कहानी को दर्शाता है। न्यायमूर्ति कांत के इस सफर की शुरुआत गांव में हुई जहां तमाम तरह की दिक्कतें से उन्हें रूबरू होना पड़ा था। लेकिन दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने फतह हासिल कर ली।

हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में 10 फरवरी, 1962 को एक संस्कृत शिक्षक के घर जन्मे न्यायाधीश कांत के शुरुआती वर्ष और स्कूली शिक्षा मिट्टी के दीये की मद्धिम रोशनी में बीते।

गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, हिसार से डिग्री और 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से बैचलर ऑफ लेजिस्लेटिव लॉ (एलएलबी) की डिग्री प्राप्त करने के बाद कांत उसी वर्ष हिसार जिला न्यायालय में वकालत करने लगे।
एक साल के भीतर वह अपना पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में पहुंच गए जहां उनकी स्पष्ट दलीलें और सेवा एवं संवैधानिक कानून की समझ ने उन्हें शुरुआती पहचान दिलाई।

निरंतर की प्रगति

न्यायाधीश कांत की तरक्की व्यवस्थित थी और एक झटके में कुछ नहीं हुआ। वकालत शुरू करने के लगभग डेढ़ दशक बाद वह वर्ष 2000 में हरियाणा के महाधिवक्ता नियुक्त हुए। उस समय वह उस पद को धारण करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे और अपने स्पष्ट कानूनी विचारों और व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए अपने साथियों के बीच जाने जाते थे।

चार साल बाद उन्हें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पीठ में पदोन्नत किया गया जो एक न्यायिक करियर की शुरुआत थी। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके फैसलों में शासन में समानता और जवाबदेही के लिए चिंता परिलक्षित होती थी।

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (2018-2019) के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल ई-कोर्ट, वर्चुअल फाइलिंग सिस्टम और डिजिटल पुस्तकालयों की शुरूआत के लिया जाता है। इन पहल का मकसद पहाड़ी क्षेत्रों में न्याय तक लोगों की पहुंच बढ़ानी थी जहां अदालतों तक पहुंच पाना अक्सर मुश्किल होता है। उनकी प्रशासनिक दक्षता ने कॉलेजियम का ध्यान आकृष्ट किया जिससे मई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय में उनकी पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

न्यायाधीश और उनका न्यायशास्त्र

सर्वोच्च न्यायालय के पीठ में पिछले छह वर्षों में न्यायाधीश कांत ने संवैधानिक प्रश्नों से लेकर पर्यावरण और आपराधिक कानून तक सभी विधाओं 50 से अधिक निर्णय गढ़े या उनमें उनकी भागीदारी रही।

अभिव्यक्ति की स्पष्टता और सावधानीपूर्वक तर्क के लिए जाने जाने वाले कांत अक्सर संस्थागत अखंडता और व्यावहारिक न्याय के बीच संतुलन साधने के पक्षधर रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जा मामले में उन्होंने न्यायिक उलटफेर पर सैद्धांतिक स्पष्टता के लिए तर्क देते हुए एक सूक्ष्म असहमति की पेशकश की। बिहार में मतदाता सूची से संबंधित एक अन्य मामले में उन्होंने चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के लिए दबाव डाला और उसे मसौदा सूची से बाहर किए गए लाखों मतदाताओं की जानकारियां सार्वजनिक करने का निर्देश दिया। उनके सहयोगियों का कहना है कि उनके निर्णयों में बयानबाजी कम और कार्यान्वयन एवं जवाबदेही पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश-प्रतीक्षारत

जब न्यायाधीश कांत भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से पदभार ग्रहण करेंगे तो वह भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन होने वाले हरियाणा के पहले व्यक्ति होंगे।

उनका कार्यकाल फरवरी 2027 तक होगा। उनकी प्राथमिकताएं पहले से ही स्पष्ट हैं यानी मामले के अंबार से निपटना, मध्यस्थता और वैकल्पिक विवाद समाधान को संस्थागत बनाना और कानूनी सहायता प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना।

भारत के मुख्य न्यायाधीश-नामित के रूप में अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों में उन्होंने जोर दिया है कि ‘न्याय तक पहुंच एक नारा नहीं बल्कि एक सेवा है।’
न्यायमूर्ति कांत ने यह भी कहा है कि अदालतों को ‘डिजिटल बहिष्कार, प्रवासन और जलवायु विस्थापन के नए मोर्चों’ के अनुकूल होना चाहिए।
शनिवार को संवाददाताओं से बातचीत में न्यायाधीश कांत ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी चुनौतियों में न्यायपालिका में बढ़ते विचाराधीन मामलों से निपटना और विवाद समाधान के एक वैकल्पिक तरीके के रूप में मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना प्रमुख होंगे।

First Published : November 24, 2025 | 9:15 AM IST