अगर आपकी बाघ या भालू जैसे जानवरों को गोद लेने की ख्वाहिश है तो आप छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग से संपर्क कर सकते हैं।
दरअसल, जंगली जानवरों को पालने का खर्चा वन विभाग पर इतना भारी पड़ रहा है कि वह जंगली जानवरों को गोद लेने वालों की तलाश कर रही है।
विभाग राज्य के विभिन्न चिड़ियाघरों में कैद जानवरों के लिए रखवालों की तलाश में है। पर फिलहाल विभाग इस योजना का प्रचार नहीं कर रहा है क्योंकि वह चाहता है कि लोग इस योजना के बारे में खुद आगे बढ़कर अपनी राय दें।
राज्य के वन मंत्री विक्रम उसेंदी ने बताया, ‘अगर लोग इस योजना में दिलचस्पी दिखाते हैं और उन्हें जानवरों को गोद लेने का प्रस्ताव पसंद आता है तो राज्य सरकार इस योजना पर गंभीरता से विचार करेगी। ऐसी किसी योजना से जानवरों का बेहतर संरक्षण और देखभाल हो सकती है।’
विभाग ने इस योजना के लिए एक मसौदा प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है जिसमें जानवरों को गोद लेने के इच्छुक लोगों को इसके फायदे बताए गए हैं। सूत्रों ने बताया कि जानवरों को गोद लेने की यह नीति बहुत हद तक पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश की तरह ही है जहां राज्य सरकार चिड़ियाघरों के जानवरों को गोद लेने की सुविधा देती है।
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जो लोग जानवरों को गोद लेंगे, उन्हें न केवल कर में छूट दी जाएगी बल्कि, वे राज्य के अभयारण्यों में विभाग के खर्च पर घूम सकेंगे। वन विभाग रायपुर और बिलासपुर जिलों में दो बड़े चिड़ियाघरों का प्रबंधन करता है। इन दोनों ही चिड़ियाघरों का सालाना बजट 50 से 60 लाख रुपये का है।
वन अधिकारियों को इसी बजट में से जानवरों की देखभाल करनी होती है। अधिकारी ने बताया, ‘जो भी व्यक्ति इन जानवरों को गोद लेता है उसे उसके भोजन, दवा और दूसरी जरूरतों का खर्चा खुद उठाना पड़ेगा।’
कई बार चिड़ियाघरों में देखभाल कर्मियों की लापरवाही के चलते जानवरों का ध्यान नहीं रखा जा पाता है। पर गोद लेने की योजना अगर रंग लाती है तो इससे यह समस्या भी दूर हो जाएगी। इस योजना के तहत कोई व्यक्ति या कोई एजेंसी जानवरों को एक महीने, एक साल या फिर जीवन भर के लिए गोद ले सकती है।
