उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में तेजी से बढ़ती संक्रामक बीमारियों की वजह से मच्छर मारने वाली सामग्री का बाजार सातवें आसमान पर है। मच्छर जापानी एन्सेफलाइटिस, हेपेटाइटिस-ई, मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारियों के प्रसार के लिए बदनाम हैं।
एक अनुमान के मुताबिक मच्छर भगाने या मारने के लिए होने वाले खर्च में हर साल 25-30 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। वर्तमान में इस पर लगभग 18 करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं।
बिरहाना सड़क पर एक थोक फार्मासिस्ट राजेश त्रिपाठी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अमूमन सभी मेडिकल स्टोर मालिक अब विभिन्न दवाइयों सहित मच्छर मारने की क्वाइल और स्प्रे खरीदते हैं।
त्रिपाठी ने बताया, ‘अभी से 10 साल पहले बमुश्किल 10-12 व्यापारी इन दवाओं को रखते थे और उस वक्त कुल टर्नओवर 3 करोड़ रुपये से भी कम था। लेकिन अब यह अपने आप में तेजी से उभरने वाला एक कारोबार बन गया है।’
मच्छर मारने वाले ब्रांडों की बड़ी मात्रा बाजार में उपलब्ध है जबकि दो ब्रांड तो पिछले दो दशक से बाजार में अपनी पैठ बनाए हुए हैं।
अच्छे मार्जिन और उत्पादों की बढ़ती मांग की वजह से इस व्यवसाय की ओर कारोबारी काफी तेजी रुख कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि दिनों-दिन बढ़ती मांग की वजह से विभिन्न ब्रांडों के वितरकों ने शहर में अपने ऑउटलेट भी खोल दिए हैं।
बाजार की बढ़ती क्षमता को देखते हुए स्थानीय निर्माताओं ने कुटीर स्तर के उद्योगों में सस्ते उत्पादों का निर्माण करना भी शुरू कर दिया है।
हर साल फरवरी से मई और जुलाई से नवंबर में मच्छर मारने वाले उत्पादों की मांग काफी बढ ज़ाती है। मच्छर मारने के लिए बाजार में तरह-तरह की दवाइयां उपलब्ध है।
बाजार में दस क्वाइल की कीमत 18-24 रुपये, 50 एमएल लिक्विडेटर की कीमत 36-52 रुपये, 250 एमएल स्प्रे की कीमत 72 रुपये, 30 पीस मेट की कीमत 45 रुपये और 25 ग्राम क्रीम और लोशन की कीमत 16 रुपये है।
यही नहीं मच्छरों के शिकार के लिए बाजार में एक नई तकनीक भी उपलब्ध है, जो बिजली से स्थैतिकी ऊर्जा विकसित करती है और मच्छरों को आकर्षित कर मौत की नींद सुला देती है।
यह मशीन चीन की बनी हुई है और इस मशीन को इस्तेमाल करने से पहले बिजली सप्लाई से चार्ज करना होता है। इसकी कीमत 150 रुपये तक है।
