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मंदी में होली के रंग भी हो गए बदरंग

Last Updated- December 10, 2022 | 7:27 PM IST

आर्थिक मंदी ने रंगों के लघु उद्योग को भी बेरंग करना शुरू कर दिया है। पिछले कई साल से लगभग 20 फीसदी की दर से विकास करने वाले इस लघु उद्योग की विकास दर इस साल करीब 15 से 20 फीसदी कम होने वाली है।
रंगों का यह कारोबार ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में ही है। इस उद्योग को इस साल लगभग 100 करोड़ रुपये का कारोबार करने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश डाईज और केमिकल संगठन के महासचिव आर के सफार ने बताया, ‘पिछले साल होली पर इस उद्योग ने लगभग 124 करोड़ रुपये का कारोबार किया था।’ असंगठित क्षेत्र में होने के कारण इस उद्योग पर रंगों की गुणवत्ता को लेकर कोई मानक भी नहीं हैं।
उन्होंने बताया, ‘हमारे सदस्यों से हमें जो आंकड़े मिले हैं, उनके मुताबिक इस साल कारोबार में करीब 15 से 20 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। मंदी के कारण लोगों ने रंग समेत सभी चीजों पर किए जाने वाले खर्च में कटौती की है।’
राज्य के हाथरस, आगरा, कानपुर, गाजियाबाद और मथुरा जिलों में रंग बनाने वाली इकाइयां हैं। इनमें से भी हाथरस से ही उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को होली के रंगों की आपूर्ति की जाती है। हाथरस होली के रंगों के लिए ही मशहूर है।
दिलचस्प बात यह है कि मंदी के कारण जहां बाकी जगह मौजूद रंग बनाने वाली इकाइयां घाटे से गुजर रही हैं, हाथरस में मौजूद इकाइयों को इस साल भी अच्छी दर से विकास करने की पूरी उम्मीद है। बाकी राज्यों में यहां बने रंगों की अच्छी खासी बिक्री होने से ऐसा मुमकिन हुआ है।
शक्ति इंटरप्राइजेज के मालिक देवेंद्र कुमार गोयल ने बताया, ‘इस साल भी हाथरस की रंग बनाने वाली इकाइयां लगभग 50 करोड़ रुपये का कारोबार करेंगी, जो कि पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी अधिक है। हालांकि अब लोग रसायनिक रंगों के बजाय हर्बल गुलाल को तरजीह दे रहे हैं।’
गोयल ने बताया, ‘हम कानपुर और गाजियाबाद से हर्बल गुलाल थोक के भाव में खरीदते हैं। फिर इसे छोटे-छोटे पैकेट में पैक कर बेचते हैं।’ हर्बल गुलाल पर्यावरण अनुकूल प्राकृतिक डाई होते हैं और कई रंगों में उपलब्ध होते हैं। एक तरफ जहां रसायनिक रंग 15 रुपये प्रति 5 ग्राम के हिसाब से बिक रहे हैं, वहीं गुलाल और हर्बल गुलाल 10 रुपये और 20 रुपये प्रति 100 ग्राम बिक रहे हैं।
सफर ने बताया कि कई जगहों पर साधारण गुलाल को ही हर्बल गुलाल बनाकर ग्राहकों को अधिक दाम पर बेचा जा रहा है। कोई तय मानक नहीं होने के कारण इन रंगों में कै डमियम जैसे हानिकारक रसायन भी पाए जाते हैं। इन रसायनिक रंगों के इस्तेमाल से त्वचा रोग, एलर्जी और अस्थमा हो सकता है।

First Published - March 10, 2009 | 3:11 PM IST

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