मेट्रो कारशेड का निर्माण राजनीति और आपसी खींचतान की वजह से लटकने की राह पर चल पड़ है। पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार ने मेट्रो कारशेड तीन को आरे कॉलोनी की जगह कांजुरमार्ग में बनाने का ऐलान किया था। राज्य सरकार ने कांजुरमार्ग में मेट्रो कारशेड के लिए जो जमीन मुफ्त में उपलब्ध करवाई थी वह जमीन राज्य सरकार की नहीं बल्कि केन्द्र सरकार की है। केन्द्र सरकार ने जमीन पर अपना मालिकाना हक बताते हुए राज्य सरकार को पत्र लिखकर निर्माण कार्य रोकने को कहा है।
कांजुरमार्ग मेट्रो कारशेड मुद्दे पर केन्द्र और राज्य सरकार आमने सामने आ गई है। महाराष्ट्र सरकार ने पिछले महीने मेट्रो कारशेड तीन को आरे कॉलोनी से रद्द कर कांजुरमार्ग स्थानांतरित की घोषणा की थी। महाराष्ट्र सरकार के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने पत्र लिखकर आपत्ति दर्ज कराई है। मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए कांजुरमार्ग की जो जमीन महाराष्ट्र सरकार ने एमएमआरडीए को दी हैं उसपर जारी निर्माण कार्य को गलत बताते हुए डीपीआईआईटी (डिपार्टमेंट फॉर प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इनटर्नल ट्रेड) ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव संजय कुमार पत्र लिखकर कहा है कि यह जमीन केन्द्र सरकार की है। केन्द्र सरकार की तरफ से भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि कांजुरमार्ग के सॉल्ट पैन वाली जमीन पर जारी कारशेड निर्माण का कार्य रोका जाए मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए कांजुरमार्ग की जो जमीन महाराष्ट्र सरकार ने एमएमआरडीए को दी हैं उसपर जारी निर्माण कार्य को गलत बताते हुए डीपीआईआईटी ने यह भी लिखा गया हैं कि कलेक्टर अपना फैसला पीछे लें ताकि केंद्र सरकार के हितों की रक्षा हो सकें।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले महीने 11 अक्टूबर को आरे मेट्रो कार परियोजना का स्थान बदलने की घोषणा करते हुए इसे यहां कांजूरमार्ग स्थानांतरित करने का ऐलान किया था। उस दिन ठाकरे ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि परियोजना को कांजूरमार्ग में सरकारी भूमि पर स्थानांतरित किया जाएगा और इस काम में कोई खर्च नहीं आएगा। भूमि शून्य दर पर उपलब्ध कराई जाएगी। आरे जंगल के तहत आने वाली भूमि का इस्तेमाल दूसरे जन कार्यों के लिए किया जाएगा। इस परियोजना पर लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जो बर्बाद नहीं जाएंगे। ठाकरे ने दावा किया था कि सरकार ने पहले 600 एकड़ की जमीन को जंगल घोषित किया था, लेकिन अब इसे संशोधित कर 800 एकड़ कर दिया गया है। आरे में जो बिल्डिंग बनाने में सरकारी खर्च किया गया है, उसका इस्तेमाल कुछ दूसरे अच्छे उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता महाराष्ट्र सरकार पर आक्रमक हो चुके हैं। भाजपा के पूर्व मंत्री और विधायक आशीष शेलार ने उद्धव ठाकरे को आड़े हाथों लेते हुए उन्हें और उनकी सरकार को अटकाने, भटकाने और लटकाने वाली सरकार करार दिया है। शेलार ने कहा कि उद्धव ठाकरे एक अहंकारी राजा की तरह महाराष्ट्र राज्य को चला रहे हैं और उनके बेटे एक विलासी पुत्र की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस प्रकार से महाराष्ट्र के जनता का कोई भी भला नहीं होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता डॉक्टर किरीट सोमैया ने कहा कि महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे सरकार जनता को मूर्ख बना रही है उन्होंने कहा कि मैंने 1 महीने के भीतर तकरीबन 50 आरटीआई विभिन्न कार्यालयों में डाली है लेकिन अभी तक एक का भी जवाब नहीं मिल पाया है। मेट्रो कारशेड प्रोजेक्ट को आरे से शिफ्ट करके कांजुरमार्ग में ले जाने से यह प्रोजेक्ट तकरीबन 5 साल की देरी से पूरा होगा और इस प्रोजेक्ट में 5000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा। महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार जनता से झूठ पर झूठ बोलती जा रही है।
महाराष्ट्र सरकार अब मेट्रो कारशेड के मुद्दे पर घिरती हुई नजर आ रही है। बिना दस्तावेजों की जांच पड़ताल किए ही महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री ने मेट्रो कारशेड को कांजुरमार्ग शिफ्ट करने का फैसला कैसे कर लिया। इस मुद्दे पर शिवसेना नेता फिलहाल सवालों से बचते नजर आ रहे हैं। शिवसेना के संकटमोचक माने जाने वाले संजय राउत मीडिया के सवालों से बचते हुए सिर्फ इतना कह कर निकल गए कि यह मामला सरकारी है और इसे सरकार ही जवाब देगी। हालांकि महाराष्ट्र सरकार का दावा कर रही है कि कांजुरमार्ग की जमीन पर महाराष्ट्र सरकार का हक़ है और नियमों के तहत ही इस जमीन पर कारशेड बनाया जा रहा हैं। गौरतलब है कि कांजुरमार्ग के 102 हेक्टर जमिन पर कारशेड का निर्माण होना हैं।
विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष प्रवीण दरेकर ने कहा कि यह मुंबई की बहुउद्देशीय परियोजना मेट्रो लाइन-3 को अधर में लटकाने के लिए उद्धव सरकार द्वारा रचा गया षड़यंत्र है। इस षडयंत्र में मुंबईकरों की गाढ़ी कमाई डूबने वाली है, साथ ही उन्हें कई वर्षों तक सड़कों ट्रैफिक जाम के धक्के खाने पड़ेंगे। इस मुद्दे पर आम मुंबईकरों का कहना है कि मेट्रो कारशेड को लेकर राजनीति ऐसे ही होती रही तो मेट्रो का प्रस्तावित ख़र्च और बढ़ेगा। राजनीति के चक्कर में मेट्रो का काम अपने लक्ष्य से पहले ही काफ़ी पीछे हो चुका है। उम्मीद की जानी चाहिए राजनीतिक दल मुंबईकर के हितों को ध्यान में रखकर मामले को जल्द सुलझाएंगे।