जालंधर शहर खेल सामान निर्माताओं के गढ़ के रूप में मशहूर है, लेकिन प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जालंधर के खेल उद्योग की महत्ता न केवल विदेश में बल्कि अपने देश में भी धूमिल पड़ती जा रही है।
हालांकि अब जालंधर अपनी खोई हुई साख को फिर से बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। शहर के खेल उत्पाद निर्माता खुद खेल सामान को बनाने के बजाए चीन और मेरठ से आयात कर रहे हैं, ताकि अपनी स्थिति फिर से सुदृढ़ कर सके।
खेल सामान निर्माता एसोसिएशन जालंधर के अध्यक्ष विजय धीर ने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि जालंधर का खेल उद्योग अब ‘व्यापार केंद्र’ का शक्ल अख्तियार कर रहा है। उन्होंने बताया कि कच्चे माल में कमी, नई पीढ़ी की कम दिलचस्पी और घटता मुनाफा ही इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा कारण है।
धीर ने बताया, ‘खेल उत्पादों को बनाने वाले शहर के अधिकांश निर्माता ही इस बदलाव के दोषी हैं।’ शहर के खेल सामान निर्यातक राणा रघुनाथ सिंह ने बताया, ‘अगर हम लोगों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादों को बेचना है तो हमारे पास खेल सामानों के निर्यात के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता है।’
सिंह ने बताया कि क्रिकेट बल्लों के निर्माण में कश्मीरी विलो का इस्तेमाल होता है लेकिन विलो की अन्य राज्यों में बिक्री पर रोक लगने से समस्या विकट हो गई है। उन्होंने कहा कि अपनी जरुरतों के लिए हम लोग कश्मीरी विलो का निर्यात करते हैं लेकिन यह विदेशी मांग के लिए अपर्याप्त है और इस कारण हम कश्मीरी विलो बल्ले का ऑर्डर बुक नहीं कर रहे हैं।
शहर के खेल सामान निर्माता रविन्दर धीर का कहना है कि मुनाफा काफी घट गया है। धीर ने बताया कि यह कारोबार उत्तर प्रदेश में इसलिए भी फल-फूल रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में कई सारी सुविधाएं मुहैया कराती है।
उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार वैट में छूट देती है। पंजाब सरकार की बात करें तो यहां वैट में चार प्रतिशत ही छूट दी जाती है। यह भी एक कारण है कि यहां का खेल उद्योग का पतन होता जा रहा है।