सरकार नैशनल फाइनैंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) के भीतर कार्यों के विभाजन पर विचार कर रही है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि नियामक को ऑडिट की समीक्षा और उसके बाद की जाने वाली अनुशासनात्मक कार्यवाही के कार्यों को विभाजित करने की अनुमति दी जा सकती है। इस समय एनएफआरए को सौंपे गए सभी कार्यों व दायित्वों की जिम्मेदारी कार्यकारी निकाय की होती है।
वर्तमान समय में एनएफआरए के कार्यकारी निकाय को प्राधिकरण को सौंपे गए सभी कार्यों और कर्तव्यों का निर्वहन करने का अधिकार है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल की शुरुआत में आदेश में कहा था कि कार्यों का विभाजन न होने से एनएफआरए पर पूर्वग्रह के आरोप लगने की आशंका है। इसके अलावा पूर्व-निर्मित विचारों को चुनौती देने की प्रवृत्ति है और समीक्षा व पुनर्मूल्यांकन के उद्देश्य से तर्कों की उपेक्षा की जाती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, ‘इस प्रकार यह उस जैसा होगा जिसे हम कानून में बेकार औपचारिकता सिद्धांत कहते हैं – सीजर से सीजर की पत्नी को अपील।’ अदालत का आदेश डेलॉइट हास्किन्स ऐंड सेल्स एलएलपी, एसआरबीसी ऐंड कंपनी एलएलपी और कई चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) ने एनएफआरए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में था।
एनएफआरए ने अदालत को सूचित किया था कि कंपनी अधिनियम की धारा 132 (2) बी के अनुसार उसके अध्यक्ष और दो अन्य सदस्यों की अध्यक्षता वाले कार्यकारी निकाय के पास जुर्माना लगाने और अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की शक्तियां हैं।
रेगस्ट्रीट लॉ एडवाइजर्स के सीनियर पार्टनर व सेबी के पूर्व अधिकारी सुमित अग्रवाल ने कहा, ‘भारत का नियामक ढांचा नियंत्रण और संतुलन के संवैधानिक सिद्धांत से भटक गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार चिंता व्यक्त की है और सुधारात्मक कदम उठाने का आग्रह किया है… जब नियामक नियम-निर्माता और निर्णायक दोनों बन जाते हैं तो पहला शिकार जवाबदेही होती है – दूसरा, न्याय।’
एनएफआरए ने ‘कार्यों के विभाजन’ मानदंड का उल्लंघन करने के आधार पर 11 कारण बताओ नोटिस को रद्द करने को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में एनएफआरए को अपनी कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी थी, लेकिन अंतिम आदेशों को तब तक रोक दिया था जब तक कि वे कोई निर्णय नहीं ले लेते।
विशेषज्ञों ने बताया कि अन्य नियामक, जैसे भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पास जांच और अनुशासनात्मक कार्यवाही करने वाले लोगों के अलग-अलग समूह हैं। उदाहरण के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का महानिदेशक जांच कार्यालय है, जो अपनी जांच रिपोर्ट सीसीआई को सौंपता है और उसके सदस्य अनुशासनात्मक कार्रवाई पर निर्णय लेते हैं।