उत्तर प्रदेश बिजली निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) द्वारा हाल ही में दिए गए आदेश से राज्य की विभिन्न उद्योग इकाइयां ‘अंधेरे’ में डूब गई हैं।
यूपीपीसीएल ने कहा है कि रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक राज्य की औद्योगिक इकाइयों में बिजली ठप रहेगी। यूपीपीसीएल ने 5 सिंतबर को बिजली ठप का आदेश दिया था। एक अनुमान के मुताबिक इस समय राज्य में मांग-आपूर्ति में लगभग 2,000 मेगावाट का अंतर है।
निगम के इस आदेश के बाद सूबे में उद्योग की स्थिति दयनीय होती जा रही है। खासकर प्रसंस्करण उद्योग, जो पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहा है, उस पर और मार पड़ रही है। एसोचैम की उत्तर प्रदेश इकाई के महासचिव एस बी अग्रवाल ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इसमें कोई शक नहीं कि इस आदेश के बाद 24 घंटे काम करने वाले प्रसंस्करण उद्योगों की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
उदाहरण के लिए चीनी, कपड़ा, जूट और चमड़ा आदि प्रसंस्करण उद्योगों की उत्पादन लागत भी प्रभावित होगी।’ इस ‘अंधेरे’ की सबसे अधिक मार गाजियाबाद की लौह और गैर-लौह धातु औद्योगिक इकाइयों पर पड़ेगी। अग्रवाल ने जोर देते हुए कहा कि ऐसे समय में जब बिजली कटौती की वजह से सूबे से उद्योगों का पलायन हो रहा है वैसे में इस तरह का कदम उद्योगों के लिए कब्र खोदने के समान है।
बिजली की मांग बढ़ने की वजह से ग्रिड में बिजली की उपलब्धता में भी देरी हो रही है। यूपीपीसीएल 8-10 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली आयात कर रही है। भारतीय उद्योग संघ (आईआईए) के कार्यकारी निदेशक डी एस वर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश में औद्योगिक जगत की स्थिति पहले से ही दयनीय है और निगम के इस पहल के बाद तो स्थिति और भी बद से बदतर हो जाएगी।
वर्मा ने बताया, ‘अगर रात में उद्योगों का परिचालन ठप रहेगा तो उसका असर उत्पादन और श्रम लागत पर पड़ेगा। इकाइयां अपने कारोबारी प्रतिबध्दताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगी और अंतत: अन्य राज्यों के मूल्यवान ग्राहक उनसे दूर होते चले जाएंगे।’ वर्मा ने सुझाव दिया कि ऐसी स्थिति में राज्य सरकार द्वारा आपातकालीन कदम उठाने और अमल में लाने की जरूरत है।
वर्मा ने आगे बताया कि इस परिस्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार उद्योगों को घटी हुई दरों पर डीजल मुहैया करा सकती है लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में ताप विद्युत और पनबिजली इकाइयों की कुल उत्पादन क्षमता करीब 2,500 मेगावाट है जबकि लगभग 3,000 मेगावाट बिजली केंद्रीय क्षेत्र से आयात किया जाता है।
सरकार ने राज्य में नए बिजली संयंत्र लगाने के लिए कई बार निविदाएं आमंत्रित की हैं लेकिन स्पष्ट बिजली नीति के अभाव में अभी तक न तो किसी परियोजना पर काम आगे बढ़ा है और न ही उद्योगों की बदहाली ही दूर हो सकी है।