हमें खुद में वही बदलाव लाना चाहिए, जिसे हम दूसरों में देखना चाहते हैं।’ – महात्मा गांधी
महात्मा गांधी के इन्हीं शब्दों का असर शायद आज देश के कॉर्पोरेट जगत पर भी देखा जा रहा है। उन्हें बदलते भारत का इंतजार है। और भारत को इंतजार है कॉर्पोरेट जगत की सोच बदलने का कि आखिर गांव में भी सुनहरे भविष्य की कल्पना की जा सकती है। यही वजह है कि मेट्रो शहरों के साथ ही बड़ी–बड़ी कंपनियां गांवों–देहातों का रुख भी कर रही हैं। ये कंपनियां गांव में अपने उत्पादों और सेवाओं को बेचने के लिए मानवीय रुख अपना रही हैं। यहां गांवों में कॉर्पोरेट जगत की हलचलों का
एक जायजा।
हम चलेंगे साथ–साथ
गांव में बसने वाले किसानों को लहलहाती फसल उगाने के लिए खाद, बीज, मिट्टी, शैक्षिक पत्रिकाएं, उपकरण, और मशीनों आदि की जानकारी और उनके इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षण की सुविधाएं भी दी जाती हैं। टाटा समूह ‘टाटा किसान संसार नेटवर्क’ के जरिये देश के कई गांवों में किसान परिवारों की मदद कर रही है। समूह की टाटा केमिकल्स लिमिटेड अपनी विस्तृत सेवाएं टाटा किसान संसार के जरिये किसानों तक पहुंचाती है, जिससे किसान परिस्थितियों के मुताबिक बदलाव करते रहते हैं। किसान संसार के हर केंद्र में कर्मचारी खेती से जुड़ी हर प्रकार की समस्या का समाधान निकालते हैं।
डीसीएम श्रीराम कंसोलिडेटेड लिमिटेड ने अपने 35 वर्ष के कृषि क्षेत्र के अनुभव का इस्तेमाल ‘हरियाली किसान बाजार’ के जरिये किसानों को पहुंचाया है। कंपनी के हरियाली केंद्र 20 किलोमीटर के दायरे में अपनी सेवाएं देता है। कृषि से जुड़ी आधुनिक जानकारी के अलावा हरियाली किसान बाजार किसानों और मंडी के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी निभाते हैं। इस केंद्र के जरिये किसानों को आधुनिक रिटेल बैंकिंग और आसान एवं पारदर्शी प्रक्रिया के जरिये कर्ज लेने और बीमा संबंधी जानकारियां भी मुहैया कराई जाती हैं। कंपनी की योजना हरियाली के आउटलेट को मार्च 2009 तक 300 तक ले जाने की योजना है।
देश की जानी मानी कंपनी आईटीसी के कृषि कारोबार विभाग ने ‘ई–चौपाल’ के जरिए कमजोर बुनियादी ढांचागत सुविधाएं और विभिन्न मध्यस्थों की भागीदारी पर ध्यान दिया गया है। किसान अपनी फसल को मंडी के दामों पर बिना किसी मध्यस्थ के बेच सकते हैं। इसी के साथ किसानों को जोखिम प्रबंधन, बीज, उर्वरक, कीटनाशक और खाद जानकारी और फसल की खरीद जैसी सुविधाएं भी दी जाती हैं। आईटीसी ने ‘चौपाल सागर’ नाम से एक केंद्र भी बनाया है। कंपनी के इन केंद्रो से लगभग 40 कंपनियां अपने उत्पाद भी बेच रही हैं।
कॉर्पोरेट का नया चेहरा
भारत में सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने भी इस दिशा में अपने कदम उठाए हैं। निजी क्षेत्र के टाटा, बिड़ला समूहों के साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां ओएनजीसी, एनटीपीसी, एचडीएफसी और सेल ने अपने कारोबार में सामाजिक उत्तरदायित्व को अहम हिस्सा बनाया है। टाटा समूह हर साल कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत 800-1,000 करोड़ रुपये निवेश करती है। समूह कंपनी टाटा स्टील हर साल 200 करोड़ रुपये खर्च करती है। कंपनी अपनी औद्योगिक इकाइयों के आस–पास स्वास्थ्य देख–रेख, भोजन की उपलब्धता, शिक्षा जैसी मूल जरूरतों के लिए भी काम करती है।
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड एडस और तपेदिक के सैकड़ों मरीजों को मोड़ा गांवों में केन्द्र के जरिये इलाज मुहैया कराती है। इसके अलावा नाइकी, कोक और सिटीबैंक भी खुले वैश्विक मंच के जरिये कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ी प्रतियोगिताओं के लिए प्रायोजक बनते हैं। 300 करोड़ अमेरिकी डॉलर वाले अवंता समूह की पेपर बनाने वाली कंपनी बलारपुर इंडस्ट्ररीज लोगों के विकास और पर्यावरण को लेकर काफी सजग है। देश की दूरसंचार प्रमुख कंपनी भारती एयरटेल ‘सत्य भारती’ स्कूल के प्राइमरी स्तर के 1000 विद्यालय बना रही है।
गांव बने बड़े बाजार
देहाती बाजारों की राह अब बड़े–बड़े कॉर्पोरेटों को भी आसान लगने लगी है।हुंडई मोटर्स ने जहां गांव में एक बड़ा बाजार देखते हुए अपने मॉडलों को गांवों में पेश करने की योजना बनाई है, वहीं दोपहिया वाहन बनाने वाली कंपनी टीवीएस ने अपनी बाइकों को ई–चौपाल के जरिये गांव–गांव ले जाने का मन बनाया है।
टीवीएस की बाइकों की सालाना बिक्री लगभग 12 लाख है, जिसमें गांवों का योगदान 50 प्रतिशत है। इसके अलावा नोकिया, एयरटेल और वोडाफोन जैसी मोबाइल फोन कंपनियों ने भी किसानों के लिए विशेष पैकेजों के तहत अपने उत्पाद पेश किए हैं। जीवन बीमा कंपनियां भी स्वेच्छा से गांवों में कारोबार का विस्तार कर रही हैं।