घरेलू बाजार में दिनोदिन कपास की आसमान छूती कीमतों की वजह से लुधियाना का कपड़ा उद्योग मुसीबत में है।
रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ महीनों में कपास की कीमत में करीब 35 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी वजह से कपड़ा उद्योग चिंता से घिरा हुआ है। पंजाब स्थित कपड़ा इकाइयां इस वक्त असमंजस की स्थिति में हैं। क्योंकि लागत मूल्यों में बेतहाशा वृध्दि हो रही है इस कारण से इन इकाइयों के मुनाफा मार्जिन पर साफ असर देखने को मिल रहा है।
फिर भी ये इकाइयां इस पसोपेश में हैं कि सूती कपड़ों की कीमतें बढ़ाई जाएं या नहीं। हालांकि शहर के कई उद्योगपति ऐसे भी हैं, जो फिलहाल कीमतों में कोई फेरबदल नहीं करना चाहते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उन्होंने शुरुआत में ही ऑर्डर बुक कर लिया था, जब कपास की कीमतें नहीं बढ़ी थीं। लेकिन वस्त्र मालिकों का कहना है कि जब नए ऑर्डर को उच्च दरों पर बुक किया जाएगा तो स्वत: ही सूती कपड़ों की कीमतों में भी संशोधन करना पड़ेगा।
सुपरफिशियल निटवियर के अजित लाकड़ा बताते हैं कि अगर आने वाले समय में भी ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पंजाब के लघु और मझोले उद्योगों पर ताला लग जाएगा और साथ ही राजधानी की कई बड़ी इकाइयों के मुनाफे मार्जिन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लाकड़ा ने बताया कि घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह देश से कपास का निरंकुश निर्यात है। वे कहते हैं कि विदेशी कंपनियों ने हमारे घरेलू बाजार से कच्चे कपास की खरीदारी शुरू कर दी है और वे उन देशों को सप्लाई कर रही हैं, जहां उन्हें बेहतर लाभ मिलता है।
उन्होंने कहा कि देश से निर्यात किए जाने वाले कपास पर रोक लगाने के लिए सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। लाकड़ा बताते हैं कि सिर्फ कपास की कीमत बढ़ने की वजह से ही वस्त्र उद्योग पर मुसीबतों का पहाड़ नहीं टूट पड़ा है बल्कि बीते कुछ महीनों में कच्चे माल की कीमतों में हुई वृध्दि ने भी खासा असर डाला है। जहां एक ओर लागत मूल्यों में बढ़ोतरी की वजह से भारतीय वस्त्र उद्योग प्रतिस्पर्धी अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी पीछे छूट गए हैं वहीं मुद्रास्फीति की बढ़ती दर घरेलू बाजार को निगलते जा रही है।
रेज यूनिट के प्रबंध निदेशक श्याम बंसल ने बताया कि केवल कपास ही नहीं बल्कि वस्त्र उद्योग में इस्तेमाल में लाई जाने वाली वस्तुएं जैसे-एक्रेलिक धागा, शुध्द ऊन, मिश्रित ऊन आदि की कीमतों में भी 10 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। नाहर समूह के प्रबंध निदेशक कमल ओसवाल ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि कुछ महीनों से कपास की कीमतों में हो रही लगातार वृध्दि की वजह से पंजाब स्थित वस्त्र उद्योग को बड़ा झटका लगने वाला है। दिनोदिन बढ़ती महंगाई की वजह से आम लोगों की जेब पर जबरदस्त असर पड़ रहा है और यही वजह है कि वे कपड़ों पर अब कम खर्च कर रहे हैं।
परिधानों की बिक्री में करीब 15 फीसदी की कमी आई है। अब चूंकि कपड़ों की बिक्री में काफी कमी आ गई है इस वजह से वस्त्र इकाइयां कीमतों को बढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं रही हैं, भले ही उन्हें नुकसान का ही सामना क्यों न करना पड़े। वस्त्र आयुक्त कार्यालय के पूर्व सहायक निदेशक और वर्तमान में कपड़ा सलाहकार यू के शारदा ने बताया कि लागत मूल्यों में बढ़ोतरी से स्वाभाविक है कि सूती कपड़ा उत्पादों की कीमतों में भी बढ़ोतरी होगी।
कुवंम इंटरनेशनल फैशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजीव गुप्ता ने बताया कि कपास की बढ़ी हुई कीमत और मुद्रास्फीति की आसमान छूती दरों ने वस्त्र उद्योग के मुनाफे को पूरी तरह चौपट कर दिया है। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआईटीआई) के सदस्यों ने बताया कि चूंकि घरेलू बाजार में कपास की कीमत सातवें आसमान पर है इसलिए सरकार इस बात का खास ध्यान रखेगी की भविष्य में वस्त्र उद्योग को किसी तरह का नुकसान न हो। लिहाजा सरकार घरेलू बाजार में कपास की कीमतों को स्थिर करने के लिए कपास के निर्यात पर रोक लगाने की कोशिश करेगी।