महाराष्ट्र सरकार उद्योग जगत के लिए नए नियम लाने की तैयारी में है। सरकार पर्यावरण के मुद्दे पर सख्त नियमों के पालन की तरफ इशारा भी कर रही है। सरकार की तरफ से कंपनियों को अपनी आदतों में बदलाव और पर्यावरण की रक्षा के लिए कॉर्पोरेट कंपनियों, गैर सरकारी संगठनों और आम नागरिकों को एकजुट होकर काम करने की अपील की है।
महाराष्ट्र सरकार के पर्यटन एवं पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा भारत के लिए समुद्री और जमीनी कचरे तथा प्रदूषण का प्रबंधन तेज करने के लिए आर्थिक अवसर विषय पर आयोजित परिचर्चा में कॉर्पोरेट कंपनियों को संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु में बदलाव के कारण कई तरह की समस्या सामने खड़ी हो रही है, इस बात से सभी कंपनियां और कॉर्पोरेट घराने अवगत है। उन्होने कहा कि यहां उपस्थित हम सभी और एनएसई पर सूचीबद्ध कंपनियां इस तथ्य से अवगत हैं कि हमारी आस-पास की जलवायु बदल चुकी है। पिछले 13 महीनों में मुंबई और महाराष्ट्र ने तीन-तीन तूफ़ानों का सामना किया है। 250 एमएम तक वर्षा हुई और भारी बाढ़ आ गई। ऐसी स्थिति पहले कई दशकों में नहीं आई थी। पिछले तीन वर्षों में मुंबई शहर में 3000 एमएम से अधिक वर्षा हुई है। भारी बारिश से फसलों, अवसंरचनागत आवासीय परिसम्पतियों और संपत्तियों के अलावा समय-समय पर मानवीय जिंदगियों का नुकसान हुआ। ये सभी घटनाएं हमारे लिए चेतावनी हैं कि हम सभी को एकजुट होकर छोटी-छोटी पर्यावरण हितैषी आदतें विकसित करने और पर्यावरण के साथ अधिक तालमेल बनाकर जीने की ज़रुरत है।
स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हर एक कंपनी जिम्मेदारियों से अवगत हैं। हम सभी को – सरकारों, व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों को जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों से भावी पीढ़ियों को बचाने के लिए एकजुट होने की ज़रुरत है। आदित्य ठाकरे ने कॉर्पोरेट कंपनियों, गैर सकारी संगठनों और आम लोगों सहित सभी हितधारकों से अपनी-अपनी दैनिक आदतों में छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण बदलाव करने का आग्रह किया। उन्होंने हमारे जीवन को सरल बनाने के लिए अपने जीने के तौर-तरीकों में सकारात्मक बदलाव करने की सलाह दी। उन्होंने अपील की कि हम ज़रुरत नहीं होने पर पानी के नल को बंद करके पानी बचा सकते हैं, अनावश्यक खपत रोक कर बिजली की बचत कर सकते हैं, स्वच्छ ईंधन वाले विद्युत् वाहनों को अपनाकर ईंधन की बचत कर सकते हैं। ये सारे उपाय जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने में काफी सहायक होंगे। हमारी आदतों में इन छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलावों से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए सरकारों, कॉर्पोरेट कंपनियों और गैर सरकारी संगथाओं को काफी मदद मिलेगी।
हम अपने राज्य में औद्योगिकीकरण और विनिर्माण करने वाले उद्योगों को आने से मना नहीं कर सकते। हमें अवश्य उनका स्वागत करना चाहिए। लेकिन बेहतर विसर्जन और उत्सर्जन मानदंडों तथा साधारण बारीकियों के साथ जलवायु परिवर्तन पर ध्यान दे सकते हैं। कॉर्पोरेट्स के संदर्भ में मैं कोई बड़ा कदम उठाने, बहुत ज्यादा खर्च करने या अपनी आकस्मिक पूँजी का आधा निवेश करने की बात नहीं कर रहा। मैं यह कहना चाहता हूँ कि अगर हम अपने कॉर्पोरेट घरानों, विनिर्माण उद्योगों, परिसरों में छोटे-छोटे बदलाव कर सकें, तो इससे परिवर्तन आएगा। सुनिश्चित करें कि आपके परिसरों, बागानों, घरों से जो कचरा निकलता है, उसे अलग-अलग कर लिया जाए।
मुंबई नगर निगम ने दैनिक कचरे में एक-तिहाई तक की कमी की है। 2016-17 में जो कचरा 10,000 मीट्रिक टन हुआ करता था, वह डेढ़ वर्षों में घट कर 6,500 टन पर आ गया है। इसके लिए नगर निगम ने कॉर्पोरेट्स, आवासीय समितियों, होटलों और रेस्त्राँओं को अपना-अपना कचरा खुद अलग-अलग करने, प्रबंधित और निपटान करने का अनुरोध करके सख्त कदम उठाये। कुल दैनिक कचरा संग्रह में इन संस्थानों का योगदान लगभग 30 फीसदी था। सरकार वैसे हर नवाचार को प्रोत्साहित करेगी जिनसे कचरे के संवहनीय निपटान करने, अपशिष्ट से मूल्य उत्पन्न करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिल सकती है।
हम जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक संकट, मत्स्य ग्रहण संकट, आर्थिक असफलता जैसी पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं। अब हमारे पास असफल होने का विकल्प नहीं बचा है। आपको हितधारकों को समझने की ज़रुरत है। हमारी नजर में प्लास्टिक एक डिजाईन फेलियर है। जब आबादी कम थी तब यह पदार्थ बढ़िया था। आज अगर हम इसे रीसाइकल करें तो भी यह हानिकारक है। इसलिए इसके कारण अनेक बीमारियां हो रही हैं। डिजिटल क्रान्ति के साथ-साथ वस्तुगत क्रान्ति। हम अलग-अलग तरह से उपभोग और लेन-देन कर रहे हैं। अब वस्तुगत क्रांति का समय है। अगले 12 वर्षों में हमें कारोबार करने के पुराने तरीके समाप्त करने की ज़रुरत है। हमें टॉक्सिक से बाहर निकलने की ज़रुरत है और हम अपनी पृथ्वी को विषैले युग में और नहीं धकेल सकते। वस्तुगत क्रान्ति का अर्थ है कि हमें अव्यवस्था से निकलने के लिए अपनी राह बनाने की ज़रुरत है। पुराने खिलाड़ी बहुत शिथिल हैं।
