पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी ने सोमवार को दो उपमुख्यमंत्रियों के साथ राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन दिक्कतें बनी हुई हैं। अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के एक सलाहकार, जिन्होंने मुख्यमंत्री बदलने वाले दिन ही इस्तीफा दे दिया था, ने कहा ‘अगले 15 दिनों में वह जो फैसले करेंगे, हम उनके आधार पर, नए मुख्यमंत्री को परखेंगे।’
चन्नी के नए सिपहसालार सुखजिंदर सिंह रंधावा हैं, जो गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं। यह क्षेत्र भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित है। अन्य सिपहसालार ओपी सोनी हैं, जो अमृतसर सेंट्रल से विधायक हैं। यह उस संसदीय क्षेत्र का हिस्सा, जिसने भाजपा के शीर्ष नेताओं-अरुण जेटली और इनके बाद हरदीप पुरी की लगातार दो हार देखी हैं। अमृतसर राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का निर्वाचन क्षेत्र है, जिन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपदस्थ किया और अब उन्हें राज्य में उन्हें प्रतिष्ठित माना जाता है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद चन्नी ने दो काम किए-उन्होंने अमरिंदर सिंह को एक छोटी-सी बैठक के लिए बुलाया और उन्होंने इस बात की घोषणा की कि राज्य में बिजली सस्ती की जाएगी तथा बिजली बिलों का पिछले पांच वर्षों का कोई भी बकाया आज ही माफ कर दिया जाएगा। अच्छी बात यह है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री ने पद से हटाए जाने से दो सप्ताह पहले ही इन दोनों घोषणाओं को अपनी कार्य सूची में डाल दिया था। गांवों में घरों के पानी के कनेक्शन के लिए बकाया भुगतान हटाया जाना था और गांव के घरों में पीने के पानी को पाइप से पहुंचाने के लिए बिजली का उपयोग करने वाली ग्राम सभाओं का बकाया खत्म किया जाना था। निवर्तमान सरकार के एक सूत्र ने कहा कि ये फैसले पहले भी विचार के लिए आए हुए थे। नए मुख्य मंत्री ने बस इनकी घोषणा ही की है। इन घोषणाओं से राज्य सरकार को करीब 200 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होगा। ईमानदारी से चन्नी ने कहा कि ये उनके फैसले नहीं हैं। ‘कैप्टन (अमरिंदर सिंह) पंजाब के पानी के तारणहार हैं। समय की कमी के कारण वह जो भी काम पूरा करने में असमर्थ रहे, उन्हें किया जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र को उन कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए जिनका किसान विरोध कर रहे हैं। चन्नी ने कहा ‘मैं अपना सिर काट दूंगा, लेकिन किसानों को कोई नुकसान नहीं होने दूंगा।’ उन्होंने कहा ‘हमें पंजाब को मजबूत करना है। यह किसानों का राज्य है। मैं केंद्र से कृषि कानूनों को वापस लेने का अनुरोध करता हूं।’
अलबत्ता चन्नी को पद संभालने के कुछ घंटों के भीतर ही विरोध का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं ने उनके खिलाफ यौन उत्पीडऩ की आवाज उठाई थी। भारतीय जनता पार्टी के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्वीट में कहा ‘कांग्रेस ने चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना, जिन्हें तीन साल पुराने मीटू मामले में कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। उन्होंने वर्ष 2018 में कथित रूप से एक महिला आईएएस अधिकारी को अनुचित संदेश भेजा था। इस मामले को दबा दिया गया था, लेकिन जब पंजाब महिला आयोग ने नोटिस भेजा, जो यह मामला फिर से सामने आ गया। अच्छा किया राहुल।’ लेकिन यह समस्या का केवल एक हिस्सा ही है। पंजाब में कांग्रेस के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं-नई मंत्रिपरिषद का गठन करना और इस बात का अनुमान लगाने की कोशिश करना कि पद छोडऩे वाले नेता अमरिंदर सिंह अब क्या करेंगे। मंत्रिपरिषद में हितों को संतुलित करने के लिए राजनीतिक पेचीदगियों की आवश्यकता होगी। सुनील जाखड़, जो जुलाई में नवजोत सिद्धू को पीसीसी प्रमुख नियुक्त किए जाने पर हटाए गए थे, ने उस समय तीखी प्रतिक्रिया जताई, जब पार्टी के केंद्रीय नेता और पर्यवेक्षक हरीश रावत ने कहा कि पंजाब में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव नवजोत सिद्धू की निगरानी में लड़ेगी, न कि नए मुख्यमंत्री की निगरानी में। मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत चन्नी के शपथ ग्रहण वाले दिन रावत का यह बयान कि चुनाव सिद्धू की निगरानी में लड़े जाएंगे, चौंकाने वाला है। हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के अगले कदम के संबंध में अभी कोई स्पष्टता नहीं है। अगर भारतीय जनता पार्टी उन्हें पार्टी में शामिल करना चाहती है, तो इसके लिए उसे सर्वोच्च बलिदान देने की जरूरत होगी यानी तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ेगा, क्योंकि इसके बिना अमरिंदर सिंह से उस तरफ जाने की संभावना नहीं है। अमरिंदर सिंह के खेमे के सूत्रों ने कहा कि भाजपा पांच साल के स्थगन की पेशकश कर सकती है और यह भी मंजूर करने लायक होगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह के एक सलाहकार ने कहा कि आखिरकार सरकार ने किसानों को कृषि कानूनों के क्रियाशील होने को दो साल के लिए टालने की पेशकश की ही थी, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि कैप्टन भाजपा के समर्थन से अपनी पार्टी शुरू कर सकते हैं। लेकिन कृषि कानूनों पर गतिरोध को ध्यान में रखते हुए भाजपा ऐसी पार्टी का समर्थन कैसे करेगी, यह चिंतन का विषय है।
