सार्वजनिक-निजी साझेदारी योजना के तहत जिन राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का विकास किया जाना है, उनमें भले ही कम ही कंपनियों की दिलचस्पी हो, मगर विभिन्न राज्य सरकारों की राजमार्ग परियोजनाओं में बुनियादी क्षेत्र की कंपनियां खासी दिलचस्पी दिखा रही हैं।
गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा जैसे राज्यों में पीपीपी योजना के तहत बनाए जाने वाले राजमार्गों को बेहतर प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। दरअसल, राज्य की परियोजनाओं को लेकर कंपनियों में अधिक उत्साह होने की एक वजह इन परियोजनाओं का वाणिज्यिक रूप से अधिक आकर्षक होना है।
बोलियां मंगाने के लिए राज्य सरकार ने जो दस्तावेज जारी किए हैं उनमें मौजूद शर्तें राज्य सरकार की परियोजनाओं को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की परियोजनाओं के मुकाबले अधिक आकर्षक बनाती हैं।
राज्य की परियोजनाओं को लेकर कंपनियों में अधिक उत्साह होने की एक वजह इन परियोजनाओं के लिए जमीन सौंपे जाने का आश्वासन भी है। उदाहरण के लिए गुजरात राजमार्ग विकास परियोजना (एसएचडीपी) के बोली दस्तावेज में एक क्लॉज है कि जो कंपनी इस परियोजना के लिए बोली जीतती है उसे राज्य सरकार की ओर से परियोजना की शुरुआत में ही 95 फीसदी जमीन सौंप दी जाएगी।
वहीं एनएचएआई की परियोजनाओं के लिए शर्तों में कहा गया है कि बोली जीतने वाली कंपनियों को शुरुआत में केवल 50 फीसदी जमीन ही सौंपी जाएगी। इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर इनिशियेटिव के सीओओ सुरेश कृष्णा ने बताया, ‘गुजरात एसएचडीपी में जिन उपबंधों का जिक्र है उनसे कंपनियों में परियोजना को लेकर अधिक विश्वास पैदा होता है। डेवलपर्स के लिए जमीन अधिग्रहण एक अहम मुद्दा है।’
एनएचएआई की तुलना में राज्यों की परियोजनाओं को लेकर कंपनियों में कितना उत्साह है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक सरकार ने राज्य में 22,000 किमी सड़क के निर्माण का प्रस्ताव रखा था। इस परियोजना के लिए 30 से अधिक कंपनियों ने उत्साह दिखाया है। वहीं आंध्रप्रदेश में 450 किमी सड़क के निर्माण के लिए 20 बोलियां आई हैं।
कुछ ऐसा ही गुजरात में भी है जहां 637 किमी लंबी गुजरात रोडवेज परियोजना के लिए 19 कंपनियों की ओर से 46 बोलियां आई हैं। इस परियोजना के विकास पर तकरीबन 1,540 करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं, जिसके लिए रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर, जीएमआर समूह, गैमन इंडिया, एचसीसी जैसी दिग्गज कंपनियां भी दौड़ में शामिल हैं।
वहीं अगर इसकी तुलना एनएचआई की परियोजनाओं से की जाए तो कुल 37 परियोजनाओं के लिए बोलियां मंगाई गई थीं जिनमें से 15 के लिए एक भी बोली नहीं आई है। वहीं जिन 22 परियोजनाओं के लिए बोलियां आई भी हैं उनमें से 7 के लिए केवल एक-एक कंपनी ने ही उत्साह दिखाया है।
अगर उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश की सड़क परियोजनाओं को लें तो राज्य सरकार ने पीपीपी मॉडल के तहत परियोजनाओं के विकास के लिए योजना आयोग के दिशानिर्देशों का पालन तो किया है मगर इसमें उस उपबंध को दूर कर दिया गया है जिसके अनुसार अनुभव, तकनीकी विशेषज्ञता के आधार पर शीर्ष 6 कंपनियों को ही वित्तीय बोली के लिए चुना जाता है। इसके बजाय राज्य सरकार तकनीकी रूप से योग्य सभी कंपनियों को वित्तीय बोली में शामिल होने का मौका देती है।
केंद्रीय योजनाओं का नहीं मोह
राज्य सरकार की सड़क परियोजनाओं को लेकर कंपनियों में जहां खासा उत्साह है, वहीं कम सुविधाएं देने के कारण एनएचएआई की परियोजनाओं को नहीं मिल रही है तवज्जो
