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  अन्य समाचार  कृषि कानून रद्द : महाराष्ट्र के नेताओं ने बताया अभिमान की हार, किसानों की जीत
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कृषि कानून रद्द : महाराष्ट्र के नेताओं ने बताया अभिमान की हार, किसानों की जीत

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता | मुंबई—November 20, 2021 12:24 AM IST
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तीनों कृषि कानून रद्द होने को महाराष्ट्र के नेताओं ने इसे किसानों की जीत और केंद्र सरकार के अभिमान की हार बताया। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया। हालांकि राजनीतिक दल इसे चुनावी फैसला मान रहे हैं तो किसान नेता शंतिपूर्ण प्रदर्शन के आगे एक ताकतवर नेता को झुकने के लिए मजबूर होने की कहानी सुना रहे हैं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा देश में आम आदमी की ताकत को रेखांकित करता है। केंद्र सरकार को आज जैसी शर्मिंदगी से बचने के लिए बातचीत करनी चाहिए और अन्य दलों को विश्वास में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की वास्तविक प्रक्रिया जल्द पूरी होगी। इन कानूनों के खिलाफ पूरे देश में नाराजगी है। आंदोलन हो रहा और प्रदर्शनकारी किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं पर हैं। कई किसानों, जो अन्नदाता हैं, ने जान गंवा दी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों, उनके प्रावधानों और संभावित समस्याओं पर महाराष्ट्र विधानसभा के सत्रों के दौरान विस्तार से चर्चा हुई। मैं आने वाले समय में इन कानूनों को वापस लेने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करता हूं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में आगामी चुनावों में प्रतिकूल प्रतिक्रिया मिलने के डर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। पवार ने कहा कि मैं जब 10 वर्षों तक कृषि मंत्री रहा, भाजपा ने संसद में कृषि कानूनों का मुद्दा उठाया था जो उस वक्त विपक्ष में थी। मैंने एक वचन दिया था कि खेती राज्य का विषय है और इसलिए हम राज्यों को विश्वास में लिए बिना या बिना चर्चा के कोई फैसला नहीं करेंगे। मैंने व्यक्तिगत रूप से सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ-साथ मुख्यमंत्रियों के साथ दो दिवसीय बैठक की, उनके साथ विस्तृत चर्चा की और उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर गौर किया। इसी तरह देश के कृषि विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कुछ किसान संगठनों से भी राय मांगी गई। हम कृषि कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे, लेकिन हमारी सरकार का कार्यकाल समाप्त हो गया और नई सरकार सत्ता में आ गई।
पवार ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने बिना चर्चा और राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना तीन कृषि विधेयक पेश किए। इन विधेयकों का संसद में सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया था और उसकी कार्यवाही रोकी गई और मुद्दे पर बहिर्गमन हुए। हालांकि, सत्ता में बैठे लोगों ने जोर दिया कि वे विधेयकों पर आगे बढ़ेंगे और उन्हें जल्दबाजी में पारित किया गया।
राकांपा प्रमुख ने कहा कि नतीजन इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए। किसान मौसमी परिस्थितियों की परवाह किए बिना सड़क पर बैठे रहे और संघर्ष करते रहे। अंतत: जैसे ही उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव नजदीक आए और खासकर जब भाजपा के लोगों ने हरियाणा और पंजाब और कुछ अन्य राज्यों के गांवों में किसानों की प्रतिक्रिया देखी। वे इस पहलू की अनदेखी नहीं कर सके और आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। हालांकि जो हुआ वह अच्छा है लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि इस सरकार ने एक ऐसी स्थिति बना दी जिसमें किसानों को एक साल तक संघर्ष करना पड़ा।
पूर्व सांसद और स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के अध्यक्ष किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि अगर हम किसानों के प्रदर्शन को परिभाषित करना चाहते हैं तो हम कह सकते हैं कि किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करके एक ताकतवर नेता को झुका दिया और सरकार को उन कानूनों को वापस लेने के लिए विवश कर दिया, जो कुछ लोगों के फायदे के लिए लाए गए थे।  किसानों की इस जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि देश सच में लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन रखता है। उन्होंने कहा कि भले ही किसानों के प्रदर्शन का असर कम हो रहा था लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने (भाजपा) उन उत्तरी राज्यों में कोई सर्वेक्षण कराया, जहां चुनाव होने वाले हैं और इस सर्वेक्षण से पता चला होगा कि किसान नाखुश हैं और इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया।
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अजित नवले ने कहा कि यह किसानों और विभिन्न किसान संघ, संगठनों की जीत है, जिन्होंने पिछले एक साल से इन कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से और लोकतांत्रिक ढांचे का पालन करते हुए प्रदर्शन किया। वह उन सभी किसानों को सलाम करते हैं जो पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के किसान नेता विजय जवांधिया ने कहा कि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का मतलब यह नहीं है कि केंद्र सरकार किसानों के हितों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकती है। हमें कृषि कानूनों को निरस्त करने को लेकर बहुत सावधान रहना होगा। विदर्भ में बड़ी मात्रा में कपास की खेती होती है और केंद्र सरकार को कपास खरीद के एमएसपी के संबंध में कोई कड़ा फैसला लेना चाहिए। कुछ साल पहले मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का फैसला किया था लेकिन वह कैसे यह कर रहे हैं? उन्हें कुछ फैसले लेने होंगे और कुछ सुधार लाने होंगे जो सच में किसानों के लिए फायदेमंद हों।
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि यह किसान आंदोलन की विजय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले का शिवसेना स्वागत करती है। 550 किसानों ने इस कृषि विधेयक कानून के विरोध में अपना बलिदान दिया है। देर आए दुरुस्त आए। आज मोदीजी ने उनके मुंह पर जोरदार तमाचा मारा जो अपने ही देश के किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी, फर्जी किसान कहकर संबोधित कर रहे थे, चाहे वो बीजेपी नेता हो या हो अंधभक्त।
कृषि कानून रद्द करने पर वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे ने कहा कि कृषि प्रधान भारत देश में किसान आत्महत्या करता है, किसान रास्ते पर उतरता है, किसान आंदोलन करता है, ये दुर्भाग्य भरी बात है। तीन साल से किसान रास्ते पर आंदोलन कर रहे हैं। कृषि कानून वापस होना देश के लिए यह समाधान भरी बात है। हमारे देश की परंपरा है, त्याग करना पड़ता है, बलिदान करना पड़ता है और संघर्ष करना पड़ता है। ये हमारे देश का इतिहास है। अन्ना ने आगे कहा कि अगर आगे किसानों पर अत्याचार हुआ तो फिर से बड़े पैमाने पर किसान सड़कों पर उतरेंगे।
उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त कृषि समिति के सदस्य अनिल घनवट ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी कदम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना। हमारी समिति ने तीन कृषि कानूनों पर कई सुधार और समाधान सौंपे, लेकिन गतिरोध को सुलझाने के लिए इसका इस्तेमाल करने के बजाय मोदी और भाजपा ने कदम पीछे खींच लिए। वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं और कुछ नहीं। गुरु नानक जयंती के मौके पर सुबह देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तीन कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए थे, लेकिन ‘‘हम सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद किसानों के एक वर्ग को राजी नहीं कर पाए।

 

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