Categories: लेख

…जब बन आए साख और भरोसे पर

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 8:00 AM IST

सीएनबीसी-टीवी18 के एक इंटरव्यू के दौरान आईसीआईसीआई बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक के. वी. कामत कभी थोड़े खुश तो कभी हैरान से नजर आ रहे थे।


वह किसी न्यूज चैनल पर 10 अक्टूबर(शुक्रवार) को बैंक के शेयर में 20 फीसदी गिरावट के बाद पहली बार दिखे थे। साक्षात्कार्रकत्ता ने बाजार में बैंक के बारे में फैली अफवाहों के बारे में भी पूछना चाहा। एक सवाल यह भी था कि क्या बैंक के प्रमोटर और बड़े अधिकारी भी आईसीआईसीआई बैंक में अपने शेयर बेच रहे हैं।

इस बात पर कामत से यह निवेदन भी किया गया कि वह अपनी प्रतिक्रिया दें। साक्षात्कार्रकत्ता ने यह पूछना जारी रखा, ‘ऐसा सुना गया है कि आईसीआईसीआई ने सरकार से राहत पैकेज के लिए भी संपर्क किया है। साथ ही यह संभावना जताई जा रही है कि भारतीय स्टेट बैंक इसे खरीद सकता है या अपने में मिला सकता है।’

कामत ने एक-एक सवाल का जवाब देना जारी रखा और अफवाहों को खारिज भी किया। एक मशहूर जनसंपर्क विशेषज्ञ का कहना था, ‘कामत ने बहुत बड़ी गलती की। उन्होंने जनसंपर्क प्रोटोकॉल को भी तोड़ दिया। यह बिल्कुल सही नहीं है कि संकट की घड़ी में कंपनी का मुख्य अधिकारी किसी अफवाह या आरोपों के बाबत बात करे। निश्चित तौर पर इससे अफवाह को ज्यादा मजबूती मिलती है।’

प्रतिक्रिया का असर

अगर कंपनी सीधे तौर पर अपनी प्रतिक्रिया देती है तो लोगों पर उसका नकारात्मक असर ही होता है। हालांकि आईसीआईसीआई बैंक ने इस लेख में भी हिस्सा लेने के लिए मना कर दिया।
इस तरह का रवैया कोई पहली मिसाल नहीं है।

कुछ साल पहले भी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)ने भी यह दावा किया था कि भारत में बेचे जाने वाली कोल्ड ड्रिंक्स में कीटनाशक की मात्रा ज्यादा है। उस पर पेप्सीको इंडिया और कोका कोला इंडिया के मुख्य अधिकारियों ने भी उस रिपोर्ट की विश्वसनीयता को चुनौती दी थी। 

 कुछ ऐसा ही मसला था कैडबरी इंडिया का। छह साल पहले महाराष्ट्र के कुछ आउटलेट पर कैडबरी की डेयरी मिल्क चॉकलेट में कीटाणु पाए गए।

महाराष्ट्र के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कैडबरी की खराब तरह से की जाने वाली पैकेजिंग को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

कैडबरी ने एफडीए के आरोप पर ऐतराज जताया और उसकी बिक्री कम हो गई। जिन कंपनियों का अभी जिक्र किया गया वे सभी बेहद पेशवर, सक्षम और बढ़िया प्रदर्शन करने वाली रही हैं लेकिन उन्होंने विवादों से जुड़े मसले पर जिस तरह से अपनी प्रतिक्रिया दी उसे सही नहीं कहा जा सकता।

आईसीआईसीआई बैंक भी इस स्थिति को नहीं भांप पाया। पिछले साल अगस्त में ही बैंक की वित्तीय स्थिति को लेकर कुछ अफवाह फैली थी।

इसकी वजह यूबीएस सिक्यूरिटीज की एक रिपोर्ट मानी जा सकती है जिसके मुताबिक इस बैंक की कुछ पूंजी अमेरिका के सब प्राइम मार्केट में भी लगी हुई थी।

दरअसल, इस बार बैंक को 10 अक्टूबर के संकट का सामना करने के बाद किसी सटीक प्रतिक्रिया के साथ आने में दो दिन का वक्त लग गया।

सोमवार को सुबह में अपने सभी उपभोक्ताओं को ईमेल भेजते हुए यह आश्वस्त किया कि उनकी वित्तीय स्थिति बेहतर है। यह भी एक तरह से अपनी बात को दुहराने जैसा ही था।

अप्रैल 2003 में आईसीआईसीआई बैंक में चार दिनों तक फूटी कौड़ी भी जमा नहीं हुई थी। लेकिन न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक आईसीआईसीआई बैंक ने अफवाहों और अटकलबाजी को नजरअंदाज करने की रणनीति ही अख्तियार की थी।

ग्राहकों का भरोसा

यह तो बिल्कुल साफ है कि इस दफे बैंक ने अफवाहों को नजरअंदाज नहीं किया। फ्यूचर ब्रांड के संतोष देसाई कहते हैं, ‘इस बार यह बात बिल्कुल अलग थी। क्योंकि इस बार न केवल आईसीआईसीआई बैंक के लिए बल्कि पूरे बैंकिंग सेक्टर के लिए माहौल उपयुक्त नहीं था।’

आईआईएम अहमदाबाद के मार्केटिंग के प्रोफेसर पीयूष कुमार सिन्हा कहते हैं, ‘कोई भी कंपनी ऐसी स्थिति में जल्दी और सही प्रतिक्रिया दे, इसके लिए यह बेहद जरूरी है कि उसके ग्राहकों को उस ब्रांड पर बहुत भरोसा हो। किसी भी स्थिति को स्वीकार करके उपभोक्ताओं के सामने यह कहना कि कोई समस्या है, यह साहस की बात है।

ऐसा साहस किसी कंपनी में तभी आता है जब उसे ग्राहकों पर पूरा भरोसा होता है।’ सिन्हा इस बात को स्वीकारते हैं कि कंपनी ग्राहकों का यह भरोसा किसी संकट दौरान नहीं बल्कि उसके पहले ही तैयार कर सकती है।

दरअसल कंपनियां अपनी प्रतिक्रिया अपने विरोधी पक्ष को देने के लिए तुरंत आतुर हो जाती हैं। मसलन कैडबरी ने रिटेलर को दोष दिया।

आईसीआईसीआई बैंक ने बाजार के बिचौलियों को इसका दोषी बताया वहीं पेप्सी और कोक ने सीएसई की रिपोर्ट पर ही सवाल उठाए। देसाई की मानें तो कंपनियां इस स्थिति में ऐसी ही गलतियां करती हैं।

लेविक स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस के सीईओ रिचर्ड एस. लेविक का कहना है, ‘किसी भी दूसरे कारणों को जिम्मेदार ठहराना अच्छा नहीं होता। इसके लिए बेहतर यही होता है कि कोई ठोस सच सामने रखा जाए।’

आईसीआईसीआई बैंक ने ईमेल और विज्ञापनों के जरिए सोमवार की सुबह बैंक की पूंजी के आंकड़े का हवाला देते हुए जो तर्क दिया वह अधिकारी की बाइट से ज्यादा दमदार था। सिन्हा का कहना है, ‘कंपनी जब शेयरधारकों के सामने सभी तथ्यों को सामने रखकर जांच के लिए तैयार होती है तो इससे कंपनी को काफी सकारात्मक मदद भी मिलती है।’

संकट के तारणहार

जैसे ही मूडी और स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स जैसी अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने कहा कि आईसीआईसीआई बैंक की वित्तीय स्थिति एकदम सही है, इसके कुछ घंटों बाद बैंक के शेयर फिर से संभलने लगे और इनमें तेजी आ गई।

कुछ इसी तरह की बात कोक और पेप्सी के साथ भी हुई थी जब सुनीता नारायण के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इन कंपनियों के पेय पदार्थों में खतरनाक रसायन मौजूद हैं।

लेकिन जब ब्रिटिश सरकार की सेंट्रल साइंस लैबोरेटरी (सीएसएल) ने इन कंपनियों को क्लीन चिट दी तब जाकर ही इन कंपनियों को राहत मिली थी।

आपको बता दें कि ब्रिटेन की इस लैबोरेटरी की दुनिया भर में काफी प्रतिष्ठा है। कोका कोला इंडिया के प्रवक्ता का कहना है, ‘यह हमारी जिम्मेदारी थी कि हम अपने उत्पादों के बारे में फैले भ्रम को दूर करें। हमको सुनिश्चित करना था हमारे उत्पाद पूरी तरह उच्च गुणवत्ता वाले और सुरक्षित हैं।’

लेकिन इसमें भी उतनी जल्दी नहीं हुई थी जितनी कि होनी चाहिए थी। लेविक बताते हैं कि सीएसई की रिपोर्ट मीडिया में आने के 3 हफ्तों बाद ही सीएसएल की रिपोर्ट आई थी और इन तीन हफ्तों में कीटनाशक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया था। दूसरी ओर जब कैडबरी चॉकलेट में कीड़े की बात आई थी, तब अमिताभ बच्चन कैडबरी के लिए संकटमोचक के तौर पर उभरे थे।

उनके प्रचार अभियान ने न केवल ग्राहकों का भरोसा बरकरार रखा बल्कि कंपनी से जुड़े लोगों का हौसला भी बढ़ाया। कैडबरी ने बच्चन को जनवरी 2004 में अनुबंधित किया था। अक्टूबर तक आते-आते कंपनी की बिक्री का स्तर पहले जैसा हो गया।

कैडबरी के एक प्रवक्ता का कहना है, ‘अमिताभ बच्चन के प्रशंसक 6 से 60 साल की उम्र तक वाले हैं।’  वहीं, कीटनाशक विवाद के बाद कोका कोला ने आमिर खान और स्मृति मल्होत्रा ईरानी को अपने प्रचार अभियान में शामिल किया। वैसे, आमिर इससे पहले भी कोक के विज्ञापनों में नजर आ चुके थे लेकिन इस विवाद के बाद वह भी थोड़ सतर्क हो गए।

कोक के एक अधिकारी कहते हैं, ‘आमिर उत्पाद के परीक्षण के बाद ही विज्ञापन करने के लिए सहमत हो पाए।’ इस दिग्गज कोला कंपनी ने समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया कि जिसमें लोगों को आमंत्रित किया गया कि वे खुद उनके प्रोसेस को देख सकते हैं जहां पर उत्पाद तैयार होते हैं।

इसी कड़ी में अब बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान आईसीआईसीआई बैंक में अपना भरोसा दिखाते विज्ञापनों में नजर आ रहे हैं। इससे पहले वह प्रवासी भारतीय ग्राहकों को लुभाने के बैंक के प्रयास का हिस्सा रह चुके हैं। सिन्हा कहते हैं कि ब्रांड एंबेसडर फायदा पहुंचाते हैं।

उनका कहना है कि लोगों का अपने पसंदीदा सितारों में पूरा भरोसा होता है और लोगों का यही विश्वास होता है कि उनके पसंदीदा सितारे जिस ब्रांड का प्रचार कर रहे हैं वह पूरी तरह से सुरक्षित है। सिन्हा का कहना है कि मुश्किल वक्त में भी सितारे काम आते हैं।

कीड़ा प्रकरण के बाद कैडबरी को संभालने में  अमिताभ बच्चन का अहम योगदान रहा। वहीं देसाई का मानना है कि संकट के वक्त सेलेब्रिटी भी कंपनी के काम नहीं आते। इससे बेहतर तो हालात को संभालने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। 

सामाजिक उत्तरदायित्व

चेन्नई की प्राइम प्वॉइंट पब्लिक रिलेशंस के सीईओ के. श्रीनिवासन कहते हैं कि मुश्किल हालात को संभालने में सेलेब्रेटी काम नहीं आते। वह कहते हैं कि जब किसी बैंक को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हों तब उसके ग्राहकों को सबसे ज्यादा चिंता इसी बात की रहती है कि अमुक बैंक में उनका पैसा सुरक्षित भी है या नहीं।

उपभोक्ता व्यवहार को लेकर गुडपर्पज ने हाल ही में एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारतीय ग्राहक उन ब्रांडों को तरजीह देते हैं जो समाज की बेहतरी की दिशा में भी अपना योगदान देती हैं।

इस सर्वे में शामिल लोगों में से 87 फीसदी का कहना है कि वे उन ब्रांड को तरजीह देते हैं जो स्थानीय समुदाय के फायदे से जुड़ी हैं।

इसी तरह 90 फीसदी लोगों ने यही कहा कि वे सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने वाली कंपनियों के उत्पाद खरीदने को वरीयता देते हैं। इन कंपनियों ने इस्तेमाल किए गए पानी की भरपाई करने की भी शुरुआत कर दी।

इसके अलावा पेप्सी ने पर्यावरण की बेहतरी के लिए भी ‘वेस्ट टू वेल्थ’ नाम के कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कवायद में कोक भी पीछे नहीं है।  कोक ने वर्षा के जल संरक्षण के लिए एक कार्यकम शुरू किया। आईसीआईसीआई बैंक ने भी पिछले साल गरीब लोगों की आमदनी बढ़ाने के लिए एक फाउंडेशन शुरू किया है।

फाउंडेशन की वेबसाइट पर इस बात का उल्लेख है कि आईसीआईसीआई समूह हर साल अपने मुनाफे में से एक फीसदी इस फाउंडेशन को देगा।

First Published : December 8, 2008 | 10:11 PM IST