अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों (आईईईपीए) के तहत शुल्क लगाने के राष्ट्रपति के अधिकारों की वैधता पर सुनवाई शुरू कर दी मगर व्हाइट हाउस की व्यापार टीम उसके बाद भी एक के बाद एक व्यापारिक घोषणाएं करती आ रही है। डॉनल्ड ट्रंप के बतौर राष्ट्रपति दूसरे कार्यकाल के दौरान हुए पहले बड़े चुनावों में प्रमुख अमेरिकी राज्यों और शहरों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत के कुछ समय बाद ही टमाटर और एवोकाडो से लेकर बीफ तथा कुछ उर्वरकों तक कृषि उत्पादों पर पारस्परिक शुल्क वापस लेने की घोषणा कर दी गई। उसके अलावा कई व्यापार समझौतों पर बातचीत पूरी होने की जानकारी भी दी गई।
इनमें मलेशिया और कंबोडिया के साथ पारस्परिक व्यापार पर दो अंतिम समझौते तथा थाईलैंड और वियतनाम के साथ दो फ्रेमवर्क व्यापार समझौते प्रमुख हैं, जिन्हें ट्रंप ने अक्टूबर के अंत में दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान और पूर्वी एशिया की यात्रा के दौरान अंतिम रूप दिया। इसके बाद नवंबर में स्विट्जरलैंड और चार लैटिन अमेरिकी देशों अर्जेंटीना, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला और अल साल्वाडोर के साथ फ्रेमवर्क समझौते किए गए। जुलाई में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ दो व्यापार और निवेश समझौतों की घोषणा की गई थी लेकिन अमेरिका- दक्षिण कोरिया व्यापार समझौते की बारीकियां पिछले हफ्ते ही जारी की गईं। प्रमुख व्यापार समझौतों की विशेषताएं ध्यान देने लायक हैं।
अंतिम व्यापार समझौतों को प्रारंभिक घोषणा के काफी समय के बाद पूरा किया गया। फ्रेमवर्क समझौतों पर आगे बातचीत होनी है। लेकिन फ्रेमवर्क और अंतिम व्यापार समझौते कार्यकारी आदेशों के जरिये के गए हैं और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की तरह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इसलिए अंतिम व्यापार समझौतों में भी प्रावधानों पर बातचीत या उन्हें नए सिरे से तय करने की संभावना रहती है। यह बात हाल में नजर भी आई, जब अमेरिका ने यूरोपीय संघ के साथ अगस्त में हुए व्यापार समझौते के धीमे क्रियान्वयन से नाखुश होकर नए सिरे से समझौते की बातचीत शुरू कर दी।
हालांकि समझौतों में मौजूद अनिश्चितता को अनदेखा नहीं किया जा सकता मगर व्यापार समझौते पूरी तरह एकतरफा नहीं लग रहे हैं खासकर निर्यात करने वाले दक्षिण पूर्वी और पूर्वी एशियाई देशों के लिए। सर्वविदित है कि सभी व्यापार समझौतों में उस पारस्परिक शुल्क को कम करने की बात शामिल है, जिसे अमेरिका ने 2 अप्रैल को घोषित किया था और साझेदार देश भी ज्यादातर अमेरिकी माल को बिना शुल्क के अपने यहां आने देता है। लेकिन दक्षिण पूर्वी और पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के भीतर सबसे तरजीही राष्ट्र (एमएफएन) पर औसतन 5-10 फीसदी शुल्क ही लगता है। ऐसे में अमेरिका को इससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा।
इन अर्थव्यवस्थाओं में पहले से ही बड़ी संख्या में उत्पाद शुल्क-मुक्त श्रेणी में आते हैं। उदाहरण के लिए मलेशिया विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 83 फीसदी (आयात मूल्य के आधार पर 65.6 फीसदी) और कृषि क्षेत्र में 65 फीसदी (आयात मूल्य के आधार पर 74.5 फीसदी) उत्पादों को शुल्क-मुक्त श्रेणी में रखता है।
अमेरिका के प्रमुख निर्यात बाजार जापान में विनिर्मित वस्तुओं पर औसत एमएफएन शुल्क केवल 2.4 फीसदी है। कृषि क्षेत्र में औसत एमएफएन शुल्क लगभग 12 फीसदी है मगर 50 फीसदी से अधिक आयात मूल्य 0 से 5 फीसदी शुल्क श्रेणी में आता है। अमेरिका से चावल के आयात के लिए हालिया समझौते के तहत दी गई चर्चित रियायत भी जापान की पहले से मौजूद शुल्क-मुक्त सीमा के भीतर ही है।
वहीं अमेरिका जिन वस्तुओं की जांच धारा 232 के तहत कर रहा है, उन पर घटाए गए पारस्परिक शुल्क को दक्षिण कोरिया और जापान के साथ व्यापार समझौतों में शुल्क की सीमा मानने का प्रावधान उन दोनों देशों के अनुकूल है। उनकी निर्यात संरचना को देखते हुए यह साझेदार देशों के लिए काफी अनुकूल है। उदाहरण के लिए दक्षिण कोरिया के लिए 15 फीसदी की सीमा है, जो अमेरिका को उसके प्रमुख निर्यात जैसे लकड़ी, वाहन, फार्मा और सेमीकंडक्टर आदि पर संशोधित पारस्परिक शुल्कों के बराबर है। यह प्रावधान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आईईईपीए के तहत शुल्क लगाने की राष्ट्रपति की शक्तियों पर यदि सर्वोच्च न्यायालय का प्रतिकूल निर्णय आता है तो पारस्परिक शुल्कों की जगह धारा 232 के तहत शुल्क लागू हो सकते हैं चाहे यह बदलाव सही नहीं हो।
दिलचस्प है कि दक्षिण कोरिया ने सेमीकंडक्टर के लिए होड़ में बराबरी हासिल कर ली है क्योंकि उसने इस मामले में अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी ताइवान के साथ अमेरिका के संभावित व्यापार समझौते में शुल्क संबंधी नुकसान को पहले ही खत्म कर दिया है। बदले में कोरिया ने अमेरिका से आने वाले और सुरक्षा मानकों का पालन करने वाले वाहनों की केवल 50,000 यूनिट के आयात की सीमा खत्म करने का वादा किया है। हालांकि इसका बहुत मतलब नहीं है क्योंकि पहले ही अमेरिका से केवल 30,000 के करीब कार कोरिया आ रही हैं, जो पहले तय सीमा से भी बहुत कम है। इसी तरह मलेशिया ने 1,700 से अधिक वस्तुओं पर शुल्क में छूट हासिल की है, जिनमें से कुछ अमेरिका को होने वाले उसके प्रमुख निर्यात हैं।
वियतनाम की बात करें तो अमेरिका से जाने वाले उसके माल पर 40 फीसदी शुल्क लगाए जाने से उसके निर्यात पर काफी असर पड़ सकता था। मगर अमेरिका के पास माल के उत्पादन के मूल स्थान के नियम स्पष्ट नहीं हैं, इसलिए मामला अब भी अनिश्चित है। कंबोडिया में बड़े बाजार तक पहुंचने का अमेरिका के लिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि वहां केवल 20 करोड़ डॉलर का अमेरिकी माल ही जाता है। मार्के की बात यह है कि वैश्विक पर्यावरण और सामाजिक शासन मानकों, विशेषकर श्रम स्थितियों से संबंधित मानकों के अनुपालन के उसके संकल्प बेकार हो जाते हैं। इन्हें चीनी माल को उस रास्ते आने से रोकने के लिए बनाया गया था मगर व्यापार समझौते में इसे लागू करने के लिए प्रभावी व्यवस्था ही नहीं है।
जापान और कोरिया की निवेश प्रतिबद्धताओं पर काफी कुछ कहा गया है। कोरिया ने अमेरिका के साथ निवेश प्रतिबद्धताओं पर एक समझौता ज्ञापन किया है। इसमें वार्षिक पूंजी प्रवाह और कुल निवेश की समय-सीमा स्पष्ट रूप से बताई गई है। मगर निवेश प्रावधानों में कुछ अपवाद भी शामिल हैं। आर्थिक आपात स्थितियों जैसी परिस्थितियों में पूंजी प्रवाह की राशि और समय दोनों पर पुनर्विचार की गुंजाइश इस समझौते में मौजूद है। लेकिन निवेश परियोजनाओं के चयन मानदंड नहीं होना निरंतर अनिश्चितता को दर्शाता है और वार्ता दोबारा होने की संभावना भी बढ़ाता है।
जापान के साथ निवेश समझौता अपेक्षाकृत कम स्पष्ट है। कोरिया में जहां व्यापार समझौतों का विवरण देने वाला संयुक्त तथ्य पत्र जारी किया गया था, जापान के मामले में अमेरिका और जापान द्वारा अलग-अलग तथ्य पत्र जारी किए गए हैं। अमेरिका के व्यापारिक निर्णयों पर संभावित बढ़ते प्रभाव और संयुक्त निवेश परियोजनाओं में लाभ में हिस्सेदारी को लेकर जापान की अधिक सतर्क व्याख्या लंबे समय में इस समझौते को कमजोर कर सकती है। जब कई देश अमेरिका के साथ अपेक्षाकृत संतुलित व्यापार समझौता हासिल करने में काफी प्रयास लगा रहे हैं, इन द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में पुनर्विचार और नए सिरे से निर्धारण की संभावना अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों में किसी स्थिरता की झलक को रोकती है।
(लेखिका जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)