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चीन से कारोबार और आयात प्रतिस्थापन

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 5:12 AM IST

भारत-चीन सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच चीन में बने उत्पादों के बहिष्कार की मांग लगातार उठ रही है। इन मांगों का वास्तविक नीतिगत प्रभाव नगण्य है। इसी प्रकार यह बात भी सच नहीं है कि चीन के आयात के बिना भारत का काम नहीं चल सकता।
यदि दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ता है तो ऐसी स्थितियां बन सकती हैं जहां भारत और चीन आपसी व्यापार बंद कर दें। उस स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था पर कैसा असर होगा? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत बिना चीनी निवेश और आयात के किस हद तक अपना काम चला सकता है।
वैसी परिस्थिति बनने पर भी हालात बहुत अधिक गंभीर नहीं होंगे। पहली बात तो यह कि कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक व्यापार में गिरावट आ रही है और देश का निर्यात और आयात दोनों कम हो रहे हैं। बल्कि आयात में निर्यात की तुलना में अधिक गिरावट आई है। जाहिर है इस कमी में चीन से होने वाला आयात भी शामिल है।
दूसरा, ऑर्गेनिक रसायन चीन से सर्वाधिक आयात किए जाने वाले पदार्थ हैं लेकिन इन्हें आसानी से अन्य देशों से भी आसानी से खरीदा जा सकता है, हालांकि वहां से यह थोड़ा महंगा पड़ेगा। एक अन्य प्रमुख आयात जो चीन से किया जाता रहा है वह है इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी लेकिन इसके आयात में भी सन 2017 से लगातार गिरावट आ रही है। इस मामले में घटते व्यापार के बीच अगर वैकल्पिक स्रोत आजमाया जाए और घरेलू उत्पादन बढ़ाया जाए तो हम किसी भी तरह के झटके से बच सकते हैं। बाकियों की बात करें तो प्लास्टिक, स्मार्ट फोन, वाहन कलपुर्जे, दैनिक उपयोग की वस्तुएं और खिलौने आदि देश के शीर्ष स्तर के कुछ लोगों के काम आती हैं और अगर इन चीजों की कम खपत की जाए तो कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। भारत में चीन का निवेश बहुत अधिक नहीं है और जहां तक स्टार्ट अप कंपनियों में निवेश की बात है तो वित्तीय सेवा और खाद्य आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में हैं जो नीतिगत दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। यह सही है कि देश में बनने वाली दवाओं का दो तिहाई कच्चा माल चीन से आता है लेकिन इन्हें भारत में आसानी से बनाया जा सकता है। हालांकि यह थोड़ा महंगा है।
बड़ा ढांचागत प्रश्न यह है कि क्या हम चीन से होने वाले आयात को स्थायी रूप से कम कर सकते हैं? इसे संदर्भों के साथ देखना होगा। भारत आमतौर पर चालू खाता घाटा का सामना करता है। यानी हम जितनी वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करते हैं, उससे कहीं अधिक आयात करते हैं। इसकी दो वजह हैं। हम उस समय निर्यात करते हैं जब हमारे द्वारा बेची जाने वाली वस्तु की कीमत और गुणवत्ता विदेशियों को आकर्षक लगे। हम आयात इसलिए करते हैं क्योंकि वो चीज मूल्य और गुणवत्ता के आधार पर हमें आकर्षक लगती है। तुलनात्मक लाभ का मामला है और चालू खाते का घाटा साफ तौर पर यही बताता है कि हमारा तुलनात्मक लाभ कारोबारी साझेदारों से कम है। बहरहाल, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है इसकी एक और वजह खुलती है। वह यह कि खपत का हमारा रुझान अधिक आयात आधारित हो जाता है।
चीन के साथ हमारे व्यापारिक असंतुलन की यह कहानी में उपरोक्त दोनों बातें शामिल हैं। सन 1999 में हमारे कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 5.8 फीसदी थी। सन 2008 में यह बढ़कर 16.1 फीसदी हो गई और सन 2015 में 41 फीसदी। यह शुद्ध व्यापार असंतुलन की दृष्टि से भी बहुत अधिक था। वर्ष 2019 में यह घटकर 33 फीसदी रह गया। हालांकि इस गिरावट का कारण यह था कि हम अमेरिका, वियतनाम और बांग्लादेश से अधिक आयात करने लगे। इसलिए हमारा चालू खाता असंतुलन बना रहा।
अब हम चीन से वे चीजें आयात करते हैं जो कभी भारत में बनती थीं। मसलन ऑर्गेनिक केमिकल्स, प्लास्टिक और इलेक्ट्रिकल मशीनरी। इनके उत्पादन में चीन ने हमें बहुत पहले पछाड़ दिया। दूसरा वह खपत की वस्तुओं का सस्ता और भारी उत्पादन करता है। हमारी कुल खपत मांग में वाहन और दैनिक उपभोग की वस्तुओं की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। ये विनिर्माण योगदान करते हैं लेकिन आयात पर इनकी निर्भरता अधिक है। ऐसी वस्तुओं में मोबाइल फोन, एयर कंडिशनर और वाहन कलपुर्जे के कच्चे माल का सस्ता स्रोत चीन है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत की वृद्धि पूरी तरह आबादी के एक बड़े हिस्से की खपत पर निर्भर रही जिसमें आयातित वस्तुओं की हिस्सेदारी अधिक है। सिंथेटिक टेक्सटाइल्स, खिलौने और प्लास्टिक आदि के मामले में चीनी आयात का मुकाबला मुश्किल है। हम चीन से आयात इसलिए करते हैं क्योंकि वह चीजें काफी सस्ती दरों पर बेचता है।
अब ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए जहां भारतीय जीडीपी के प्रमुख संकेतक कृषि, वस्त्र, सस्ते आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा थे। वस्त्र को छोड़कर इनमें से कोई आयातोन्मुखी नहीं है। वस्त्र क्षेत्र में भी हमें सस्ते सिंथेटिक फाइबर का उत्पादन बढ़ाना होगा और इस उद्योग को सस्ते श्रम वाले उत्तरी और पूर्वी भारत में स्थापित करना होगा। तभी हम चीन, बांग्लादेश और वियतनाम का मुकाबला कर पाएंगे। बाकी चीजों के लिए बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स आदि की जरूरतों को भारतीय विनिर्माता आसानी से पूरा कर सकते हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार से दवाइयों के घटक का उत्पादन स्वत: गति पकड़ेगा। शिक्षा तब तक आयातोन्मुखी नहीं होगी जब तक हम अपने बच्चों को पढऩे के लिए विदेश भेजेंगे। देश में सस्ती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने पर इसमें कमी आएगी।
यानी सवाल आयात प्रतिस्थापन या निर्यात को बढ़ावा देने का नहीं बल्कि इस बात का है कि देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादकता कैसे बढ़ाई जाए? इसके लिए उत्पादन शैली बदलते हुए उन चीजों के उत्पादन पर जोर देना होगा जिनकी मांग आबादी का एक बड़ा तबका करता है, वह भी सस्ती दरों पर। हमने इस विचार की हमेशा अनदेखी की है। केवल हमारी खपत की मात्रा पर ध्यान केंद्रित करना, व्यापारिक मोर्चे पर हमें नीतिगत रूप से कमजोर करेगा। इसके बजाय हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि हम क्या खपत करते हैं।

First Published : July 6, 2020 | 11:17 PM IST