बैंक नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 31 जनवरी को पेटीएम पेमेंट्स बैंक के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए, तब से टिप्पणीकारों और स्वघोषित विशेषज्ञों ने भी यह घोषणा कर दी है कि अब कंपनी अपने अंत की ओर बढ़ रही है। हालांकि, किसी ने भी यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या आरबीआई के इस फैसले से पूरा पेटीएम ब्रांड ही खत्म हो जाएगा जो कुछ वर्षों से भारत के वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) क्षेत्र का प्रमुख चेहरा रहा है। नवंबर 2016 में जब सरकार ने नोटबंदी को लेकर घोषणा की थी तब से पेटीएम के सितारे बुलंदी पर आने शुरू हो गए थे।
निश्चित रूप से पेटीएम के प्रतिद्वंद्वियों ने पहले ही उस खाली जगह को भरने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है जो आरबीआई के निर्देश पर विजय शेखर शर्मा के नेतृत्व वाले पेटीएम के अपना कारोबार छोड़ने पर पैदा हो सकता है। हालांकि अब भी जमीनी स्तर पर नियामकीय कार्रवाई के होने में अभी कुछ समय है, ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि पेटीएम के खत्म होने का क्या असर होगा।
नोटबंदी के बाद बिना नकदी वाले दौर में आम जनता के लिए पेटीएम रातोरात विकल्प बन गया था। लेकिन अब इसके खत्म होने से वास्तव में भारत के भीतर और विदेश में फिनटेक की ब्रांडिंग और इससे जुड़े संदेश के लिहाज से बड़ी क्षति हो सकती है।
इस दौरान, अगर किसी के मन में पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर आरबीआई की कार्रवाई की दृढ़ता को लेकर कोई संदेह रहा भी होगा तो आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में दो ऐसे कार्यक्रमों में इन बातों को सिरे से खारिज करने के लिए काफी वक्त दिया जिन कार्यक्रमों का पेटीएम के मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं था।
पिछले दिनों मौद्रिक नीति पर संवाददाता सम्मेलन के दौरान दास ने इस मामले में सात-बिंदुओं वाले स्पष्टीकरण दिए जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जब नियमित संस्थाओं के साथ सुधारात्मक कार्रवाई के लिए द्विपक्षीय बातचीत कोई नतीजे देने में नाकाम रहती है तब निगरानी या व्यावसायिक प्रतिबंधों की अवधारणा कैसे काम करती है। 12 फरवरी को आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक के बाद दास ने फिर से पेटीएम से जुड़े सवालों के जवाब दिए। दास पांच साल पहले वित्त मंत्रालय (नॉर्थ ब्लॉक) से आरबीआई चले गए थे।
इस बार उन्होंने बैंक पर लिए गए फैसले की दोबारा समीक्षा से जुड़े सवाल को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। उन्होंने इस बात की ओर इशारा किया कि इस मुद्दे पर अक्सर पूछे जाने वाले सवालों से जुड़े जवाब भी उपभोक्ता-संबंधी मुद्दों पर आधारित होंगे और इसमें आरबीआई के निर्देश वापस लिए जाने से जुड़े सवालों के जवाब नहीं होंगे। गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक वित्तीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र का समर्थन करता है और करता रहेगा, साथ ही वित्तीय प्रणाली में नवाचार को बढ़ावा देगा।
दास उस समय वित्त मंत्रालय के उन कुछ प्रमुख अधिकारियों में से एक थे जिन्होंने नोटबंदी को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभाते हुए लोगों को उस समय के वित्तीय प्रौद्योगिकी समाधान अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया था। यह बात भी बेहद महत्त्वपूर्ण है कि पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से उनके कार्यालय में मुलाकात की जिसके तुरंत बाद ही आरबीआई ने अपना रुख स्पष्ट किया कि इस फैसले की समीक्षा के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
शर्मा और सीतारमण की संक्षिप्त बैठक के बाद जो बात सामने आई वह यह थी कि पेटीएम के मुद्दे पर आरबीआई के साथ चर्चा करने की आवश्यकता है क्योंकि यही इसके लिए सही मंच है। अगर वित्त मंत्रालय इस मामले में कोई भेद लेने की कोशिश भी कर रहा था तो हाल ही में पेटीएम मुद्दे पर सरकार के किसी भी हलकों से इस बाबत कोई खबर नहीं आई है। हालांकि पर्दे के पीछे यह चर्चा चल रही थी कि पेटीएम पेमेंट्स बैंक के चेयरपर्सन के रूप में शर्मा की जगह कंपनी के भीतर का कोई व्यक्ति या कोई बाहरी व्यक्ति ले सकता है।
जानकार सूत्रों के अनुसार, पेटीएम पेमेंट्स बैंक को लेकर, केवाईसी (ग्राहक को जानें) मानदंडों के उल्लंघन और एक ही पैन से कई खातों को जोड़ने जैसे कई गंभीर आरोपों की बात की गई है। इनमें काले धन को वैध बनाने जैसे आरोप भी हैं लेकिन इस गंभीर उल्लंघन वाले मामले की ज्यादा जानकारी नहीं मिली है। यह मामला अब इस वजह से जटिल होने लगा है क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पेटीएम मामले की जांच कराए जाने को लेकर अलग-अलग आवाजें उठ रही हैं।
ऐसा लगता है कि ईडी आरबीआई से सूचना पाने की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं राजस्व विभाग के अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि यदि काले धन को सफेद बनाने से जुड़ी कोई जानकारी मिलती है तो ईडी कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करेगा।
वहीं इसके समानांतर, पेटीएम की इस गाथा में चीन की एक कड़ी भी जुड़ गई है। दरअसल सरकार वन97 कम्युनिकेशंस की पेमेंट एग्रीगेटर सहायक कंपनी, पेटीएम पेमेंट्स सर्विसेज लिमिटेड (पीपीएसएल) में चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की जांच कर रही है। वन97 के पहले प्रमुख निवेशकों में चीन की निवेशक अलीबाबा भी थी लेकिन अब अलीबाबा से संबद्ध कंपनी ऐंट ग्रुप ने इसमें निवेश किया है।
पेमेंट एग्रीगेटर और पेमेंट गेटवे के नियमन के दिशानिर्देशों के तहत पेमेंट एग्रीगेटर के रूप में काम करने के लिए पीपीएसएल का आवेदन, आरबीआई के पास लंबित है जिसे वर्ष 2022 में खारिज भी कर दिया गया था। पेटीएम समूह के चीन से जुड़े ताल्लुकात चौंकाने वाले नहीं होने चाहिए।
पेटीएम के ‘देसी’ ब्रांड के रूप में उभार में काफी हद तक अलीबाबा का योगदान था जब तक कि चीन के इस समूह ने अपनी हिस्सेदारी खत्म नहीं कर ली। शर्मा पिछले कुछ वर्षों में अलीबाबा के जैक मा के साथ अपने करीबी संबंधों के बारे में बताने को लेकर बेहद मुखर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि एमेजॉन और देसी ब्रांड फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण करने वाले वॉलमार्ट के विपरीत, व्यापारी और कारोबारी पेटीएम को भारत के घरेलू ब्रांड के रूप में देखते हैं।
अब जब फिनटेक पर ज्यादातर बातचीत पेटीएम पेमेंट्स बैंक और शायद पेटीएम ब्रांड के अंत की ओर बढ़ रही है, ऐसे में स्टार्टअप के संस्थापकों को बैठकर यह सोचने की जरूरत है कि कैसे अपनी प्रसिद्धि और शिखर पर पहुंचने की बात हल्के में नहीं लेनी चाहिए और अपने उन प्रशंसकों को निराश नहीं करना चाहिए, जो मशहूर उद्यमियों के साथ महज एक सेल्फी लेने के लिए लंबी कतारों में खड़े रहे हैं।