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मीडिया में स्मार्ट बदलाव के बनते आसार

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वनिता कोहली-खांडेकर
Last Updated- May 05, 2023 | 7:36 PM IST

क्या स्मार्टफोन गरीब आदमी का टेलीविजन बन रहा है? और क्या स्मार्ट टीवी अमीर आदमी का स्मार्टफोन बन रहा है? सामग्री की खपत, स्मार्टफोन और अन्य उपकरणों के बढ़ते दायरे से जुड़े अधिकांश शोध और यहां तक कि कई अन्य साक्ष्य भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि कुछ मौलिक बदलाव हो रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर नील्सन की दूसरी भारत इंटरनेट रिपोर्ट 2023 के निष्कर्ष काफी चौंकाने वाले रहे हैं जिसके मुताबिक उपकरणों की साझेदारी के कारण दर्शकों की तादाद बढ़ी है। देश के ग्रामीण इलाके में लगभग 8.5 करोड़ उपयोगकर्ता (39 प्रतिशत) वीडियो देखते हैं या दूसरों के साथ ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होते हैं और पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं ऐसा करती हैं।

1990 के दशक में भारतीय भाषा के एक अखबार को करीब 4-11 पाठक साझा करते हुए पढ़ते थे। जैसे-जैसे प्रति व्यक्ति आय बढ़ी, इस तरह की साझेदारी लगभग नगण्य हो गई। ऐसा लगता है कि स्मार्टफोन के साथ भी ऐसा ही रुझान देखा जा रहा है।

नील्सन स्मार्टफोन साझा करने वाले लोगों की संख्या को नहीं दर्शाती है लेकिन यह इस बात की पुष्टि जरूर करती है कि इस तरह की साझेदारी कम कीमत वाले हैंडसेट रखने वालों के बीच ज्यादा है जबकि समृद्ध घरों में इस तरह की साझेदारी बेहद कम दिखती है। कुल मिलाकर स्मार्टफोन साझेदारी 36 फीसदी है, वहीं 10,000 रुपये या उससे कम कीमत वाले हैंडसेट रखने वालों के बीच इस तरह की साझेदारी का स्तर 44 फीसदी तक है।

इस बात से उस रुझान की पुष्टि होती है जिसके बारे में बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इस साल की शुरुआत में लिखा भी था। भारत में 83.7 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं जिनमें से 80 करोड़ ब्रॉडबैंड का उपयोग करते हैं। इनमें से करीब 6-6.3 करोड़ या 80 प्रतिशत से कम लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं।

लाखों भारतीयों के लिए एक स्मार्टफोन इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश करने का पहला माध्यम है। ये बैंडविड्थ की प्रोसेसिंग करने के लिहाज से सक्षम फोन हैं जो आपको फिल्म देखने, संगीत सुनने या ऑनलाइन बैठक करने जैसी सेवाएं देता है।

जैसे-जैसे स्मार्टफोन की कीमतें आसमान छूती गईं, मध्यम और निचले स्तर पर इसे अपनाने की रफ्तार थोड़ी थम गई और इसीलिए, 2021 और 2022 के अधिकांश समय में इंटरनेट की वृद्धि भी धीमी हो गई। जाहिर तौर पर जो लोग इंटरनेट के दायरे से बाहर रह गए थे, वे अब साझा स्मार्टफोन के माध्यम से इससे जुड़ रहे हैं। कॉमस्कोर डेटा भी इसी बात की तस्दीक करता है कि इस तरह के फोन का उपयोग या इस पर खर्च किया जाने वाला समय आखिर क्यों बढ़ रहा है।

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इन रुझानों का असर इस तरह के स्मार्टफोन की पहुंच का विस्तार होने से कहीं आगे जाता है। कुछ वर्षों से डिजिटल दुनिया की पूरी सोच और दृष्टिकोण इस धारणा पर आधारित है कि स्मार्टफोन एक व्यक्तिगत उपकरण है। हालांकि अब ऐसा नहीं है।

शहरी और संपन्न भारत में विकास का पहला चरण अब खत्म हो गया है। इस अगले दौर में, प्लेटफॉर्म, कंटेंट क्रिएटर्स और उपकरण निर्माताओं को चीजों को उस तरह से देखना पड़ सकता है जिस तरह टीवी ने किया था। वही लोग जो टीवी और फिल्मों के लिए प्रोग्राम बनाते हैं, वे अब ओटीटी के लिए बनाते हैं। टीवी प्रोग्रामिंग ने कभी भी गुणवत्ता के स्तर पर इतनी तेज छलांग नहीं लगाई जैसा कि आज ओटीटी पर देखा जाता है।

भारत में 97 प्रतिशत से अधिक टीवी वाले घरों में एक ही टीवी है। यहां तक कि संपन्न भारतीय परिवारों का भी मानना है कि टीवी देखना एक पारिवारिक गतिविधि का हिस्सा है। टीवी देखना कभी भी एक निजी पसंद नहीं बन पाया। देश के शहरी हिस्से में मोबाइल फोन का उपयोग किया जा रहा है और स्मार्टफोन के उपयोग की दर बढ़ रही है और इसके साथ ही यह गरीबों का टीवी बनता जा रहा है।

ऐसा तब हो रहा है जब डीडी फ्रीडिश दर्शकों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है जबकि यह एक स्वतंत्र और सरकार-नियंत्रित डीटीएच संचालन कंपनी है। डीडी फ्रीडिश की पहुंच 5.8 करोड़ घरों, या लगभग 27.8 करोड़ लोगों तक है। यह भारत के 25 फीसदी से अधिक सभी टीवी वाले घरों और सभी टीवी दर्शकों के एक-तिहाई से अधिक है।

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अब यह दंगल, द क्यू और शेमारू टीवी जैसे 70 निजी चैनलों को लगभग 3,000 करोड़ रुपये के विज्ञापन देता है, जो इसके मंच का उपयोग करते हैं। इस बात पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि यहां वृद्धि छोटे शहरों और ग्रामीण भारत यानी बड़े पैमाने पर हिंदी भाषी क्षेत्र की वजह से है जहां डीडी फ्रीडिश सबसे मजबूत है।

मुफ्त प्रोग्रामिंग तंत्र में यह वृद्धि यकीनन 1.61 लाख करोड़ रुपये के भारतीय मीडिया और मनोरंजन कारोबार में दूसरा सबसे बड़ा बदलाव है। यूट्यूब के साथ-साथ एक सरकार-नियंत्रित डीटीएच संचालक इस पारिस्थितिकी तंत्र के केंद्र में है और बेहद चौंकाने वाली बात है।

यूट्यूब की पहुंच हर महीने 46.2 करोड़ से अधिक लोगों तक होती है। कॉमस्कोर डेटा के अनुसार, यह उन सभी लोगों के 90 प्रतिशत से अधिक है जो समाचार, मनोरंजन या सूचनाओं के लिए नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। अगर आपको लगता है कि दोनों की तुलना नहीं की जा सकती है तो आप एक बार फिर से सोचें।

यूट्यूब इंडिया के प्रबंध निदेशक ईशान चटर्जी के साथ हाल ही में हुई लंबी बातचीत में एक बात सामने आई। उन्होंने कहा कि दिसंबर 2022 में टीवी स्क्रीन पर यूट्यूब देखते समय, भारतीय दर्शकों ने ऐसे वीडियो देखे जो मोबाइल और डेस्कटॉप पर देखे जाने वाले औसत समय से औसतन 250 प्रतिशत अधिक थे।

यह औसत सत्र 400 प्रतिशत से अधिक लंबा था। वह यह नहीं कहते हैं लेकिन स्पष्ट रूप से यूट्यूब कई स्मार्टटीवी मालिकों के लिए डिफॉल्ट विकल्प है खासतौर पर तब जब वे यह नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम वीडियो या अन्य ओटीटी पर क्या देखना है।

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इसका मतलब यह है कि उपकरणों, सामग्री की खपत और यहां तक कि कंटेंट क्रिएशन के बीच की रेखाएं अब मिट रही हैं। क्यू, डीडी फ्रीडिश पर एक चैनल है जो सफल यूट्यूब क्रिएटर्स का इस्तेमाल करके ‘बक बक बकलोल’ जैसे शो की पेशकश करता है जो इसके लिए अनूठा है।

ओटीटी पर देखी जाने वाली सामग्री का 40 प्रतिशत से अधिक सामग्री का प्रसारण और उसका उपभोग टीवी पर किया गया था। औसत दर्शक को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह सोनी टीवी पर ‘द कपिल शर्मा शो’ देखता है या ‘सोनी लिव’ पर।

सोनी या डिज्नी जैसे टीवी प्रसारक आखिरकार कीमतों के विनियमन और एकल टीवी के बंधन से मुक्त हैं और उनके पास भारत में कुछ सबसे सफल स्ट्रीमिंग वीडियो ब्रांड हैं जैसे कि सोनी लिव और डिज्नी+हॉटस्टार। सभी बदलते बाजारों की तरह, यह क्षेत्र भी बाधाओं के साथ-साथ संभावनाओं से भरा है।

First Published : May 5, 2023 | 7:36 PM IST