सन 1977 में जनता पार्टी के रूप में जो प्रयोग हुआ था और जिसमें भारतीय जनसंघ का विलय हुआ था, उसकी नाकामी के बाद 6 अप्रैल, 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना हुई तो लाल कृष्ण आडवाणी ने वादा किया था कि यह पार्टी अन्य राजनीतिक दलों से अलग होगी। वह ईस्टर रविवार का दिन था और कॉन्वेंट में शिक्षित आडवाणी ने कहा था कि उन्हें खुशी है कि उनकी पार्टी का उसी दिन पुनर्जन्म हुआ है जिस दिन ईसा मसीह का पुनर्जन्म हुआ था।
चवालीस वर्ष बाद लगभग उसी तारीख को भाजपा तीसरी बार सत्ता में आने के लिए प्रयासरत है। ऐसे में यह चर्चा दिलचस्प होगी कि पार्टी ‘दूसरों से अलग’ होने के अपने मूल विचार के कितने करीब है। छह वर्ष बाद जब यह पार्टी 50 वर्ष की हो जाएगी तब यह कैसी दिखेगी?
बाकियों (प्रमुख रूप से कांग्रेस) से अलग दिखने के मामले में बुनियादी सिद्धांत है विचारधारा और वैचारिक शुद्धता के साथ जुड़ाव, बेबाक हिंदुत्व, जनसंघ के संस्थापकों में से एक दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से उपजी आर्थिकी, कट्टर राष्ट्रवाद, विनम्र सादा जीवनशैली और एक सामूहिक नेतृत्व। अब अपनी राजनीतिक शक्ति के चरम पर पार्टी यह दिखाती है कि ‘अलग दिखने’ का तात्पर्य उसकी मूल प्रस्तावना से अलग हो चुका है। इसमें सबसे प्रमुख है सर्वशक्तिमान व्यक्ति की पूजा।
नरेंद्र मोदी के उभार के पहले पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की व्यवस्था थी। लंबे समय तक अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने यह नेतृत्व संभाला। इन्हें क्रमश: पार्टी की आवाज और दिमाग कहा जाता था। उन्हें परदे के पीछे से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का निर्देशन हासिल था।
यह सब वर्तमान से काफी अलग नजर आता है। मोदी अकेले ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं जिन पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता। यह पार्टी के मॉडल में बुनियादी बदलाव है। यह सही है कि मोदी ने ये सब हासिल किया है। जिस तरह इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के लिए अतिरिक्त वोट हासिल किए थे उसी तरह मोदी अपनी पार्टी के लिए अतिरिक्त मत जुटाते हैं। इन वोटों के बिना पार्टी शायद 200 सीट हासिल करने के लिए भी संघर्ष करेगी। वाजपेयी के दौर में पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 182 सीट का था।
अब मत प्रतिशत और लोक सभा सीटों के मामले में पार्टी उस आंकड़े के पास पहुंच रही है जिसका सपना तो उसके संस्थापकों ने देखा था लेकिन उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि उनके जीवन काल में वह हकीकत में बदलेगा। यह भाजपा के लिए बहुत अच्छी बात है लेकिन यह उसकी मूल प्रस्तावना में भी एक बदलाव लाती है। यह भाजपा उतनी ही मोदी की भाजपा है जितनी कि 1980 के दशक के आरंभ में कांग्रेस इंदिरा गांधी की थी।
समय के साथ आडवाणी और उनकी अध्यक्षता वाले पार्टी के थिंक टैंक ने ऐसी प्रस्तावना दी थी जिसने पार्टी को भारत में अन्य दलों से अलग दिखाया: उसकी चाल, चरित्र और चेहरा। अपनी बात को आगे बढ़ाने के लिए हम इस क्रम को बदलकर चाल, चेहरा और चरित्र कर देते हैं। चाल के मामले मे पार्टी में कोई विचलन नहीं नजर आता। उसकी वैचारिक स्थिति वही है जैसे कि उसके काम और नीतियां।
सबका साथ/सबका विकास/सबका विश्वास जैसा नारा शायद पार्टी के संस्थापकों में से किसी ने या आरएसएस ने तैयार कराया हो। पार्टी के तौर तरीके और उसकी दिशा में निरंतरता है। विदेश नीति से लेकर आर्थिक नीति और जन कल्याण, धर्म से लेकर समाज तक इसे देखा जा सकता है। चेहरे में जरूर बदलाव नजर आता है। इसमें सबसे प्रमुख है पार्टी में एक नेता का नेतृत्व।
इंदिरा गांधी के बाद वह पहले नेता हैं जो देशव्यापी स्तर पर मतदाताओं को अपने मनचाहे उम्मीदवार को मतदान करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यह भाजपा के लिए बहुत अच्छी बात है, भले ही यह पार्टी के संस्थापकों के विचारों के अनुरूप न हो क्योंकि वह 1980 के दशक में इंदिरा की कांग्रेस के खिलाफ थे। अब पार्टी उसी कांग्रेस की छाया बनती जा रही है।
आरएसएस के प्रभाव में कमी भी एक क्षति है लेकिन शायद संघ इसे इस तरह नहीं देखेगा। भाजपा का वैचारिक संस्थान न केवल कल्पनातीत सत्ता और प्रभाव का लुत्फ ले रहा है बल्कि उसके कई सपने भी सच हो रहे हैं: अनुच्छेद 370, राम मंदिर (शायद अगला नंबर वाराणसी और मथुरा का है), तीन तलाक आदि।
शायद मोदी के अधीन भाजपा के तेज विकास ने ही पार्टी को यह एहसास करा दिया कि उसके पास मानव संसाधन का संकट है। आरएसएस में उसके पास पर्याप्त संभावित नेताओं की भी कमी है। उन्हें तत्काल विलय और अधिग्रहण की आवश्यकता महसूस हुई। इसका एक पहलू हमें महाराष्ट्र और बिहार में देखने को मिला। इसके अलावा पारंपरिक तौर पर विरोधी रहे दलों से आने वाले नेताओं के लिए भी दरवाजे खुले हैं। उनमें से कई सत्ता के लिए आए, कुछ इसलिए आए कि उन्हें अपना नेता पसंद नहीं है। परंतु कई इसलिए भी आए कि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे और वे एजेंसियों से बचना चाहते थे।
विपक्ष चाहे ‘वॉशिंग मशीन राजनीति’ की जितनी बात करे भाजपा को इसकी परवाह नहीं। राजनीति में वैसे भी चुनाव नतीजे ही मायने रखते हैं। यही वजह है कि बाहर से आने वाले नेताओं को न केवल संरक्षण मिला है बल्कि उनमें से कई ऐसे अहम पदों पर भी पहुंचे हैं जो भाजपा के मूल नेताओं के लिए आरक्षित थे। पूर्वोत्तर के चार मुख्यमंत्री ऐसे ही हैं क्योंकि वहां भाजपा का बहुत मामूली अस्तित्व था। इनमें से हिमंत विश्व शर्मा तो पूर्वोत्तर के बड़े नेता बन चुके हैं।
आलाकमान के स्तर पर बैजयंत ‘जय’ पांडा जो बीजू जनता दल से आए थे वह अब उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रभारी हैं। असम के पूर्व मुख्यमंत्री और अब कैबिनेट मंत्री सर्वानंद सोनोवाल संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं। राष्ट्रीय उपाध्यक्षों में भी बाहरी नेता हैं। बासवराज बोम्मई मुख्यमंत्री रह चुके हैं और आंध्र प्रदेश से डी पुरंदेश्वरी और पंजाब में सुनील जाखड़ राज्य इकाइयों के प्रमुख हैं। अतीत में लालू परिवार और राष्ट्रीय जनता दल के वफादार रहे सम्राट चौधरी बिहार में उपमुख्यमंत्री हैं। यह पार्टी के चरित्र में जबरदस्त बदलाव है।
अपनी खिड़की से बाहर बहादुरशाह जफर मार्ग पर मुझे भाजपा के प्रचार अभियान का एक होर्डिंग नजर आता है। इसमें मोदी को भ्रष्टाचार से लड़ने वाला बताया गया है। काले रंग की छायाओं में विपक्षी नेताओं की तरह दिखने वाली आकृतियां भ्रष्ट व्यक्तियों की तरह उकेरी गई हैं जिनसे वह लड़ रहे हैं। इनमें से एक में आम आदमी पार्टी की टोपी में मफलर लपेटे एक नेता भी नजर आता है जिसे पहचानने में किसी को शायद ही दिक्कत हो। यह वह पार्टी है जो दूसरों से अलग चरित्र की बात करती है। अजित पवार से लेकर अशोक चव्हाण जैसे नेताओं के साथ यह कैसे साबित होगा ये भी देखने वाली बात होगी।
इस सप्ताह हिंदू ने सीएसडीएस-लोक नीति के सर्वेक्षण के नतीजे जारी किए। इनमें कहा गया है कि 55 फीसदी भारतीय मानते हैं कि बीते पांच साल में भ्रष्टाचार बढ़ा है। यह आंकड़ा 2019 से 15 फीसदी अधिक है। सभी आय वर्ग में यह एक जैसा है बल्कि गरीबों में कुछ ज्यादा ही है। इसके बावजूद भाजपा खुद को भ्रष्टाचार विरोधी के रूप में पेश कर रही है।
इसी सर्वेक्षण में कहा गया कि केवल 8 फीसदी लोग भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। यह राम मंदिर के साथ चौथे स्थान पर है। बेरोजगारी को 27 फीसदी लोग, कीमतों को 23 फीसदी और विकास को 13 फीसदी लोग बड़ा मुद्दा मानते हैं। यह एक अलग राजनीतिक युग है। क्या भारतीय मतदाता भी बदल चुके हैं।