कौशल विकास की राह में आने वाली समस्या के कई आयाम हैं। इसका एक आयाम ‘नियोक्ता संपर्क’ से जुड़ा है। ‘नियोक्ता संपर्क’ कुशल लोगों को रोजगार के कारगर अवसर मुहैया कराने के लिए आवश्यक है। दूसरा आयाम ‘उद्यमशीलता’ या स्व-रोजगार से संबंधित है, जो अनुबंध पर रोजगार देने वाली तेजी से बढ़ती व्यवस्था (गिग इकनॉमी) के बीच महत्त्वपूर्ण साबित हो रहा है। वाहन ठेके पर लेने वाली कंपनी के कर्मचारी अब उबर/ओला के चालक बन गए हैं। ओला एवं उबर जैसे मंचों ने इन कर्मचारियों को वेतनभोगी से ‘स्व-रोजगार प्राप्त उद्यमी’ बना दिया है। इस भूमिका के लिए वाहन चलाने के अलावा अतिरिक्त कौशल एवं क्षमताओं से भी लैस होना जरूरी है। तीसरा आयाम कौशल विकास एवं शिक्षा के जुड़ाव से संबंधित है। इस स्तंभ में कौशल विकास एवं बुनियादी शिक्षा के बीच पर्याप्त जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
शिक्षा का मूल लक्ष्य केवल रोजगार और रोजगार पाने की क्षमता हासिल करना ही नहीं वरन इससे भी कहीं अधिक आकर्षक एवं व्यापक है। प्राय: ऐसा माना जाता है कि शुरुआती, समग्र एवं जीवन पर्यंत कौशल एवं नई चीज सीखने के अवसर तक पहुंच हमारे युवाओं में रोजगार प्राप्त करने की क्षमता, उद्यमशीलता और कार्यबल के साथ तालमेल बिठाने की प्रतिभा विकसित करने के लिए के लिए जरूरी है। आदर्श रूप में सामान्य शिक्षा का तात्पर्य आधारभूत एवं विभिन्न विधाओं में काम आने वाले कौशल (ट्रांसफरेबल स्किल) का सामूहिक लक्ष्य हासिल करना है।
आधारभूत कौशल का ताल्लुक बुनियादी संज्ञानात्मक कौशल जैसे संख्यात्मक, साक्षरता और समस्या का समाधान करने की क्षमता से है। ये बातें अन्य कौशल सीखने के लिए जरूरी होती हैं। ट्रांसफरेबल स्किल सामाजिक, संचार एवं व्यवहारात्मक कौशल होते हैं जो विभिन्न कार्य संपादित करने में मदद करते हैं। अध्ययनों से इसका प्रमाण भी मिला है कि ये विभिन्न प्रकार के कौशल श्रम बाजार के विभिन्न पक्षों जैसे वेतन, उत्पादकता और बदलते कार्य परिदृश्य से तालमेल बिठाने पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। सामान्य शैक्षणिक प्रणाली में भी इन कौशल का समावेश अधिक बेहतर ढंग से हो पाता है। लिहाजा एक समग्र कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के पक्ष में मजबूत तर्क दिया जाता है क्योंकि इसका दायरा केवल व्यावसायिक शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। ग्रेड 12 तक व्यावसायिक शिक्षा की तरह ‘अनुप्रयुक्त शिक्षा’ (एप्लाइड लर्निंग) भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। ऐसे में इसे न केवल रोजगार एवं जीविका के साधन के नजरिये से देखा जाना चाहिए बल्कि सीखने के माध्यम के तौर पर भी देखा जाना चाहिए।
समग्र कौशल सीखने से विद्यालय से पेशेवर जीवन में जाने का सफर आसान रहता है। तकनीकी कौशल के महत्त्व को समझकर और इन्हें सिखाकर शिक्षा को बाजार एवं नियोक्ता की मांग के और अनुरूप बनाया जा सकता है। इसके अलावा शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण की पहल से सीमित सीमित शिक्षा के साथ श्रम बाजार का हिस्सा बनने वाला व्यक्ति भी अपने क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए महत्त्वपूर्ण कला-कौशल सीख सकता है। भारत के कार्यबल का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा 20 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों में काम करता है। वर्ष 2016 में आई एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट के अनुसार इस बात की संभावना कम है कि 72 प्रतिशत सूक्ष्म कंपनियां अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगी। भारत के कार्यबल का 80 प्रतिशत हिस्सा अनौपचारिक कंपनियों का हिस्सा है और केवल 3 प्रतिशत को ही औपचारिक प्रशिक्षण दिया गया है। अनुबंध पर श्रमिकों की नियुक्ति के चलन के बाद कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने में कंपनियों की रुचि लगातार कम हो रही है। ऐसी स्थिति में स्कूली प्रणाली का हिस्सा होने के समय ही युवा लोगों को प्रशिक्षित करना सबसे उम्दा अवसर हो सकता है। लोग जैसे ही अनौपचारिक, जीविका आधारित और अलग-थलग कार्यबल का हिस्सा बनते हैं वैसे ही उन तक पहुंचना और उन्हें शिक्षा देना कठिन हो जाता है। ऐसे में शिक्षा को कौशल प्रशिक्षण के साथ जोडऩा सबसे आसान तरीका हो सकता है।
शैक्षणिक एवं व्यावसायिक शिक्षा के बीच वर्तमान संबंध विच्छेद के दोहरे परिणाम दिख रहे हैं। पहली बात तो यह कि व्यावहारिक कौशल के अभाव में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी अधिक है। दूसरी बात यह कि व्यावसायिक शिक्षा प्रशिक्षुओं में विभिन्न परिस्थितियों से जूझने की क्षमता नहीं है जिसका कारण उनमें व्यापक दायरे वाले आधारभूत कौशल का अभाव है। आधारभूत कौशल कार्य एवं जीवन में अर्थपूर्ण भागीदारी के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। संतुलन साधने के लिए इस दिशा में कुछ प्रयास किए गए हैं। हालांकि काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। आगे क्या रास्ता है और वर्तमान समय शिक्षा एवं कौशल विकास को नजदीक लाने के लिए उपयुक्त क्यों है?
सुधार प्रक्रिया समय का मोहताज नहीं है और यह कभी भी शुरू की जा सकती है। हालांकि कोविड-19 महामारी के दौरान औपचारिक शिक्षा एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अच्छा तालमेल बिठाना जरूरी हो गया है। इस महामारी से शिक्षा क्षेत्र पर काफी असर हुआ है और विद्यालयों में पढ़ाई बंद होने के साथ ही पढ़ाई बीच में ही छोडऩे वाले विद्यार्थियों की तादाद भी काफी बढ़ गई है। गरीब तबके से आने वाले बच्चों पर सर्वाधिक मार पड़ी है क्योंकि शिक्षा विद्यालयों के बजाय अब ऑनलाइन माध्यम से देने का चलन शुरू हो गया है जहां इनकी पहुंच नहीं है। इस वक्त हम लोगों को शिक्षित कर उन्हें अधिक सशक्त बनाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार से जुड़ी पुरानी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसके साथ ही हम बच्चों को स्कूल में बनाए रखने, पढ़ाई बीच में छोडऩे वाले बच्चों की संख्या पर अंकुश लगाने और बच्चों की पढ़ाई वास्तविक अर्थ में जारी रखने की राह में आने वाली समस्याओं से भी जूझ रहे हैं।
व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण को औपचारिक शिक्षा से जोडऩे से इन चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। इससे हमें भविष्य के लिए एक मजबूत शिक्षण प्रणाली भी तैयार करने में मदद मिलेगी। महामारी से कार्य शैली में भी खासा बदलाव आया है। अब कर्मचारी घर एवं कार्यालय दोनों जगहों से काम कर रहे हैं जिससे नई भूमिकाओं की मांग बढ़ी है और रोजगार के कई अवसर गायब भी हो गए हैं। नए कौशल का महत्त्व अधिक बढ़ गया है। उदाहरण के लिए डिजिटल कौशल साक्षरता की तरह ही अति आवश्यक हो गया है। कार्य स्थलों पर कार्य शैली तेजी से बदलने से नई चीजें सीखना और काम के साथ इनका तालमेल भविष्य के लिए अहम हो गया है। बुनियादी कौशल मजबूत रहने से ही कर्मचारी कार्यस्थलों पर होने वाले बदलावों से जूझ पाएंगे। इस तरह, औपचारिक एवं व्यावसायिक शिक्षा व्यवस्था के बीच नजदीकी संबंध सुनिश्चित करना अहम हो गया है।
संकल्पना के स्तर पर इसके लिए दो महत्त्वपूर्ण बदलाव आवश्यक होंगे। पहली बात तो औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई), विद्यालय एवं कॉलेजों में समग्र कौशल सिखाने की व्यवस्था अनिवार्य बनानी होगी। दूसरी बात यह कि एक साझा व्यावसायिक शिक्षण पाठ्यक्रम बनाकर एक क्रेडिट आधारित शिक्षा ढांचा तैयार करना होगा जिससे कौशल प्रशिक्षण और सामान्य शिक्षा के बीच संबंध और अधिक मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
नवंबर 2014 में कई उम्मीदों के साथ कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय की स्थापना की गई थी। हालांकि अब तक जिस ढंग से प्रशिक्षण कार्यक्रम चले हैं उसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं। मंत्रालय ने सफलतापूर्वक भारत सरकार के कौशल प्रशिक्षण के उपायों को एक साथ लाकर एक साझा ढांचा तैयार किया है। हालांकि शिक्षा की तुलना में नए कौशल सिखाने पर अब भी अधिक जोर नहीं दिया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि हाल में दो महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों का प्रभार एक कैबिनेट मंत्री को दिया जाना शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के एकीकरण की दिशा में पहला कदम है। बेहतर परिणामों के लिए ऐसा करना जरूरी है।
(लेखक भारत सरकार के पूर्व सचिव और नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च में प्राध्यापक हैं। )