दुनिया के केंद्रीय बैंक इस समय दो समूहों में बंट गए हैं। एक समूह मानता है कि महंगाई दर में मौजूदा तेजी अस्थायी है इसलिए नीतिगत स्तर पर इसके लिए उपाय करने की जरूरत नहीं है। दूसरे समूह के केंद्रीय बैंकों ने बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दी है। उदाहरण के लिए रूस और ब्राजील के केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर चुके हैं।
हालांकि ज्यादातर विकसित देश पहले समूह से ताल्लुक रखते हैं जिन्हें लगता है कि फिलहाल ब्याज दरों में बढ़ोतरी उचित निर्णय नहीं होगा। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओपन मार्केट कमेटी ने पिछले सप्ताह मानक ब्याज दर शून्य के करीब बरकरार रखी थी। इसके चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा कि महंगाई में तेजी अस्थायी है और यह तत्काल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए किसी तरह का खतरा पैदा नहीं कर रही है। इससे पहले जुलाई मध्य में बैंक ऑफ जापान ने मौद्रिक दरें अपरिवर्तित रखीं लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि का अनुमान कम कर दिया। यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) ने भी जुलाई के मध्य में मौद्रिक नीति में बदलाव नहीं किया लेकिन महंगाई दर का अनुमान बढ़ाते हुए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान कम कर दिया। ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि बैंक ऑफ इंगलैंड भी 5 अगस्त को मौद्रिक नीति की घोषणा में यथास्थिति बरकरार रखेगा।
अब प्रश्न है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का रुख क्या रहेगा? इस सप्ताह आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दरों में किसी तरह के बदलाव की उम्मीद नहीं लग रही है। अगर यथास्थिति बरकरार रहती है तब भी क्या एमपीसी बढ़ती खुदरा महंगाई के बीच अगले दो महीने में अपने उदारवादी रुख के साथ बाजार को बदलाव के लिए तैयार कर पाएगी? इसकी संभावना भी कम लग रही है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरह आरबीआई का भी मानना है कि महंगाई में तेजी अस्थायी है और मुख्यत: आपूर्ति संबंधी बाधाओं की वजह से इसमें उछाल आई है। हालांकि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से भारत की आर्थिक गति की रफ्तार सुस्त होने का खतरा पैदा हो गया है। पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्त वर्ष 2022 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 12.5 प्रतिशत से 3 प्रतिशत अंक कम कर 9.5 प्रतिशत कर दिया था।
जून में एमपीसी की बैठक में इसके सदस्यों ने सर्वसम्मति से आवश्यकता महसूस होने तक उदारवादी रुख जारी रखने का निर्णय लिया था और दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। एमपीसी ने कहा था कि महंगाई सीमित स्तर तक रखने के साथ अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में निरंतरता बनाए रखने के लिए दीर्घ अवधि तक उदारवादी रुख बरकरार रखने की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि यह सिलसिला जारी रहेगा। जून में आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 1 प्रतिशत अंक घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया था और महंगाई का अनुमान थोड़ा बढ़ाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया था।
कितने बदले हैं हालात?
जुलाई के आरंभ में बढऩे के बाद कच्चे तेल की कीमतें मोटे तौर पर स्थिर रही हैं। महंगाई बढऩे के बावजूद 10 वर्ष की अवधि के अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल 1.60 प्रतिशत से कम होकर 1.25 प्रतिशत रह गया लेकिन भारत में यह करीब 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.2 प्रतिशत हो गया है। पिछली मौद्रिक नीति से पहले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई मार्च के 5.52 प्रतिशत से कम होकर अप्रैल में 4.29 प्रतिशत रह गई। हालांकि मई में यह 6.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई और जून में यह मामूली कम होकर 6.26 प्रतिशत रह गई। महंगाई दर आरबीआई द्वारा निर्धारित सहज स्तर 6 प्रतिशत से अधिक है।
जुलाई से दिसंबर तक महंगाई में नरमी आ सकती है लेकिन चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में इसमें इसमें फिर तेजी जारी रह सकती है। इस पूरे वित्त वर्ष औसत महंगाई दर करीब 5.5 प्रतिशत रहेगी जो आरबीआई के अनुमान से अधिक होगी।
नीतिगत दरें अपरिवर्तित रख आरबीआई महंगाई दर का अनुमान थोड़ा बढ़ा सकता है लेकिन आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में बदलाव से फिलहाल परहेज कर सकता है। केंद्रीय बैंक अप्रैल में शुरू सरकारी प्रतिभूतियों की खरीदारी का कार्यक्रम (जी-सैप) जारी रख सकता है। पहली तिमाही में जी-सैप का आकार 1 लाख करोड़ रुपये था। दूसरी तिमाही में इसे बढ़ाकर 1.2 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।
इस बॉन्ड खरीदारी कार्यक्रम में मामूली बदलाव आया है। केंद्रीय बैंक ने इलिक्विड बॉन्ड खरीदने की पेशकश करनी शुरू कर दी है। इससे संभवत: बैंकों को मुनाफा कमाने और नई सरकारी प्रतिभूतियां खरीदने की जगह तैयार करने में मदद मिलेगी। यह भी साफ दिख रहा है कि बॉन्ड प्रतिफल में तेजी से आरबीआई को फिलहाल चिंता नहीं सता रही है। 6.1 प्रतिशत ब्याज के साथ जारी 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड का कारोबार 6.2 प्रतिशत पर हो रहा है। करीब एक महीने पहले तक 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर प्रतिफल 6 प्रतिशत से अधिक होना आरबीआई को रास नहीं आ रहा था। केंद्रीय बैंक बॉन्ड पर प्रतिफल बढऩे के साथ तालमेल बैठाने के लिए तैयार तो दिख रहा है लेकिन इस वर्ष सरकार का उधारी कार्यक्रम बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाने के लिए जी-सैप एकमात्र जरिया नहीं रह सकता है। सरकार बाजार से अब तक रकीब 4.75 लाख करोड़ रुपये उधारी ले चुकी है और यह इस वर्ष के कुल उधारी योजना का 40 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। आरबीआई तथाकथित ट्वीस्ट्स (वित्तीय प्रोत्साहन) एवं खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) का भी इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि अगर यह दिसंबर तक मौजूदा नीति दर बनाए रखता है तो मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं होगा। अगर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि तेज हुई तो आरबीआई अपना रुख बदल सकता है और फरवरी में रिवर्स रीपो रेट 3.35 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.75 प्रतिशत तक कर सकता है। फिलहाल केंद्रीय बैंक का ध्यान आर्थिक वृद्धि पर होगा।