शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत की अध्यक्षता गत 4 जुलाई को राज्याध्यक्षों की आभासी बैठक के साथ समाप्त हुई और इसके मिलेजुले नतीजे हासिल हुए। यह बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उल्लेखनीय रूप से सफल अमेरिका यात्रा के तत्काल बाद हुई जहां भारत और अमेरिका के आपसी रिश्तों में और अधिक मजबूती आई।
क्वाड सुरक्षा समूह जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत शामिल हैं, अगर उसके संदर्भ के साथ देखें तो भारत और अमेरिका की साझेदारी की विषयवस्तु और उसके अभिप्राय को चीन विरोधी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
रूसी कच्चे तेल की खरीद के साथ भारत के आठ सदस्यीय एससीओ में शामिल होने और संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण कवायदों में साझेदारी करने से यह संकेत निकलता है कि वह एक स्वतंत्र विदेश नीति के साथ चल रहा है। हालिया शिखर बैठकों की बात करें तो पश्चिम विरोधी इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एससीओ के सदस्य देश के रूप में स्वागत एक अहम घटना रही।
इसके अलावा यूक्रेन युद्ध में रूस के सहयोगी बेलारूस को 2024 तक पूर्ण सदस्य बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया। इन बातों से भी भारत की विदेश नीति के स्वतंत्र होने की बात रेखांकित होती है।
जी 20 अध्यक्षता और एससीओ अध्यक्षता को साथ रखकर देखें तो भारत के पास यह अवसर है कि वह क्षेत्रीय भूराजनीतिक बहस में एक विश्वसनीय वार्ताकार के रूप में अपना कद बढ़ाए।
उदाहरण के लिए उज्बेकिस्तान में गत वर्ष की बैठक में मोदी ने जिस अंदाज में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की यूक्रेन पर हमले के लिए आलोचना की थी उससे समूह के भीतर भारत का कद मजबूत हुआ था। खासतौर पर इसलिए कि तेल के कुओं से समृद्ध कई पूर्व सोवियत देश जो एससीओ के सदस्य हैं उन्हें भी चीन और रूस से ऐसे ही हमले का खतरा है। इसके विपरीत मंगलवार की आभासी बैठक (पहले वास्तविक बैठक होनी थी) से सीमित निष्कर्ष निकले।
पाकिस्तान और चीन को सीधा संदेश
प्रत्येक सदस्य देश एक अलग लक्ष्य के साथ नजर आ रहा था। हालांकि प्रधानमंत्री की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने सीमा पार आतंकवाद के राज्य नीति के रूप में इस्तेमाल किए जाने का जिक्र किया और सदस्य देशों की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करने के महत्त्व का जिक्र किया। यह पाकिस्तान और चीन को सीधा संदेश था।
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भी एक ‘नए शीत युद्ध’ की शुरुआत के बाहरी प्रयासों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता की बात की। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि घरेलू राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों को शत्रु की तरह नहीं पेश किया जाना चाहिए।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन जो अपने एक सहयोगी समूह की बगावत के बाद पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक में शामिल हो रहे थे, ने एससीओ नेताओं को सहयोग के लिए धन्यवाद देते हुए प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर और एकजुटता की अपेक्षा जाहिर की।
अफगानिस्तान को लेकर लगभग एकमत से सहमति
संकटग्रस्त अफगानिस्तान को लेकर लगभग एकमत से सहमति दिखी। इसके अलावा एससीओ शिखर बैठक में सहयोग के मोर्चे पर कुछ खास नहीं हुआ। बैठक के अंत में जारी घोषणापत्र छोटेमोटे बदलावों के अलावा 2022 के समरकंद घोषणापत्र का दोहराव था। इस बार भी भारत ने चीन की बेल्ट ऐंड रोड पहल से संबंधित पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
भले ही आधिकारिक तौर पर पश्चिमी देशों के आकलन में एससीओ को खारिज किया जाता हो लेकिन शायद भारत के लिए यह समूह ब्रिक्स की तुलना में अधिक प्रासंगिक है। दुनिया की कुल आबादी का 40 फीसदी और वैश्विक उत्पादन का 30 फीसदी इसी समूह के देशों से आता है।
ईरान को मिला लिया जाए तो वैश्विक तेल भंडारों का 20 फीसदी इसी समूह के देशों से आता है। संक्षेप में कहें तो एससीओ में आर्थिक रूप से रचनात्मक समूह बनने की संभावना है जो चीन के क्षेत्रीय दबदबे को संतुलित कर सकता है। भारत को इस अवसर का लाभ लेना चाहिए।