केंद्रीय बजट पेश किए जाने के बाद मीडिया के हर हलके में इसे लेकर तमाम सार्थक (कई असार्थक भी) टिप्पणियां की जा चुकी हैं। बहरहाल एक नियमित स्तंभकार होने के नाते मैं भी अपना मत प्रकट कर रहा हूं।
पहली बात, यह समझना जरूरी है कि वित्त मंत्री और उनकी टीम को अत्यंत चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल में बजट निर्माण का दायित्व सौंपा गया था। कोविड महामारी तथा 2020 में लगे पहले लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को जबरदस्त क्षति पहुंचाई थी। हालांकि इसके बाद उत्पादन में सुधार हुआ था लेकिन अप्रैल-जून 2021 में दूसरी लहर (डेल्टा वायरस) और दिसंबर-जनवरी 2021/22 में तीसरी लहर (ओमीक्रोन) ने प्रभावित किया।
रिकॉर्ड राजकोषीय घाटे और डेट-जीडीपी के असाधारण स्तर, उच्च बेरोजगारी दर तथा असंगठित क्षेत्र में सीमित रोजगार, समेकित खपत स्तर में ठहराव, लंबित निजी निवेश तथा अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल ने भी हालात काफी चुनौतीपूर्ण बना दिए थे। संगठित क्षेत्र के उत्पादन में सुधार के अलावा निर्यात और आयात में सुधार भी उल्लेखनीय विशेषता रहा। इस परिदृश्य में मुझे आशा थी कि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर जोर दिया जाएगा (शायद जीडीपी के एक फीसदी के बराबर) सुधार। अनुमान था कि वित्त मंत्री द्वारा पारदर्शिता पर जोर देना बरकरार रखा जाएगा, बजट के आंकड़ों का समुचित अंकेक्षण होगा, समाज के सर्वाधिक प्रभावित तबके (असंगठित क्षेत्र के कर्मियों तथा सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रम) के लिए विभिन्न विशिष्ट योजनाओं को जारी रखा जाएगा, अमीरों पर संभावित नए करों (पूंजीगत लाभ, विरासती कर और संपदा कर आदि) के जरिये केंद्र के सकल कर अनुपात (जो कई वर्षों से जीडीपी के 10-11 फीसदी) में इजाफे का प्रयास किया जाएगा ताकि घाटे/डेट की समस्या को हल किया जा सके। इसके अलावा व्यापार नीति में हम सुधारों की मदद से विदेशी व्यापार की स्थिति सुधारने के कदम उठाए जाने की आशा थी, खासतौर पर हमारे लंबे समय से ठहरे हुए वस्तु निर्यात में।
मेरी कुछ आशाएं पूरी हुईं जबकि अन्य नहीं। बजट में जीडीपी के 0.5 फीसदी के बराबर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का वादा किया गया, और घाटे के संशोधित अनुमान के 6.9 फीसदी के बजाय 6.4 फीसदी रहने की बात कही गई। बजट आंकड़ों में पारदर्शिता जारी रही। हालांकि पिछले तीन बजट की तरह इस बार सीमा शुल्क दरों में प्रभावी बदलाव की सारणी अनुपस्थित रही लेकिन फिर भी सीमा शुल्क शेड्यूल की सफाई को लेकर काफी विस्तृत प्रस्तुति दी गई। राजस्व और व्यय को लेकर रूढि़वादी राजकोषीय अनुमान को लेकर उनका सराहनीय झुकाव जारी रहा। महामारी से प्रभावित तबकों के लिए विशेष कार्यक्रम जारी रखे गए।
अत्यधिक अमीरों पर कोई नया कर नहीं लगा, न ही कर बढ़ाये गए। बढ़े संरक्षण वाले सीमा शुल्क ढांचे में भी कोई उल्लेखनीय कमी नहीं की गई जो निर्यात की सतत वृद्धि तथा वैश्विक मूल्य शृंखला में सफल भागीदारी के लिए प्रभावी रहती है। दूसरी ओर पूंजीगत व्यय में इजाफा किया गया, खासतौर पर बुनियादी ढांचे में ऐसा किया गया जो श्रम और वस्तुओं की मांग बढ़ाने में मददगार होगा। इससे मध्यम अवधि में वृद्धि संभावना मजबूत होगी।
राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर वापस लौटें तो यह बजट तब आया है जबकि बीते तीन वर्षों में राजकोषीय घाटा रिकॉर्ड स्तर पर रहा। 2020-21 में केंद्र और राज्यों का संयुक्त घाटा जीडीपी के 13 फीसदी तथा 2021-22 में 11 फीसदी रहा जबकि 2022-23 में इसके 10 फीसदी रहने का अनुमान है। सरकारी ऋण अनुपात भी जीडीपी के 85-90 फीसदी के साथ रिकॉर्ड स्तर पर है। विपरीत हालात अब नजर आने लगे हैं। पहले केंद्र का ब्याज भुगतान 2020-21 और 2022-23 के बीच करीब 40 फीसदी बढ़ गया। दो वर्ष में कुल व्यय में उनकी हिस्सेदारी 4.4 फीसदी बढ़ी। इसके साथ ही गैर ब्याज व्यय 80 फीसदी से घटकर 76 फीसदी पर आ गया। 11.6 लाख करोड़ रुपये की विशुद्ध बाजार उधारी के साथ केंद्र के घाटे भरपाई की तैयारी के बीच वैश्विक और घरेलू कारकों के चलते ब्याज दरों में इजाफा होने लगा। यह रुझान बरकरार रहने वाला है।
दूसरा, मौजूदा हालात में बाजार उधारी की यह व्यवस्था रिजर्व बैंक के सामने मौद्रिक और ऋण प्रबंधन की गंभीर समस्या पैदा करेगी। हमें यह याद रखना होगा कि मुद्रास्फीति गरीबों पर सबसे अधिक असर डालती है, यह निर्यात को कम प्रभावी बनाती है तथा आर्थिक वृद्धि के लिए भी यह बेहतर नहीं होती। तीसरी बात, निजी निवेश में सुधार के संकेतों का खत्म होना भी कल्पना मात्र नहीं है।
बहरहाल, इन बातों के बीच आशा की किरण भी दिख सकती है। राजस्व और व्यय के अनुमान में रूढि़वादिता बरतने से शायद घाटे और ऋण की समस्या कुछ ज्यादा अतिरंजित नजर आ रही हो। दिसंबर 2021 तक के प्रकाशित रुझानों पर नजर डालें तो राजस्व के संशोधित अनुमान भी वास्तविक से कम आंके गए हो सकते हैं जबकि व्यय का आकलन वास्तविक से अधिक हो सकता है। ऐसे में मार्च के अंत तक सरकार का नकदी संतुलन अच्छा हो सकता है। इससे 2022-23 में बाजार उधारी काफी कम हो सकती है। दूसरा, वर्ष 2022-23 में 11 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का बजट अनुमान आर्थिक समीक्षा के 8-8.5 फीसदी की वास्तविक वृद्धि के अनुमान से काफी अधिक है। वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने 2021-22 के अग्रिम अनुमान में इसके 8.4 फीसदी रहने की बात कही थी। 2021-22 में डेल्टा और ओमीक्रोन स्वरूपों के कारण कम आधार प्रभाव के चलते 2022-23 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7 फीसदी या उससे अधिक हो सकती है। इससे यही संकेत मिलता है कि 2022-23 में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 13-14 फीसदी के इर्दगिर्द रह सकती है। कर राजस्व के लचीलेपन को तार्किक मानते हुए कह सकते हैं कि केंद्र का शुद्ध कर अनुमान से करीब 70,000 करोड़ रुपये तक अधिक हो सकता है। सब्सिडी और मनरेगा के व्यय के लिए कम बजट प्रावधान तथा पूंजीगत व्यय के लिए बजट प्रावधान में इजाफा किए जाने से संभव है कि घाटा तथा बाजार उधारी की आवश्यकताएं 50,000 करोड़ रुपये कम हो जाएं। यदि उपरोक्त के मुताबिक कुछ लाख करोड़ रुपये की कम अनुमानित नकदी को शामिल किया जाए तो बाजार उधारी को अनुमान से 2-3 लाख करोड़ रुपये कम किया जा सकता है।
उपरोक्त बातों से मदद मिलेगी लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि बजट अनुमान केवल अनुमान हैं और विभिन्न घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वजहों से इनमें अंतर आ सकता है।
इन तमाम बातों का लब्बोलुआब यह है कि कम राजकोषीय घाटे के साथ वृहद आर्थिक प्रबंधन अपेक्षाकृत आसान होता है। हम जितनी जल्दी घाटे को कम करेंगे, अर्थव्यवस्था के लिए उतना ही बेहतर होगा।
(लेखक इक्रियर में मानद प्राध्यापक और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। लेख में विचार निजी हैं)