इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती
देश में यह बहस चल रही है कि क्या सरकार को साप्ताहिक विकल्प अनुबंधों (वीकली ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट) पर प्रतिबंध लगाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए। यह बहस उन नियामकीय चिंताओं के बाद उत्पन्न हुई है जो खुदरा भागीदारी बढ़ने और बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत ट्रेडर्स को होने वाले नुकसान से उत्पन्न हुई हैं। इन चिंताओं को समझा जा सकता है लेकिन प्रतिबंध लगाना एक नीतिगत चूक होगी। यह समस्या का गलत निदान है और इससे कड़ी मेहनत से हासिल किए गए वित्तीय बाजार के विकास को नुकसान पहुंचने का जोखिम है। हमें क्रियाशील बाजारों को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें वैश्विक अनुभवों से सीख लेनी चाहिए और एक अधिक मजबूत वित्तीय माहौल तैयार करने की दिशा में बढ़ना चाहिए।
इस बहस को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है मानो यह सटोरिया गतिविधि और निवेशक संरक्षण के बीच कोई समझौता जैसा हो। वित्तीय अर्थशास्त्र के नजरिये से देखें तो मामला यह है कि क्या भारत को अधिक नकदीकृत और अधिक संपूर्ण बाजार तैयार करने की दिशा में बढ़ना जारी रखना चाहिए। वित्तीय डेरिवेटिव्स केवल सट्टेबाजी के साधन नहीं हैं; वे जोखिम को अनुकूलित करने के लिए मौलिक साधन भी हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता केनेथ एरो और गेरार्ड डेब्रू का सैद्धांतिक आदर्श कहता है, ‘एक संपूर्ण बाजार वह है जहां हर संभावित हालात के लिए एक सुरक्षा मौजूद हो ताकि किसी भी जोखिम से पूरी तरह बचाव संभव हो सके।’ यह अलग बात है कि ऐसे पूर्ण बाजार को वास्तव में प्राप्त करना असंभव है किंतु वित्तीय नवाचार लगातार उस दिशा में बढ़ने की कोशिश करता है। लघु-अवधि के विकल्प हमारे पास उपलब्ध सबसे व्यावहारिक उपाय हैं जो एकदिन वाली एरो प्रतिभूतियों के समान हैं। ये प्रतिभागियों को एक ही दिन किसी घटना के जोखिम से अलग रखने और उसी दिन कारोबार करने की भी सुविधा देते हैं। ये पूरे प्रतिभूति बाजार की तरलता और दक्षता बढ़ाने जैसा आर्थिक कार्य भी करते हैं। इन साधनों पर प्रतिबंध हमारे बाजारों को कम कुशल और कम नकदीकृत बनाएगा।
भारतीय इक्विटी डेरिवेटिव्स व्यवस्था ने प्रगति की है लेकिन ज्यादा ध्यान कुछ लोगों को नुकसान से बचाने पर केंद्रित हो गया है। खुदरा नुकसान के आंकड़े चिंतित करने वाले हैं लेकिन इसका प्रस्तावित हल भी खामियों से भरा है। दिक्कत साधन में नहीं है। हाल में जेन स्ट्रीट मामले के बाद निगरानी अधिक मजबूत हो गई जब भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के प्रमुख ने उचित ही ‘निगरानी’ को एक मुद्दा बताया। उत्पाद को प्रतिबंधित करना तो पूरे बाजार को दंडित करने के समान है जबकि नाकामी की वजह निगरानी या व्यक्तिगत निर्णय है। एक जीवंत उदाहरण हमें इस बारे में जानकारी प्रदान करता है।
मई 2022 में शिकागो बोर्ड ऑप्शंस एक्सचेंज यानी सीबीओई ने एसऐंडपी500 सूचकांक पर विकल्प की पेशकश की जिसकी एक्सपायरी दैनिक थी। इसे ओडीटीई ऑप्शंस नाम दिया गया था। साल 2023 के मध्य तक ओडीटीई की ट्रेडिंग एसऐंडपी500 के कुल विकल्प कारोबार में 43 फीसदी हिस्सेदार हो गई। इसका नोशनल डेली वॉल्यूम करीब एक लाख करोड़ डॉलर का था। यह जबरदस्त वृद्धि दिखाती है कि ये उत्पाद मूल्यवान हैं और वे स्वैच्छिक उपयोगकर्ताओं के लिए उपयोगी काम कर रहे हैं। आशंकाओं के विपरीत इस जबरदस्त वृद्धि के चलते व्यवस्थागत अस्थिरता नहीं हुई। इससे एक गहन, नकदीकृत और संतुलित माहौल तैयार हुआ। सीबीओई के आंकड़े बताते हैं कि बाजार केवल एकतरफा सट्टेबाजी का उन्माद नहीं है। खुदरा ग्राहक लगभग 55 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि परिष्कृत संस्थागत ग्राहक शेष 45 फीसदी का योगदान करते हैं।
भारतीय विमर्श में अल्पावधि के विकल्प को अक्सर केवल सट्टेबाजी वाले साधन कहकर खारिज कर दिया जाता है। लेकिन शोधकर्ताओं ने सीबीओई के आंकड़ों का अध्ययन करके यह पाया है कि इनका उपयोग संस्थानों द्वारा घटनाओं की सटीक हेजिंग से लेकर रणनीतिक इंट्राडे कारोबार जैसे परिष्किृत और विवेकपूर्ण तरीकों से किया जाता है। आशंका जताई जाती है कि ऐसे उत्पाद बाजार को अस्थिर करते हैं लेकिन तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते। अमेरिका का अनुभव इस बात का प्रमाण है कि एक परिपक्व वित्तीय तंत्र अल्पावधि के विकल्प कारोबार में गहराई पा सकता है। ऐसी गहराई जो विभिन्न प्रकार के बाजार प्रतिभागियों द्वारा चुने गए उपयोगी अनुप्रयोगों को संभव बनाती है। भारत को उच्च गुणवत्ता वाले शोध की आवश्यकता है जो भारतीय हालात में घटित हो रही गतिविधियों की प्रकृति को समझ सके ताकि नीति निर्माण को केवल धारणाओं, पूर्वग्रहों और राजनीतिक अर्थशास्त्र से बचाया जा सके।
प्रतिबंध लगाने का तर्क संरक्षणवाद पर आधारित है, जो आर्थिक स्वतंत्रता के एक मूल सिद्धांत का विरोध करता है। यानी सहमति रखने वाले वयस्कों को अनुबंध करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। राज्य की भूमिका अनुबंधों को लागू करने और धोखाधड़ी को रोकने की है, जोखिम लेने पर रोक लगाने की नहीं।
कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियां, जैसे एंजेल निवेश या उद्यमिता में विफलता की दर बहुत अधिक होती है, फिर भी सरकार व्यक्ति के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करती। अधिकांश नए व्यवसाय विफल हो जाते हैं! लेकिन सरकार यह नहीं कहती कि किसी व्यक्ति को व्यवसाय शुरू करने से पहले कोई परीक्षा देनी चाहिए।
देश की नीतिगत बहसें अक्सर ‘अच्छी हेजिंग’ और ‘बुरी सटोरिया गतिविधियों’ के बीच बंट जाती है। हकीकत यह है कि सटोरिये नकदीकरण के लिए जीवनरेखा की तरह होते हैं। केवल सट्टेबाजी को रोकने के उद्देश्य से किसी उत्पाद पर रोक लगाना अनिवार्य रूप से वैध हेजिंग करने वालों को नुकसान पहुंचाता है। इससे बाजार में नकदी की कमी होती है। जब डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग पर रोक लगाई जाती है तो बुनियादी जोखिम खत्म नहीं होता। कुछ हद तक गतिविधियों के धीमा होने से नकदीकरण को नुकसान पहुंचता है। इससे जोखिम हस्तांतरण की मांग कम पारदर्शी माध्यमों की ओर चली जाती है और प्रतिभागी भारतीय कानून के दायरे से बाहर हो जाते हैं।
ऐसे में नियामकों के लिए यह आकलन करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में जोखिम निर्माण कितना हो रहा है। प्रतिभूति बाजारों का लक्ष्य है नकदीकृत और सक्षम बाजार तैयार करना। यह वित्तीय विकास भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए अहम है। यह हमारी नीतियों के केंद्र में होना चाहिए। हमारे पास प्रतिबंध से बेहतर उपाय मौजूद हैं। इसका हल कम खुदरा भागीदार नहीं बल्कि अधिक संस्थागत प्रतिभागी हैं। ऐसी नीति होनी चाहिए जो घरेलू संस्थानों को डेरिवेटिव्स कारोबार के लिए सक्षम बनाए। नियामक को जोखिम खुलासे और वित्तीय साक्षरता पहलों के जरिये पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए।
भारतीय इक्विटी बाजार का महत्त्व केवल निजी निवेश गतिविधियों को आकार देने में इक्विटी वित्तपोषण के प्रभुत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जिंस, मुद्राओं और सरकारी बाॅन्ड्स में भविष्य की प्रगति के लिए एक संस्थागत आधार भी प्रदान करता है। इस संभावित विकास को साकार करने के लिए इक्विटी बाजार में कामयाबी जरूरी है। अल्पावधि के विकल्प डेरिवेटिव्स बाजार का एक स्वस्थ और सफल पहलू हैं। नीति-निर्माताओं को इन्हें किसी खतरे के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखना चाहिए ताकि एक अधिक परिष्कृत और लचीली वित्तीय प्रणाली निर्मित की जा सके।
(लेखक क्रमश: एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता और न्यूयॉर्क के एस्पायरमैक्रो में प्रिंसिपल हैं)