Categories: लेख

खाद्यान्नों की कमी, गरीबी भगाने का सुअवसर

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:26 PM IST

इन दिनों हम विश्व स्तर पर खाद्यान्न की कमी व खाद्य पदार्थों की उन ऊंची कीमतों से जूझ रहे हैं जिसका अनुमान कुछ साल पहले तक नहीं लगाया गया था। इस कारण खाद्य पदार्थों के आयात  बिल में बढ़ोतरी की संभावना है।  इससे भारत सरकार के गरीबी दूर करने के कार्यक्रमों पर भारी दबाव पड़ने की आशंका है। साथ ही चार सालों में हुई आर्थिक उपलब्धि भी उससे प्रभावित होगी। लेकिन यह चुनौती देश के नीति निर्धारकों के लिए एक अवसर भी है। इसके माध्यम से वे कृषि की कम उपज व ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी को दूर करने की नीति बना सकते हैं। इस चुनौती व मौके की तुलना हम चीन से कर सकते हैं। भारत के पास चीन के मुकाबले 1.47 गुणा ज्यादा खेती के लायक जमीन है। लेकिन चीन भारत की तुलना में कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल ज्यादा अच्छे तरीके से करता है। चीन की उपज भारत की उपज के मुकाबले 2.18 गुणा ज्यादा है। अगर भारत अपने उत्पादन व आय को बढ़ाने में सफल होता है तो इससे विश्व स्तर पर खाद्य पदार्थों की कमी व गरीबी दूर करने में मदद मिलेगी।
इस चुनौती से निपटने के लिए सबसे पहले पानी के प्रबंधन की जरूरत है। इसके तहत किसानों को अधिक पानी पहुंचाना पड़ेगा। और इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए बड़ी व मझोली सिंचाई परियोजना की जगह वाटरशेड प्रबंधन व काफी संख्या में छोटी-छोटी सिंचाई परियोजना पर काम करना होगा। इसके लिए सभी गांवों में बारिश के पानी को जमा करने के लिए तालाब व छोटे पोखर बनाने होंगे। अगर ऐसा करने से बहुत लाभ नहीं मिलेगा तो भी इस प्रयास से भूजल का स्तर बढ़ेगा और इससे कृषि की उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी।
दूसरी जरूरत खाद मूल्य नीति में सुधार की है। ताकि खेती के लिए खाद के उपयोग में संतुलन बनाया जा सके। बीते दिनों यूरिया के इस्तेमाल से भूमि की उपज क्षमता बढ़ाने का खूब प्रचार किया गया लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हो सकता। उत्तरी भारत में लगातार एक ही प्रकार के अनाज चावल व गेहंभ की खेती के कारण भूमि की उपज क्षमता असंतुलित हो गई है। इसलिए खाद के मूल्यों में संतुलन के साथ-साथ फसलों की बुआई में भी बदलाव की आवश्यकता है। इस प्रकार खाद की कीमत में संतुलन के साथ फसलों की बुआई पध्दति में बदलाव से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहेगी। परिणामस्वरूप आने वाले सालों में अच्छी पैदावार होगी।
तीसरी व चौथी जरूरत कृषि से हटकर है। इसके तहत सभी गांवों में सड़क निर्माण  करना होगा और वहां बिजली मुहैया करानी होगी। इससे गांव की अर्थव्यवस्था पर काफी अनुकूल असर पड़ेगा क्योंकि इससे किसानों को अपनी पैदावार को उपभोक्ता केंद्र पर भेजने में काफी सुविधा होगी। साथ ही खेती के लिए जरूरी चीजों को भी आसानी से मंगाया जा सकेगा। बिजली की उपलब्धता से उत्पादन को लंबे समय तक रखने के लिए गांवों में कोल्ड चेन बन जाएगी और इससे पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी। अगर किसानों को पानी, बिजली व सड़क की सुविधा उपलब्ध करा दी गई तो वे खुद काफी मूल्य अर्जित कर लेंगे।
पांचवी जरूरत किसानों के लिए मूल्य बढ़ाने की होगी। इसे दो तरीके से किया जा सकता है। खुदरा क्षेत्र की तरह किसानों से सीधे तौर पर अधिक से अधिक खरीदारी की सुविधा मिलनी चाहिए। इससे बिचौलिए नहीं रहेंगे और किसानों को मुनाफा होने के साथ उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा। किसानों को फायदा देने के लिए जिंस बाजार में अधिक मूल्य दिलाने व वस्तुओं की सुरक्षा के उपाय करने होंगे। पहले विभिन्न राज्यों  में कृषि उत्पादन व विपणन कानून के तहत इस प्रकार के उपाय किए जाते थे लेकिन उनमें से अधिकतर राज्यों ने उस कानून को खत्म कर दिया है। लिहाजा जिंस बाजार में सुधार के लिए तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
छठी बात यह कि मुख्य अनाजों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की आवश्यकता है। हालांकि यह काफी विवादस्पद हो सकता है। साथ ही मोटे अनाज व दाल के लिए भी ऐसा किया जा सकता है। वर्तमान स्थिति में राशन की दुकानों से काफी कम कीमत पर खाद्य पदार्थों के वितरण के कारण हमें विदेशी किसानों को अपने देश के किसानों के मुकाबले काफी अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। जो अनुचित है। इस बढ़े हुए समर्थन मूल्यों को सावधानीपूर्वक राशन के मूल्यों के साथ सामंजस्य करने से कृषि से जुड़ी आय बढ़ जाएगी। इससे खेती में लोगों को अधिक फायदा होगा और पूरे देश में गरीबी को कम किया जा सकेगा। साथ ही खुले बाजार में खाद्य वस्तुओं की कीमत पर नियंत्रण रखने में भी मदद मिलेगी। इस प्रणाली के तहत ऊंची विकास दरों से मिली उपलब्धि के कुछ अंश को देश के भीतर गरीबी मिटाने में हस्तांतरित किया जा सकता है। अल्पावधि के दौरान खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमत पर छूट मिलना काफी महंगा साबित हो सकता है खास करके जब तक कि बढ़ी हुई कीमत के अनुपात में खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं बढ़ जाता है। लेकिन खाद्य वस्तुओं की कीमत बढ़ने से होने वाली महंगाई एक वास्तविक स्थिति होगी।
गांवों में आई खुशहाली, किसानों की बढ़ी हुई आय, सड़क, बिजली व पानी की उपलब्धता के कारण ग्रामीण इलाका रहने योग्य हो जाएगा। इससे शहर की ओर रुख करने वाले ग्रामीणों की संख्या में भी कमी आएगी।
इनमें से समर्थन मूल्य बढ़ाने के जरिए खाद्य छूट को छोड़ कोई भी सुझाव विवादस्पद या नया नहीं है। लेकिन इन्हें अब तक सही तरीके से लागू नहीं किया गया। लेकिन अब सिर्फ एक जवाब बचा है और वो है कि इन चीजों को लागू किया जाना है। नहीं तो पिछले कुछ सालों से ऊंची विकास दरों के कारण गरीबी में तेजी से होने वाली गिरावट की उम्मीद धूमिल हो जाएगी।             

First Published : March 4, 2008 | 9:25 PM IST