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नियामकीय कदम और इकाइयों पर प्रभाव

अमेरिका को दवाओं का निर्यात करने वाली कंपनियां अक्सर नियामकीय कार्रवाई का सामना करती हैं। इस क्षेत्र की कंपनियों का निरीक्षण अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) करता है।

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अमित टंडन   
Last Updated- July 04, 2024 | 9:14 PM IST

हम प्रायः देखते हैं कि नियामकों द्वारा वित्तीय इकाइयों के ‘बहीखाते जब खंगाले’ जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होती है। हाल में नियामकों ने कुछ वित्तीय इकाइयों के खिलाफ सख्त कदम उठाए और उन्हें ऑनलाइन माध्यम से खाता खोलने, को-ब्रांड कार्ड जारी करने, मोबाइल ऐप के माध्यम से नई योजनाएं पेश करने और डेट सार्वजनिक निर्गम प्रबंधित करने से रोक दिया।

ये कदम इस बात का इशारा हैं कि नियामक वित्तीय स्थिरता एवं उचित बाजार व्यवस्था बरकरार रखने के लिए मुस्तैद हैं। मगर निवेशक नियामकों के इन कदमों को कारोबार के लिए झटका समझते हैं, क्योंकि इससे उनके कारोबार पर सीधा असर होता है।

अमेरिका को दवाओं का निर्यात करने वाली कंपनियां अक्सर नियामकीय कार्रवाई का सामना करती हैं। इस क्षेत्र की कंपनियों का निरीक्षण अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) करता है। दवाओं की सुरक्षा एवं उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एफडीए खाद्य, दवा एवं कॉस्मेटिक अधिनियम एवं अन्य विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत दवा कंपनियों के संयंत्रों का निरीक्षण करते रहते हैं।

वित्तीय क्षेत्र की समीक्षा पूरे साल चलती रहती है मगर इसके उलट अमेरिकी एफडीए कुछ वर्षों के अंतराल पर नियमित रूप से समीक्षा करता है और इनके समय के साथ अजीब बात जुड़ी होती है। एफडीए के जांचकर्ता दवा कंपनियों के परिसरों पर पहुंच जाते हैं और जांच होने की सूचना या फॉर्म 482 थमा देते हैं। निरीक्षक उत्पादन प्रक्रिया की समीक्षा करते हैं, काम के लायक जानकारियां और नमूने एकत्र करते हैं।

निरीक्षण पूरा होने पर नतीजे (फॉर्म 483) सौंपे जाते हैं, जो सुधारात्मक कदम की निर्देशिका के रूप में काम करते हैं। संबंधित कंपनी के संयंत्र को यह स्वैच्छिक सुधारात्मक कदम उठाने का मौका होता है और खामियों का दोहराव होने की आशंका भी कम हो जाती है। कुछ गंभीर मामलों में एफडीए कोई दवा बाजार से हटाने या अमेरिका को निर्यात बंद करने की सिफारिश कर सकता है।

वित्तीय निरीक्षण की तरह फॉर्म 483 नियामक एवं संबंधित कंपनी (जिसकी जांच हुई है) के बीच गोपनीय होता है। मगर दो ऐसी भिन्नताएं हैं, जिनसे मैं अवगत हूं। वित्तीय क्षेत्र के नियामक की तरह एफडीए की तरफ से हुआ निरीक्षण भी प्रारंभ में गोपनीय होता है। मगर एफडीए जांच में निकल कर आई बातों, कंपनी के जवाब और अन्य आंकड़ों की समीक्षा करता है और निरीक्षण के नतीजे 90 दिनों के भीतर तीन श्रेणियों में विभाजित करता है।

इन तीन श्रेणियों में पहली है, जिसमें कोई बड़ी खामी नहीं मिलने पर किसी तरह के कदम का जिक्र नहीं होता है। दूसरी श्रेणी में कुछ छोटे मुद्दे और उन्हें दूर करने की जरूरत की स्थिति आने पर स्वैच्छिक सुधार का सुझाव दिया जाता है। तीसरी श्रेणी गंभीर मामलों से जुड़ी है, जिसमें नियमों के उल्लंघन की पहचान कर सधी कार्रवाई की जरूरत बताई जाती है। इस वर्गीकरण की जानकारी सार्वजनिक की जाती है।

दूसरी बात, सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत व्यक्ति कुछ निश्चित शुल्क देकर एफडीए 483 के लिए अनुरोध कर सकता है। एफडीए कागजात जारी करने से पहले व्यावसायिक रूप से संवेदनशील कागजात संशोधित करता है। दुर्भाग्य से इसे लेकर कोई समय सीमा निश्चित नहीं की गई है और ऐसे मामले आए हैं जब लोगों को यह सूचना हासिल करने के लिए दो वर्षों तक इंतजार करना पड़ा है। संशोधित दस्तावेज एफडीए पर अपलोड किए जाते हैं और निवेशक सहित सभी संबंधित पक्ष इसे देख सकते हैं।

मैंने चीजों को सरल भाषा में स्पष्ट करने का प्रयास किया है मगर यह एक व्यापक कार्य प्रणाली रही है। नियामक मरीजों की सुरक्षा, उचित इलाज और नियमों का पालन सुनिश्चित करने के मकसद से काम करता है। उनके कदम, अगर कुछ अत्यधिक कठोर भी मान लिया जाएं, उन्हें उस क्षेत्र की विश्वसनीयता बनाए रखने में मदद मिलती है जिनका वे नियमन करते हैं।

मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नियामकों के कुछ गंभीर निर्णय विभिन्न संबंधित पक्षों को प्रभावित करते हैं और इनके अवांछित परिणाम सामने आ सकते हैं। इसे एक उदाहरण के रूप में ऐसे समझा जा सकता है कि अगर ढीले-ढाले तंत्र के लिए किसी बैंक की आलोचना होती है तो इससे उस पर साइबर हमले का खतरा भी बढ़ जाता है।

यह तर्क बिल्कुल नहीं दिया जा रहा कि नियामकों को त्रुटियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि मगर इस प्रक्रिया में निवेशकों एवं सभी प्रभावित संबंधित पक्षों को शामिल करने का एक तरीका मौजूद होना चाहिए। वर्तमान में नियामक का जवाब जानने के बाद इसकी मुख्य बातों को स्टॉक एक्सचेंज को सौंपता है।

अगर नियामक का कदम दंडात्मक होता है तो इससे निवेशक हतोत्साहित महसूस करते हैं और तर्क देते हैं कि यह कदम प्रतिक्रियात्मक है। जब नियमों के गंभीर उल्लंघन के मामले सामने आते हैं तो उस स्थिति में क्या एफडीए को संबंधित कंपनी को सुधार करने का समय मौका देना चाहिए? यह कहना कठिन है क्योंकि यहां जीवन से जुड़े जोखिम मौजूद होते हैं, इसलिए मैं वित्तीय क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करूंगा, जहां बदलाव तुलनात्मक रूप से सहज नजर आता है। चूंकि, निरीक्षण लगातार चलते रहते हैं ऐसे में ‘अंतिम’ पत्र प्राप्त होने के बाद सार्वजनिक रूप खुलासा बाजार में गंभीर हलचल पैदा करता है, खासकर तब जब कार्रवाई भी सख्त होती है।

यह कहा जा सकता है कि जब कभी ऐसी जानकारी पहले सार्वजनिक होती है तो यह बाजार में अनिश्चितता बढ़ा सकती है, इसलिए समय रहते एवं अर्थपूर्ण खुलासे कुछ मायनों में बाजार को बेहतर ढंग से परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार कर पाएंगे।

इसके अलावा, वित्तीय नियामकों को जांच में आए नतीजों की गंभीरता एवं इसकी प्रकृति के आधार पर अपने नियामकीय संवाद का वर्गीकरण करना चाहिए। वे नतीजों की मुख्य बातें और बाद में पूरी समीक्षा रिपोर्ट प्रकाशित कर सकते हैं या विनियमित इकाइयों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।

निरीक्षण में सामने निकल कर आई मुख्य बातें बिना किसी इकाई का नाम लिए सालाना एवं अर्द्ध-वार्षिक आधार पर प्रकाशित की जा सकती हैं। इससे सभी विनियमित इकाइयों को यह समझने में मदद मिलेगी कि नियामक उनसे किस तरह की अपेक्षाएं रखते हैं।

नियामकों को उन सभी श्रेष्ठ संचालन कार्यों का भी जिक्र करना चाहिए जिनसे वे अवगत हैं। ऐसा करने से संबंधित पक्षों को ऐसी जानकारियां मिलेंगी जिनकी उन्हें कमी खलती रही है और साथ ही नियमित इकाइयां सुधार के स्पष्ट मानकों से भी अवगत हो पाएंगी।

(लेखक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेस इंडिया लिमिटेड से जुड़े हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

First Published : July 4, 2024 | 9:08 PM IST