इन दिनों सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘विकसित भारत@2047’ पर काफी चर्चा हो रही है। इनमें से ज्यादातर चर्चाओं का केंद्र अगले कुछ वर्षों में 7 प्रतिशत सालाना से अधिक औसत आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना है ताकि 2,500 डॉलर की हमारी मौजूदा प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी बढ़कर 14,000 डॉलर के उच्च आमदनी स्तर पर पहुंच जाए। हालांकि किसी देश को विकसित देश की श्रेणी में रखने के लिए सीमा अधिक होती है और अक्सर इसे 22,000 डॉलर निर्धारित किया जाता है। अगर भारत को 2047 तक इस स्तर पर पहुंचना है तब उसे 9 प्रतिशत औसत सालाना वृद्धि दर की जरूरत होगी।
मैं भारत को मौजूदा निम्न-मध्यम आय स्तर से उच्च आय स्तर या उच्च मध्यम आय स्तर तक लाने के लिए जरूरी बदलाव पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। यह बदलाव रोजगार के ढांचे में होना है, जिसके तहत कृषि क्षेत्र से जुड़ा रोजगार घटना चाहिए और उद्योग तथा सेवा क्षेत्र का रोजगार उतना ही बढ़ना चाहिए।
भारत 2047 तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की आकांक्षा रखता है और इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं में कृषि रोजगार के प्रतिशत की बात करें तो आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) देशों में यह लगभग 5 प्रतिशत है जो भारत में कृषि में वर्तमान रोजगार के प्रतिशत का लगभग आठवां हिस्सा है।
उच्च-मध्यम आमदनी वाले देशों में भी कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी आज भारत की तुलना में केवल आधी है। विकसित देशों की श्रेणी में शामिल कृषि वस्तुओं के प्रमुख निर्यातक जैसे न्यूजीलैंड या ब्राजील में भी कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी केवल 6-8 प्रतिशत के भीतर है। अगर भारत को 2047 तक उच्च आमदनी वाले देश का दर्जा हासिल करना है या उच्च-मध्यम आय के स्तर तक पहुंचना है तो उसे कृषि से बड़ी संख्या में श्रमिक उद्योग और सेवा क्षेत्र की ओर भेजने होंगे।
भारत और चीन की तुलना करना उपयोगी हो सकता है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 1991 में दोनों देशों में कृषि में रोजगार का प्रतिशत आसपास ही था। चीन में यह 60 प्रतिशत तथा भारत में 63 प्रतिशत था। किंतु विश्व बैंक के अनुसार करीब 30 साल बाद चीन में यह तेजी से कम होकर 23 प्रतिशत रह गया, जो भारत के 44 प्रतिशत आंकड़े से बहुत कम है। इन 30 साल के भीतर चीन में लगभग 20 करोड़ कृषि श्रमिक उद्योग और सेवा क्षेत्रों में चले गए। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में भी काफी संख्या में श्रमिक खेती से बाहर चले गए मगर इसी दौरान कृषि में रोजगार पाने वालों की संख्या 3.5 करोड़ बढ़ गई।
इससे भी ज्यादा नाटकीय मामला वियतनाम का है, जहां 1991 में रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत थी मगर 2021 में घटकर 29 फीसदी रह गई। इसका बड़ा कारण यह है कि चीन और वियतनाम में इन वर्षों के दौरान अधिक निर्भरता विनिर्माण में रोजगार सृजन और निर्यात बढ़ाने वाली वृद्धि पर रही है।
भारत के मामले में 1991 और 2021 के आंकड़ों की तुलना में एक अहम बिंदु छिप जाता है। कृषि की हिस्सेदारी में गिरावट और उद्योग तथा सेवाओं में वृद्धि मुख्य रूप से 1990-91 से 2014-15 के बीच यानी 25 वर्षों दौरान हुई। उसके बाद से विनिर्माण में वृद्धि की कई योजनाएं आने के बाद भी कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। संभवत: कोविड के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की वापसी की वजह से भी कृषि क्षेत्र से रोजगार स्थानांतरित होने की रफ्तार धीमी रही है।
भारत में राज्यों के बीच अंतर पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। हाल में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु, केरल और पंजाब तथा हरियाणा जैसे उच्च आमदनी और उच्च वृद्धि वाले कई राज्यों में कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी काफी कम है, जो 25-30 प्रतिशत के दायरे में है और यह लगभग उच्च मध्य आमदनी वाले देशों के बराबर है। अगर हम वर्ष 2047 के बारे में सोचते हैं तब हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? अगर हम मान लें कि हम 1991 से आगे के 25 वर्षों के रुझानों को 2022 से 2047 तक दोहरा सकते हैं तो कृषि क्षेत्र में रोजगार का हिस्सा घटकर 25 प्रतिशत से कम हो जाएगा। यह उच्च-मध्यम आय वाले देशों के समान स्तर पर होगा, लेकिन विकसित देशों जैसे स्तर पर नहीं पहुंचेगा।
अहम मुद्दा यह है कि हम किस दर पर उद्योग और सेवा क्षेत्र में बेहतर रोजगार सृजन कर सकते हैं ताकि कामकाजी उम्र वाले लोगों की बढ़ती संख्या और कृषि क्षेत्र से आने वाले लोगों को इसमें खप सके। 2047 तक कामकाजी उम्र वाली आबादी (15 से 59 वर्ष) का आधिकारिक पूर्वानुमान लगाएं और मान लें कि काम ढूंढने वालों में करीब 65 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी समूह की होगी तो हमारे पास रोजगार ढूंढने वाले करीब 12 करोड़ नए लोग होंगे।
इसके अलावा सबसे मुश्किल पूर्वानुमान कृषि क्षेत्र से निकलने वाले श्रम बल के दूसरे क्षेत्रों में स्थानांतरण के मूल्यांकन का स्तर है। अगर हम विकसित या उच्च आमदनी वाला देश बनना चाहते हैं तब कृषि क्षेत्र में रोजगार का हिस्सा कम होकर 10 प्रतिशत के स्तर पर आना चाहिए। इसका मतलब है कि लगभग 15 करोड़ लोगों को कृषि क्षेत्र छोड़ना होगा। इस तरह उद्योग और सेवा क्षेत्रों में 27 करोड़ से अधिक नए रोजगार पैदा करने की आवश्यकता है ताकि रोजगार ढूंढने वाली आबादी और कृषि क्षेत्र छोड़ने वाली अतिरिक्त आबादी इसमें खप सके। अगले 25 वर्षों में यह तादाद सालाना 1 करोड़ से अधिक नई उद्योग एवं सेवा क्षेत्र की नौकरियां हैं।
केएलईएमएस के डेटा के मुताबिक पिछले 30 वर्षों में जब देश की अर्थव्यवस्था औसतन 6 प्रतिशत बढ़ी, तब खेती के अलावा दूसरे क्षेत्रों में हर साल औसतन जितनी नईं नौकरियां बनती थीं, उससे ये संख्या दोगुनी है। अगर हम देश को मध्यम आमदनी वाले देशों की श्रेणी में लाना चाहते हैं और खेती पर निर्भर लोगों की संख्या कुल कामगारों की 20 प्रतिशत तक करना चाहते हैं तब हमें हर साल रोजगार के लगभग 70 लाख नए मौके तैयार करने होंगे। यह भी पिछले तीन दशक के औसत से ज्यादा है।
असली चुनौती यह है कि हमें 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए एक ऐसी योजना चाहिए जो उद्योग और सेवा क्षेत्र में रोजगार के बेहतर मौके तैयार करे, खासतौर से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां आज भी औसतन करीब 55 प्रतिशत लोग खेती में रोजगार पाते हैं। अगले 25 साल में देश में जितने भी नए कामगार बढ़ेंगे, उनमें से लगभग 90 प्रतिशत इन पांच राज्यों से होंगे। इसलिए ‘विकसित भारत@2047’ से जुड़े संवाद में इन राज्यों में रोजगार के अच्छे अवसर पैदा करने के लिए सबसे बेहतर योजना क्या हो सकती है, इस पर जोर दिया जाए, न कि केवल देश की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान पर।