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कोविड काल में किनवा बना एक आदर्श खाद्य उत्पाद

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 10:21 PM IST

दो दशक पहले बोलिविया और पेरू के मूल निवास के बाहर लगभग अनजान किनवा आज अपने पौष्टिक एवं उपचारात्मक गुणों की वजह से दुनिया के सबसे बड़े सुपरफूड में से एक माना जाने लगा है। किनवा को लेकर मचे वैश्विक हंगामे ने 2013 को अंतरराष्ट्रीय किनवा वर्ष के रूप में मनाए जाने के बाद भारत को भी अपने दायरे में ले लिया। लेकिन सही विपणन एवं उत्साहजनक समर्थन के अभाव में शुरुआती उत्साह देर तक नहीं टिक पाया।
किनवा की पैदावार बढऩे के साथ ही इसके दामों में बड़ी गिरावट आ गई। वर्ष 2015 में 100 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिकने वाला किनवा वर्ष 2018 में 20 रुपये से भी नीचे आ गया। इसका असर यह हुआ कि इस चमत्कारी फसल के आगे और विस्तार पर लगभग रोक लग गई। लेकिन कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य उत्पादों की जरूरत ने इस स्वास्थ्यवद्र्धक अनाज की मांग फिर से तेज कर दी है। इस वजह से किनवा की खेती में नए सिरे से रुचि भी पैदा हुई है। बड़े शहरों के आला दर्जे के रेस्टोरेंट में किनवा से बने व्यंजन परोसने का सिलसिला शुरू भी हो गया है। कुछ उद्यमशील किसानों ने किनवा की मांग नए सिरे से पैदा होता देख इसकी खेती भी शुरू कर दी है।
किनवा (वैज्ञानिक नाम- चेनोपोडियम किनवा) बुनियादी तौर पर एक फलदार पौधा है जो एमरैंथ (चौलाई) परिवार से संबंधित है। भारतीय ग्राहक किनवा के करीबी रिश्तेदार बथुआ और राजगीर से अच्छी तरह परिचित हैं जो पौष्टिक गुणों में काफी हद तक समान हैं और उन्हें अक्सर किनवा कहकर बेच दिया जाता है। इसके छोटे बीजों में काफी हद तक अनाजों की ही तरह गुण होते हैं जिसकी वजह से उन्हें छद्म-अनाज भी कहा जाता है। किनवा औषधीय गुणों से युक्त बेहतरीन गुणवत्ता वाले पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होते हैं। इसके अलावा यह कुछ लोगों में एलर्जी पैदा करने वाले ग्लूटेन से मुक्त भी होता है। आंध्र प्रदेश एवं राजस्थान किनवा की अहमियत को पहचानने वाले शुरुआती राज्य हैं जिन्होंने दूसरी फसलें नहीं उग पाने वाले इलाकों में भी इसकी बुआई शुरू की। इन राज्यों के सूखा प्रभावित इलाकों में किनवा की खेती को बढ़ावा दिया गया। बाद में इसकी खेती तेलंगाना, कर्नाटक और उत्तराखंड के अलावा कुछ अन्य राज्यों में भी शुरू हो गई। हाल ही में लद्दाख भी इसे सफलतापूर्वक आजमाने वाला राज्य बना है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने किनवा को अपने अंतरिक्ष यात्रियों के रोजमर्रा के खानपान में शामिल करने की मंजूरी दी हुई है। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भी किनवा की कीमत पहचानी है। उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित  जैव-ऊर्जा रक्षा शोध संस्थान (डिबेर) ने वर्ष 2015 में किनवा की खेती के बारे में एक बहुस्थलीय शोध परियोजना शुरू की थी।
डिबेर संस्थान के वैज्ञानिकों ने इंडियन फार्मिंग के अक्टूबर 2019 अंक में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किनवा में सभी जरूरी अमिनो अम्ल शामिल होते हैं जो कि खाद्य फसलों में बेहद दुर्लभ है। यह प्रोटीन का एक बेहद समृद्ध स्रोत है जिसमें लाइसिन की मात्रा 5.1-6.4 फीसदी और मेथियोनाइन 0.4-1.0 फीसदी होता है। इसमें विटामिन, खनिज, ऐंटी-ऑक्सीडेंट एवं ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी एजेंट से भरपूर फ्लेवोनॉयड और आहार रेशे की भी मौजूदगी होती है। इस वजह से किनवा एक बेहद पौष्टिक एवं प्रतिरोधक क्षमता-वद्र्धक आहार बन जाता है। खास बात यह है कि इसके पौष्टिक गुण खाना पकाने पर भी बरकरार रहते हैं।
दिलचस्प ढंग से किनवा के पौधे के लगभग सभी हिस्से ही खाने लायक हैं और उनमें उपचारात्मक खासियत भी मौजूद होती है। असल में, यकृति (लिवर) से जुड़ी समस्याओं, दिल में उठने वाली चुभन (एंजाइना), दांत के दर्द, मूत्र-प्रणाली से संबंधित समस्याओं और बुखार जैसी करीब 20 बीमारियों के इलाज में किनवा को लाभकारी पाया गया है। इसे आंत की सेहत, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखने और बड़ी आंत के कैंसर के निवारण में भी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा जख्मों, चोटों की मरहम-पट्टी के लिए भी इसके ऐंटी-इंफ्लेमेटरी गुण फायदेमंद हैं।
इसके अलावा अपनी तीव्र पाचन-क्षमता, ग्लूटेन की कमी और उल्लेखनीय पौष्टिक गुणों की वजह से किनवा को शिशुओं के आहार के लिए आदर्श घटक माना जाता है। अब तो किनवा के आटे के इस्तेमाल से इडली, डोसा एवं अन्य भारतीय व्यंजनों को बनाने की विधियां भी सामने आ चुकी हैं। इसके अलावा इससे कुकीज, ब्रेड और पास्ता जैसी चीजें भी बनने लगी हैं। किनवा से बनने वाले गुणवत्तापरक खाद्य उत्पादों के विकास के लिए आगे और शोध एवं विकास की जरूरत है ताकि इस सुपरफूड को आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जा सके। हालांकि सोयाबीन की तरह किनवा भी  प्रोटीन से समृद्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसमें मौजूदा अपाच्य तत्त्व को खाने के पहले हटाने की जरूरत होती है। सोयाबीन के मामले में यह चीज फीइटो-एस्ट्रोजेन होती है जो अधिक मात्रा में होने पर जहरीला हो सकता है। वहीं किनवा के मामले में यह नुकसानदेह चीज सेपोनिन है जो बीज की बाहरी परत में मौजूद एक झागदार पदार्थ है। बीज की यह परत किनवा को थोड़ा कड़वा स्वाद दे देती है। अगर किनवा के दाने को पानी में 30 मिनट तक भिगोने के बाद 20 मिनट तक गर्म पानी से गुजारा जाए तो इससे सेपोनिन को अलग किया जा सकता है। औद्योगिक स्तर पर इसके बीज के बाहरी हिस्सों को मशीन की मदद से अलग कर सेपोनिन से मुक्त कर दिया जाता है। इस तरह प्रसंस्करण उद्योग के उद्भव ने किनवा को आम आदमी की प्रतिरोधकता बढ़ाने वाला खाद्य उत्पाद बनाने में बेहद अहम भूमिका निभाई है।
इस समय जरूरत यह है कि किनवा से संबंधित नवाचारी एवं मूल्य-वद्र्धित उत्पाद बनाए जाएं। कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) एवं स्टार्टअप सरकार की थोड़ी मदद से इस काम को हाथ में ले सकते हैं। मिड-डे मील एवं पोषण अभियान जैसे सरकारी पौष्टिकता कार्यक्रमों में किनवा उत्पादों को शामिल करना समझदारी भरी सोच होगी। पौष्टिक एवं चिकित्सकीय गुणों की इस खान को नजरअंदाज करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

First Published : October 21, 2020 | 12:32 AM IST