भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मंगलवार को इस समाचार पत्र में प्रकाशित साक्षात्कार में कहा कि मुद्रास्फीति अगर रिजर्व बैंक के अनुमान से कम रहती है तो नीति में और ढील दी जाएगी। मौद्रिक नीति समिति की हालिया बैठक के बाद बाजार में कुछ भ्रम नजर आया। बैठक के बाद 6 जून को हुई घोषणा में समिति ने नीतिगत रीपो दर को 50 आधार अंक घटाकर 5.5 फीसदी कर दिया था। समिति ने कहा था, ‘मौजूदा हालात में मौद्रिक नीति के पास वृद्धि को सहारा देने की बहुत कम गुंजाइश बची है।’ उसने नरम रुख को बदलकर तटस्थ कर दिया, जिसका अर्थ है कि उसके सामने सारे विकल्प रहेंगे। मगर जैसा मल्होत्रा ने साक्षात्कार में स्पष्ट किया, रुख में बदलाव का अर्थ यह नहीं है कि नीतिगत दरें फौरन बढ़ने लगेंगी।
यह समझना जरूरी है कि बाजार की 25 आधार की उम्मीद से बढ़कर 50 आधार अंक कटौती क्यों की गई। मौद्रिक नीति समिति रीपो दर में 25 आधार अंक कटौती कर अपने रुख को नरम रख सकती थी। तब शायद इतनी बहस नहीं होती। इसके बजाय समिति ने दर में एकमुश्त कटौती कर रुख बदलने का फैसला किया। चूंकि समिति के पास नीतिगत दरों में 50 आधार अंक कटौती की गुंजाइश थी, इसलिए एकमुश्त कटौती करना सही रहा क्योंकि मौद्रिक नीति में बदलाव का असर कुछ रुककर दिखता है। चूंकि समिति ने पूरी गुंजाइश इस्तेमाल कर ली, इसलिए रुख नरम रखने का कोई मतलब नहीं था। समिति के फैसले को सहारा देने के लिए रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) को भी 100 आधार अंक घटाकर 3 फीसदी कर दिया। यह कटौती चार चरणों में होगी और व्यवस्था में 2.5 लाख करोड़ रुपये की टिकाऊ नकदी आ जाएगी।
रिजर्व बैंक ने साल के आरंभ से अब तक नकदी की स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए हैं। इससे वेटेड एवरेज कॉल रेट (डब्ल्यूएसीआर) यानी मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य नकदी समायोजन दायरे के निचले सिरे के करीब जा रहा था। मल्होत्रा ने कहा भी है कि रिजर्व बैंक दर कटौती का असर बेहतर तरीके से पहुंचाने के लिए देखता रहेगा कि डब्ल्यूएसीआर को दायरे के निचले छोर के करीब रखना सही होगा या नीतिगत रीपो दर के अनुरूप रखना। आज की परिस्थिति में नीति का असर बेहतर तरीके से पहुंचाने के लिए डब्ल्यूएसीआर को निचले छोर के करीब रखना समझदारी होगी।
दरों पर आगे के कदमों की बात करते समय ध्यान रहे कि मौद्रिक नीति आगे की सोचती है। इसलिए पिछले महीने के मुद्रास्फीति के आंकड़े के बजाय अगली तिमाहियों के अनुमान नीतिगत मकसद से ज्यादा जरूरी हैं। मौद्रिक नीति समिति को अनुमान है कि मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष में औसतन 3.7 फीसदी रहेगी मगर दूसरी छमाही में यह 4 फीसदी से थोड़ी अधिक रह सकती है।
रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्री अपने शोध में तटस्थ दर को 1.4 फीसदी से 1.9 फीसदी के बीच मानते हैं। मान लिया जाए कि मौद्रिक नीति समिति वास्तविक रीपो दर को इस दायरे के आसपास रखेगी तो मौजूदा चक्र में दरों में कटौती की कोई गुंजाइश नहीं। किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि मौद्रिक नीति समिति नीति का रुख जल्द बदल डालेगी। इसके बजाय शायद वह लंबे समय का ठहराव ले। आगे की कटौतियों की गुंजाइश तब बन सकती है जब मुद्रास्फीति का अनुमान संशोधित करके कम किया जाए। कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि ऐसा हो सकता है।