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राजकोषीय उत्तरदायित्व का राजनीतिक अर्थशास्त्र

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:16 AM IST

लंबे समय से राजकोषीय विवेक के पक्षधर रहे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) भी अब विस्तारपरक राजकोषीय नीतियों की वकालत करने लगे हैं। कुछ टिप्पणीकार इसे राजकोषीय नियमों एवं राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून के खिलाफ पेश एक दलील के रूप में देखते हैं। वे अनजाने में ही बहुपक्षीय संस्थाओं द्वारा विकसित दो गलत युग्मों के फेर में फंस गए हैं जो उन्हें राजकोषीय नीति पर असर डालने में कुकी कटर जैसे साधारण काम की छूट देते हैं। ये दोहरे कारक है: (1) सरकारी ऋण को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के एक अनुपात के रूप में लगातार नहीं बढऩा चाहिए। अगर ऋण संवहनीयता विश्लेषण से पता चलता है तो सरकारों को राजकोषीय घाटे में कमी कर उधारी में कटौती करनी चाहिए। (2) सरकारों को ‘कारोबारी चक्र’ नीचे की ओर होने पर अधिक उधारी एवं अधिक खर्च करना चाहिए जबकि चक्र ऊपर होने पर उधारी एवं खर्च कम होना चाहिए।
कई सरकारें अपनी उधारी को परिभाषित करने वाले नियमों का एक मसौदा पेश करने को सही ठहराने के लिए इन युग्मकों को अपनाती रही हैं। भारत की प्रतिक्रिया अधिक सूझबूझ वाली रही है लेकिन इससे इनकार नहीं है कि राजकोषीय शिकारियों ने एक राजकोषीय उत्तरदायित्व ढांचे की वकालत करने में ‘संवहनीयता’ एवं ‘आवर्ती-प्रतिकूलता’ को प्रमुख प्रेरक के तौर पर पेश किया है। मैंने 13वें वित्त आयोग के आर्थिक सलाहकार एवं 2016 में गठित राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन समिति के सदस्य के तौर पर इसे खुद भी महसूस किया है। दोनों जगह उदारता दिखाते हुए मुझे राजकोषीय उत्तरदायित्व प्रारूप की वकालत के लिए एकदम अलग कारण पेश करने दिया गया। लेकिन इनसे राजकोषीय उत्तरदायित्व का रोडमैप परिभाषित नहीं हुआ, सिर्फ उसकी रूपरेखा तय हो सकी। यह खाका ऋण संवहनीयता एवं आवर्ती-प्रतिकूल व्यवहार की प्रमुख चिंताओं के साथ बनाया गया था।
सरकार की करारोपण, उधार लेने एवं खर्च करने की शक्तियों पर नियंत्रण एवं संतुलन रखने का मेरा पक्ष तीन तर्कों पर आधारित है। पहले एवं सबसे अहम तर्क को थोड़ा गलत समझा गया है। सेना एवं पुलिस की तरह राजकोषीय नीति भी राज्य की बाध्यकारी शक्ति का ही एक साधन है। आप पर कर न जमा करने के लिए जुर्माना लगाया जा सकता है, छापा मारा जा सकता है और जेल भी भेजा जा सकता है। इस तरह सरकार अगर वह उधार लेना चाहे तो उसका घरेलू बचत पर पहला दावा बनता है। लेकिन सरकार को इस निर्णय पर संसदीय अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है कि वह क्या खर्च करे? व्यय के ऐसे फैसलों की गुणवत्ता एवं परिणाम करारोपण एवं उधार लेने की उसकी क्षमता पर कोई बंदिश नहीं लगाते हैं। यह एक अहम पहलू है जिसे नियंत्रण एवं संतुलन की एक व्यवस्था की दरकार है। इस तरह सैन्य नीति के बारे में सही बात राजकोषीय नीति के लिए भी सही है क्योंकि दोनों में ही संप्रभु की बाध्यकारी शक्ति का इस्तेमाल होता है। इस बाध्यकारी शक्ति के इस्तेमाल के पीछे का मकसद और सार्वजनिक हित ही इसके दुरुपयोग पर नियंत्रण एवं संतुलन साधते हैं। ऐसा नहीं होने पर नियमों एवं प्रक्रियाओं के एक ढांचे की जरूरत पड़ती है जो प्रभावी क्रियान्वयन के लिए साधन के तौर पर काम करे।
दूसरा तर्क यह है कि राजकोषीय पसंद अहम बातों खासकर असमानता पर असर डालती हैं। जब एक सरकार घरेलू स्तर पर उधारी जुटाती है तो वह बचत करने वाले लोगों से ही उधार लेती है। आप जितने अधिक धनी होंगे, उतना ही अधिक आप बचत करेंगे। जब उधार ली गई राशि को ढांचागत आधार तैयार करने में खर्च किया जाता है तो बचतकर्ता इस आधारभूत ढांचे से लाभान्वित होता है और इस ढांचे के निर्माण को वित्त मुहैया कराने के एवज में उसे ब्याज भी दिया जाता है। लेकिन उस समय यह सच नहीं होता है जब ढांचे के लिए वित्त का इंतजाम करारोपण या उपयोग शुल्क के जरिये किया जाता है। जब सरकारें विनिवेश करती हैं तो वे निवेश कर सकने वाले लोगों के ही दम पर ऐसा कर पाती हैं जो अमीर लोग ही होते हैं।
इस तरह उधारी एवं विनिवेश से असमानता बढ़ सकती है। इसकी भरपाई इस आकलन के जरिये की जा सकती है कि उधार लिए गए पैसे को किस पर खर्च किया जा रहा है? संभव है कि शुद्ध लाभ सकारात्मक होंगे लेकिन इसके लिए सरकारी व्यय के संयोजन एवं असरकारिता के आकलन की जरूरत है। अगर सरकार सिर्फ उपभोग खर्च को फंड करने के लिए उधार ले रही है तो इसे सही ठहरा पाना मुश्किल है। उधारी प्रक्रिया से बाहर रखे गए गरीबों को सब्सिडी देने का मतलब है कि अमीरों को सब्सिडी के लिए ही भुगतान किया जाता है। लेकिन ऐसी बात नहीं है क्योंकि सब्सिडी का इंतजाम कर राजस्व से किया जाता है।
उधार लेना या तो कर न लगाने का एक विकल्प है या फिर राज्य का आकार बढ़ाने का एक फैसला है। यह बचतकर्ताओं एवं परिसंपत्ति-धारकों को अपने संसाधनों के इस्तेमाल के लिए भुगतान कर किया जाता है। इन विकल्पों का इस्तेमाल नियंत्रण एवं संतुलन की एक व्यवस्था के जरिये क्रियान्वित किया जाना चाहिए जो परिचालन नियमों में परिवर्तित होता है। मसलन, ‘सुनहरा नियम’ कहता है कि सरकारों को उपभोग व्यय के लिए वित्त का इंतजाम राजस्व प्राप्तियों से करना चाहिए और सिर्फ निवेश के लिए ही उधार लेना चाहिए।
तीसरा कारण उस समय खास अहम हो जाता है जब सूचना का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर किया जाने लगता है। अमेरिका में घटित घटनाएं दिखाती हैं कि यह हथियार कितना घातक है और सबसे मजबूत संस्थान भी इसके दुरुपयोग एवं विनाश के लिए कितने जिम्मेदार हैं? जिम्मेदार राजकोषीय नीति के लिए जरूरी है कि राजस्व संग्रह, उधारी एवं व्यय के आकलन एवं पूर्वानुमान के लिए सरकार जिन सूचनाओं का इस्तेमाल करती है वह कितना सटीक एवं समग्र है? भारत में ऐसी सूचना दो साल की देरी से मिलती है। असल में अशुद्ध या अधूरी सूचना के गंभीर नतीजे हो सकते हैं। भारत के मामले में 2019 में भी मैं कह चुका हूं कि गैर-बजट उधारी के लिए गलत सूचना एवं तरीके के इस्तेमाल ने एक राजकोषीय संकट पैदा होने का भ्रम रचा जिससे सरकार महामारी के विनाशकारी प्रभावों से निपटने के लिए बेहद जरूरी होने पर भी विस्तारित राजकोषीय नीति का इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पाई। तमाम बाध्यकारी साधनों की मदद से भ्रामक सूचना राजकोषीय स्थिति के बारे में एक अनचाही गुलाबी तस्वीर पेश कर सकती है और अपरिहार्य रूप से इसके बुरे नतीजे होंगे। पुलिस ज्यादती, सैन्य अभियानों की नाकामी और राजकोषीय तनाव में बढ़ोतरी होती है जब सूचना का अक्षम या भ्रामक इस्तेमाल होता है।
अर्थव्यवस्था को एक राजकोषीय योजना की जरूरत है और इसके लिए एक राजकोषीय जवाबदेही मसौदा चाहिए। एफआरबीएम का एक वाजिब मसौदा वित्त मंत्रियों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही मितव्ययिता एवं विस्तार जैसे निष्फल युग्मों का अनुकरण नहीं करना चाहिए। लेकिन नीति तैयार करने एवं क्रियान्वयन के लिए एक सांगठनिक ढांचा भी हो जिसका जोर ‘कितना खर्च’ के बजाय ‘क्या खर्च हो रहा है’ पर हो। आम चीज की तलाश में लगे किसी अकाउंटेंट या बहुपक्षीय एजेंसी के लिए नहीं लेकिन एक नीति-निर्माता के लिए यही तरीका है।
(लेखक ओडीआई, लंदन के प्रबंध निदेशक हैं। लेख में विचार व्यक्तिगत हैं)

First Published : January 25, 2021 | 8:52 PM IST