उद्योग

स्मार्टफोन चमके, कपड़ा डूबा- भारत के निर्यात की अंदरूनी कहानी

अमेरिका की टैरिफ नीति ने भारत के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है- रोजगार देने वाले झींगा-कपड़ा पर ध्यान दे या ज्यादा कमाई वाले स्मार्टफोन पर

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यश कुमार सिंघल   
Last Updated- December 19, 2025 | 3:23 PM IST

भारत के सामने अमेरिका को निर्यात को लेकर एक बड़ी दुविधा है, जिसे “झींगा या स्मार्टफोन” की समस्या कहा जा रहा है। झींगा जैसे श्रम-प्रधान (ज्यादा मजदूरों वाले) उत्पादों का निर्यात करने से रोजगार बनता है और छोटे कारोबारों को सहारा मिलता है। लेकिन स्मार्टफोन जैसे सामान महंगे होते हैं, जिससे देश को ज्यादा पैसा मिलता है।

दिक्कत यह है कि मुकाबला बराबर का नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैक्स नीति के कारण अमेरिका ने भारत के स्मार्टफोन और दवाओं पर टैक्स नहीं लगाया है। लेकिन झींगा, कपड़ा और खेती के सामान पर बहुत ज्यादा टैक्स लगाया गया है, जो 50 फीसदी तक हो सकता है। इससे भारत के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है कि वह तय करे कि लोगों को काम देने वाले सामान पर ध्यान दे या ज्यादा पैसा कमाने वाले सामान पर।

दोनों का संतुलन जरूरी

भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) के प्रमुख अजय सहाय का कहना है कि भारत को दोनों तरह का सामान बाहर के देशों को बेचना चाहिए। उनके अनुसार, अगर भारत को एक ट्रिलियन डॉलर का निर्यात लक्ष्य पूरा करना है, तो मशीन और तकनीक वाला सामान भी जरूरी है, क्योंकि दुनिया में इसकी मांग बढ़ रही है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादा लोगों को काम देने वाले धंधों को नहीं छोड़ा जा सकता, भले ही उनसे बहुत ज्यादा पैसा न आए।

अमेरिका को भारत जो भी सामान निर्यात करता है, उसमें से एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा ऐसे सामान का है, जिनमें ज्यादा मजदूर काम करते हैं। इन्हीं सामानों पर ट्रंप सरकार के टैक्स का सबसे ज्यादा असर पड़ा है। साल 2025 में अमेरिका को भारत के करीब 20 फीसदी निर्यात कपड़ा और खेती से जुड़े सामान का था। यही वे काम हैं, जिनसे सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है।

स्मार्टफोन से बढ़ी कमाई

दूसरी तरफ, दुनिया में तकनीक वाले सामान की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसी वजह से भारत के लिए महंगे और ज्यादा कीमत वाले सामान बनाना ज्यादा जरूरी हो गया है। भारत जो कुल सामान बाहर बेचता है, उसमें हाई-टेक सामान का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। इसमें स्मार्टफोन का बड़ा योगदान है। भारत से जो स्मार्टफोन बाहर जाते हैं, उनमें से सबसे ज्यादा अमेरिका को भेजे जाते हैं।

MSME की बड़ी भूमिका

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSME) ज्यादातर श्रम-प्रधान और कम तकनीक वाले उत्पाद निर्यात करते हैं। खेती के बाद यही क्षेत्र देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला है। इस क्षेत्र में करीब 28 करोड़ लोग काम करते हैं। MSME मंत्रालय के अनुसार, भारत के कुल सामान के निर्यात में MSME की हिस्सेदारी 2023-24 में 45.74 फीसदी थी, जो 2024-25 में बढ़कर 48.55 फीसदी हो गई। मतलब साफ है कि भारत के लगभग आधे निर्यात छोटे और मझोले उद्योगों से आते हैं।

भारत क्यों पीछे है?

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों ने ऐसे सामान बेचने में भारत से बेहतर काम किया है, जिनमें कम पढ़े-लिखे मजदूर काम कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि भारत ने अब तक सस्ती मजदूरी का पूरा फायदा नहीं उठाया। अगर ऐसा किया जाता, तो ज्यादा लोगों को काम मिलता और छोटे उद्योग (MSME) और मजबूत होते।

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पिछले कुछ सालों में भारत ने तकनीक वाला सामान ज्यादा बेचना शुरू किया है। साल 2013 में भारत के कुल निर्यात में ऐसे सामान का हिस्सा करीब 9 फीसदी था, जो 2025 के शुरुआती महीनों में बढ़कर करीब 21 फीसदी हो गया। अमेरिका को भेजे जाने वाले सामान में यह बढ़ोतरी और भी ज्यादा दिखी है। साल 2024 में अमेरिका को भारत का करीब 24 फीसदी निर्यात तकनीक वाला था, जो 2025 की शुरुआत में बढ़कर करीब 36 फीसदी हो गया। इसकी सबसे बड़ी वजह स्मार्टफोन हैं। वहीं दूसरी तरफ, कपड़ा, खेती और कच्चे तेल जैसे कम तकनीक वाले सामान का हिस्सा भारत के कुल निर्यात में धीरे-धीरे कम होता गया है।

आयात पर बढ़ती निर्भरता

जैसे-जैसे भारत तकनीक वाला सामान ज्यादा निर्यात कर रहा है, वैसे-वैसे वह तकनीक वाला सामान बाहर से आयात भी ज्यादा रहा है। साल 2013 में भारत के कुल आयात में ऐसे सामान का हिस्सा करीब 14 फीसदी था, जो 2025 की शुरुआत में बढ़कर करीब 25 फीसदी हो गया।

खासतौर पर चीन से आने वाला सामान ज्यादा तकनीक वाला होता है। जानकारों का कहना है कि स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने के लिए जो पुर्जे और चिप्स चाहिए, वे भारत अभी बाहर से ही मंगाता है, क्योंकि देश में इन्हें बनाने की पूरी व्यवस्था अभी तैयार नहीं हुई है।

समाधान क्या है?

विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को केवल फाइनल प्रोडक्ट जोड़ने (असेंबली) तक सीमित नहीं रहना चाहिए। भारत को चाहिए कि वह कच्चे माल और छोटे-छोटे पुर्जों से लेकर पूरा सामान खुद बनाए। FIEO के अजय सहाय का कहना है कि जैसे-जैसे प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं पुर्जों और इंटरमीडिएट उत्पादों के लिए लागू होंगी, वैसे-वैसे देश में उनके लिए कंपनियां भी बनेंगी। इससे विदेशी निवेश आएगा और रोजगार भी बढ़ेगा। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजय श्रीवास्तव का कहना है कि चीन ने भी शुरुआत में आयातित पुर्जों से असेंबली की और बाद में धीरे-धीरे अपने देश में ही पुर्जों का निर्माण शुरू किया।

जानकारों का कहना है कि भारत का निर्यात अभी कुछ ही तरह के सामान पर टिका हुआ है और इनमें से कई सामान बाहर से मंगाए गए पुर्जों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। इसलिए सरकार को यह समझना जरूरी है कि PLI जैसी योजनाओं का फायदा जमीन पर कम क्यों दिख रहा है।

भारत के सामने रास्ता आसान नहीं है, लेकिन मौका अभी है। आज जो फैसले लिए जाएंगे, वही तय करेंगे कि भारत “विकसित भारत” कैसे बनेगा- ज्यादा लोगों को काम देकर, ज्यादा पैसा कमा कर, या फिर दोनों के बीच सही संतुलन बनाकर।

First Published : December 19, 2025 | 2:57 PM IST