facebookmetapixel
उत्तर प्रदेश में 34,000 करोड़ रुपये के रक्षा और एयरोस्पेस निवेश दर्जकेंद्र ने संसदीय समितियों का कार्यकाल दो साल करने का दिया संकेतशैलेश चंद्रा होंगे टाटा मोटर्स के नए एमडी-सीईओ, अक्टूबर 2025 से संभालेंगे कमानदिल्ली बीजेपी का नया कार्यालय तैयार, PM Modi आज करेंगे उद्घाटन; जानें 5 मंजिला बिल्डिंग की खास बातेंAtlanta Electricals IPO की बाजार में मजबूत एंट्री, ₹858 पर लिस्ट हुए शेयर; हर लॉट ₹1983 का मुनाफाJinkushal Industries IPO GMP: ग्रे मार्केट दे रहा लिस्टिंग गेन का इशारा, अप्लाई करने का आखिरी मौका; दांव लगाएं या नहीं ?RBI MPC बैठक आज से, दिवाली से पहले मिलेगा सस्ते कर्ज का तोहफा या करना होगा इंतजार?NSE Holidays 2025: अक्टूबर में 3 दिन बंद रहेंगे बाजार, 2 अक्टूबर को ट्रेडिंग होगी या नहीं? चेक करें डीटेलनए ​शिखर पर सोना-चांदी; MCX पर गोल्ड ₹1.14 लाख के पारअब QR स्कैन कर EMI में चुका सकेंगे अपने UPI पेमेंट्स, NPCI की नई योजना

Opinion: मजबूत विकास के लिए संघवाद जरूरी

Federalism in India: सशक्त आर्थिक विकास और उच्च राजनीतिक सद्भाव के लिए विकास के नियोजन में संघवाद को बनाए रखना अनिवार्य है। इस संबंध में बता रहे हैं नितिन देसाई

Last Updated- February 26, 2024 | 9:17 PM IST
मजबूत विकास के लिए संघवाद जरूरी, Federalism for development

हर बड़े और विविधतापूर्ण देश में संघवाद राजनीतिक स्थिरता ही नहीं बल्कि आर्थिक विकास के लिए भी मायने रखता है। भारत जैसे विविधता वाले देश में अपेक्षित विकास नीतियां और कार्यक्रम बनाने के लिए प्रांतीय और उप प्रांतीय स्तर पर सत्ता के विकेंद्रीकरण में स्थानीय दशाओं का ध्यान रखना होगा और यह केंद्र के विकास लक्ष्य और तरीकों से ज्यादा प्रभावी साबित हो सकता है।

पिछले तीन दशकों में चीन का तेज विकास एक उदाहरण है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री रॉनल्ड कोस और उनके सहयोगी निंग वांग ने करीब एक दशक पहले लिखे एक शोध पत्र में यह तर्क दिया था कि इस तरह वृद्धि में तेज रफ्तार की व्याख्या विकास के मामलों में केंद्रीय सत्ता के कमजोर या हल्का होने के जरिये की जा सकती है। उनके मुताबिक चीन में विकेंद्रीकरण का उभार बाद में हुआ, 1962 के बाद जब चीन के प्रांत, नगर पालिकाओं, काउंटियों और यहां तक कि छोटे शहरों ने निवेश और स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए रणनीति बनाने के लिए खुली स्पर्धा की।

इसमें कहा गया है, ‘चीन एक विशाल प्रयोगशाला बन गया था, जहां कई अलग-अलग तरह के आर्थिक प्रयोग एक साथ करने की कोशिश की गई। दूसरे दशक में क्षेत्रीय स्पर्धा मुख्य परिवर्तनकारी ताकत बन गई, जिसने चीन को सदी के अंत तक एक बाजार अर्थव्यवस्था में बदल दिया।’

चीन में विकेंद्रीकरण की नीति की इस शानदार सफलता से एक अहम सबक मिलता है कि भारत में भी हमें इस पर विचार करना चाहिए जहां कि पिछले सात दशकों से भी ज्यादा समय से विकास के नियोजन और कार्यक्रम पर केंद्र सरकार का सख्त नियंत्रण रहा है। लेकिन चीन एक अधिनायकवादी देश है और वहां सभी प्रांतों, उप प्रांतों और शहरों में एक ही राजनीतिक दल का शासन है। विकेंद्रीकरण का जो सकारात्मक पक्ष है वह पूरी तरह आर्थिक ही है।

दूसरी तरफ, भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं। इसकी वजह से कई बार ऐसा भी होता है कि किसी राज्य में अगर केंद्र में सत्तारूढ़ दल के विरोधी पार्टी की सरकार है तो उसे भेदभाव का सामना करना पड़े। हाल में कर्नाटक की शिकायत इसका एक उदाहरण है। ज्यादा गंभीर उदाहरण हाल में वह चर्चित आरोप रहा जिसमें कहा गया कि वृह्नमुंबई महानगरपालिका विकास कार्यों के लिए फंड के आवंटन में सत्तारूढ़ दल के विधायकों के प्रति जबरदस्त पक्षपात दिखा रही है। इसलिए, भारत में विकेंद्रीकरण का मामला न केवल बेहतर विकास प्रदर्शन के वादे पर टिका हुआ है, बल्कि अधिक सौहार्दपूर्ण राजनीति की संभावना पर भी निर्भर है।

भारत में विकेंद्रीकरण को अंतर-राज्यीय प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देने वाला नहीं बल्कि उनके बीच व्यापारिक बाधाएं खत्म करने वाला होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि हम 1992 के बड़े उदारीकरण कदम के बाद एक एकीकृत बाजार अर्थव्यवस्था, भौतिक बुनियादी ढांचे के पर्याप्त विकास और संचार, इंटरनेट मार्केटिंग तथा यूपीआई आधारित भुगतान के लिए तीव्र डिजिटल सुविधाओं की तरफ बढ़ रहे हैं। एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की तरफ कदम बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण उदाहरण वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली का लागू होना है।

राज्य स्तरीय विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए दो क्षेत्रों में नीतिगत समायोजन करना होगा। पहला, अपनी दशाओें के मुताबिक उपयुक्त विकास रणनीति तैयार करने के लिए राज्यों को ज्यादा लचीलापन दिखाना होगा। दूसरा, राजकोषीय प्रणाली इस तरह की रखनी होगी कि राज्यों को बिना रोकटोक ज्यादा संसाधन और पूंजी बाजार तक पहुंच हासिल हो।

विकास की रणनीति तैयार करने में लचीलेपन की जरूरत इसलिए ज्यादा है कि भूमि, जल, खनिज संसाधन, जलवायु दशाओं, संख्या, आयु-संरचना और कौशल के लिहाज से मानव संसाधन, उद्यमिता क्षमता और अन्य कई मामलों में अलग-अलग राज्यों में काफी अंतर है। इस बात की निश्चित रूप से आशंका रहती है कि बेहतर संसाधन संपन्न राज्य तेजी से प्रगति करेगा, एक ऐसा जोखिम जो अभी भी विकास रणनीति पर मजबूत केंद्रीय नियंत्रण के दौर में स्पष्ट दिखता है।

विकास रणनीति के विकेंद्रीकरण से राज्यों के बीच गहरी होती इस खाई को कम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए उन्हें इस मामले में ज्यादा अंतर की गुंजाइश देनी होगी कि किन फसलों को प्रोत्साहित करना है, किस तरह की कृषि मार्केटिंग को प्रोत्साहित करना है, किस तरह के औद्योगिक निवेश लाने की कोशिश या आकर्षित करना है, शिक्षा और स्वास्थ्य के किस क्षेत्र में सरकारी मदद को प्राथमिकता देनी है आदि।

विकेंद्रीकरण के साथ ही केंद्र सरकार की विकास रणनीति तैयार करने में भूमिका बदल जाएगी, और उसे अंतर-राज्यीय सुविधाओं खासकर भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे, विदेश व्यापार नीति संबंधी विचार-विमर्श और राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था से गहराई से जुड़े विकास संबंधी मसलों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा।

तो राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में किसी राजनीतिक दल का हिस्सा लेना इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि उक्त मसलों पर उसकी क्षमता और प्रभावशीलता कितनी है, बजाय इसके कि वह किसानों, गरीब परिवारों आदि को खैरात के रूप में कितनी रकम देने को तैयार है।

विकास के प्रबंधन का विकेंद्रीकरण प्रभावी हो, इसके लिए हमें राजकोषीय ढांचे को नए सिरे से डिजाइन करने की जरूरत है, ताकि सार्वजनिक कोष ज्यादा स्पष्ट तरीके से उस प्रशासन के हाथों में पहुंचे जो विकास की नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं।

वर्ष 2022-23 में राज्यों ने समेकित सरकारी व्यय का करीब 55 फीसदी हिस्सा हासिल किया, जबकि उन्होंने समेकित सरकारी कर राजस्व का सिर्फ 38 फीसदी ही जुटाया और सरकार की बाजार से उधारी में उनका हिस्सा 31 फीसदी था। पिछले वित्त आयोग ने यह तय किया था कि केंद्र सरकार के साझा करने योग्य करों का 41 फीसदी हिस्सा राज्यों को दिया जाएगा।

लेकिन सच्चाई यह है कि 2022-23 में केंद्र सरकार के संग्रहित करों में से राज्यों को सिर्फ 30 फीसदी हिस्सा ही मिल पाया क्योंकि केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष संग्रह का बड़ा हिस्सा विशिष्ट उद्देश्य के उपकरों और अधिभारों से आए, जिनको कि राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता।

राज्यों तक विकेंद्रीकरण ही पर्याप्त नहीं होगा। विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन निर्भर करता है शासन के तीसरे स्तर यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों की भूमिका पर। इस तीसरे स्तर के जरिये विकेंद्रीकरण संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में निहित है।

लेकिन वास्तव में राजकोषीय संसाधनों की साझेदारी में उनको शामिल करना, उच्च सरकारी स्तर से विवेकाधीन अनुदान प्रदान करने से ज्यादा नहीं हो पाया है। इन तीसरे स्तर की संस्थाओं को राजकोषीय संसाधनों तक बेहतर पहुंच देनी होगी और रोजगार को आकर्षित करने जैसे स्थानीय प्रबंधन एवं विकास की रणनीति तैयार करने में उनको ज्यादा लचीलापन मुहैया कराना होगा।

विकास के विकेंद्रीकरण के लिए आवश्यक है कि केंद्र सरकार उन क्षेत्रों के लिए कार्यक्रमों और नीतिगत समर्थन पर प्राथमिकताओं और रणनीतियों में भिन्नता को स्वीकार करे जो राज्यों की संवैधानिक क्षमता के भीतर हैं। उसे अपने साझा करने योग्य कर संग्रह से परे जाने की कोशिश भी कम से कम करनी चाहिए।

दूसरी तरफ, राज्यों को भी विकास के प्रारूप बनाने में उसी तरह का लचीलापन दिखाना चाहिए और पंचायतों तथा नगर पालिकाओं तक राजकोषीय संसाधनों में निर्धारित हिस्सेदारी के समान सिद्धांत को लागू करना चाहिए। विकास की सत्ता का विकेंद्रीकरण राज्यों, नगर पालिकाओं और पंचायतों को उन करों की उगाही के मामले में ज्यादा आक्रामक होने के लिए प्रेरित करेगा जो उनके नियंत्रण में हैं। विकास के नियोजन और राजकोषीय प्रणाली में संघवाद दोनों लिहाज से जरूरी है, ज्यादा सशक्त विकास को बनाए रखने और राज्यों के संघ यानी भारत में ऊंचे दर्जे के राजनीतिक सद्भाव को सुनिश्चित करने के लिए।

विकास योजना और राजकोषीय प्रणाली में संघवाद अधिक सशक्त विकास बनाए रखने और राज्यों के संघ अर्थात् भारत में उच्च स्तर का राजनीतिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

First Published - February 26, 2024 | 9:17 PM IST

संबंधित पोस्ट