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Opinion: रक्षा निर्यात से जुड़ी है रणनीतिक अनिवार्यता

Defense Export : रक्षा उपकरणों के विश्वसनीय निर्यातक के रूप में भारत का उभार एक बेहतरीन अवसर है जिसका लाभ उठाकर वैश्विक स्तर पर अपने बढ़ते कद को अधिक मजबूत बनाया जा सकता है।

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Ajay Kumar   
Last Updated- February 21, 2024 | 9:25 PM IST

बढ़ते भूराजनीतिक तनाव के बीच विश्लेषकों का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर रक्षा और विमानन उद्योग में तेजी से विस्तार होगा और इनका आकार 2022 के 750 अरब डॉलर से बढ़कर 2030 तक 1.38 लाख करोड़ डॉलर हो जाएगा। आर्थिक लाभों से से परे रक्षा निर्यात पर्याप्त रणनीतिक लाभ मुहैया कराता है। किसी खास देश से रक्षा उपकरण खरीदना तकनीकी निर्भरता स्थापित करता है। इनके रखरखाव, मरम्मत, सुधार कार्य, कलपुर्जे और भविष्य में उन्नयन के लिए भी उन पर निर्भर रहना होता है।

तुलनात्मक रूप से देखें तो निर्यातक और प्राप्त करने वाले देशों के बीच सैन्य परस्परनिर्भरता बढ़ती है और संयुक्त सैन्य कार्रवाई का विकल्प खुलता है। इस तरह की निर्भरता साझेदार देशों के कूटनीतिक और रणनीतिक भूराजनीतिक रुख को निर्धारित करती है। ये बातें रक्षा निर्यात के व्यापक प्रभाव और महत्त्व को रेखांकित करती हैं।

अमेरिका फिलहाल दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है और वैश्विक हथियार निर्यात में उसकी हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है। हमेशा से ऐसा नहीं था। वर्ष 1870 और 80 के दशक में अमेरिकी युद्धपोत निर्माण और सामरिक धातु उद्योग यूरोप से पीछे था। 1880 से पहले नौसेना और युद्ध विभाग सरकारी नौसैनिक यार्ड और शस्त्रागारों से पोत और हथियार खरीदते थे।

लकड़ी के पाल और स्टील-भाप के बेड़ों में परिवर्तन का सामना करते हुए अमेरिका को यह तय करना था कि उसे ब्रिटेन से आयात करना है या फिर घरेलू उत्पादन पर जोर देना है। उसने घरेलू उत्पादन को चुना और कानूनी रूप से यह जरूरी कर दिया कि सभी पोत और कलपुर्जे घरेलू स्तर पर ही तैयार किए जाएं। इसके लिए निजी रक्षा उद्योग का विकास करना था।

इस बुनियादी बदलाव के साथ अमेरिकी रक्षा उद्योग को बदलने में कुछ अन्य अहम नीतिगत उपायों की भी भूमिका रही। सरकार के धातु परीक्षण कार्यक्रम के जरिये उद्योग जगत की परीक्षण लागत को कम किया गया। बुनियादी खरीद कार्यक्रम में संशोधन करके आपात परिस्थितियों में या प्रतिस्पर्धा के अव्यावहारिक होने की स्थिति में प्रतिस्पर्धी बोली के बजाय सीधी बातचीत के जरिये खरीद की इजाजत दे दी गई। एक अन्य अहम निर्णय था सरकार द्वारा अमेरिकी कंपनियों की विदेशी बिक्री को बढ़ावा देना। इसके लिए तर्क दिया गया कि देश की रक्षा के लिए सैन्य-औद्योगिक परिसर को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है।

अमेरिका में दुनिया की शीर्ष रक्षा उद्योग पारिस्थितिकी विकसित होने में भारत के लिए गहरे सबक हैं क्योंकि वह भी उसी मार्ग पर बढ़ना चाह रहा है। 2022-23 में देश का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 16,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया यानी पांच साल में उसने 800 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की और वह 85 देशों तक विस्तारित है। इसके साथ ही भारत दुनिया के शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों में शामिल हो गया। यह बात दिलचस्प है कि इस वृद्धि का करीब 80 फीसदी निजी क्षेत्र से आता है। देश के बढ़ते रक्षा निर्यात में मिसाइल, रॉकेट, पनडुब्बी, तोप और ड्रोन आदि शामिल हैं।

भारत के सैकड़ों सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों को वैश्विक रक्षा उपकरण निर्माताओं की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करना, इस दौरान निर्यात में इजाफा भारत को भविष्य की वृद्धि के अनुकूल बनाता है। ध्यान रहे गांधी नगर में आयोजित डिफेंस एक्सपो 2022 में करीब 20 मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल आए और उन्होंने भारत से रक्षा उपकरण खरीदने में रुचि दिखाई।

बाहरी कारक भी इस विचार का समर्थन करते हैं। चीन का हथियार निर्यात घट रहा है। 2016 से 2020 के बीच उसके हथियार निर्यात में 7.8 फीसदी की कमी आई। ऐसा मोटे तौर पर खराब गुणवत्ता और अविश्वसनीय प्रदर्शन के चलते हुआ। ऐसे में भारत के लिए अवसर है। म्यांमार ने चीन के जेट उड़ाने बंद कर दिए हैं, नाइजीरिया ने चेंगदू एफ-7 विमान लौटा दिए हैं और पाकिस्तान को भी एफ-22 मझोले पोतों में समस्या बताई है।

ये घटनाएं बताती हैं कि चीन के हथियार उद्योग के साथ समस्याएं हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुईं, इजरायल और हमास के बीच छिड़ी लड़ाई और अमेरिका के कई मोर्चों पर उलझे होने के कारण भारत हथियार खरीदने की चाह रखने वाले कई देशों के लिए विश्वसनीय साझेदार के रूप में उभरा है।

रूसी प्लेटफार्म को लेकर भारत की विशेषज्ञता से वे देश आकृष्ट हुए हैं जिनके पास रूसी हथियार हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की महत्ता बढ़ने के साथ ही भारत के पास अवसर है कि अमेरिकी और यूरोपीय नौसैनिक बेड़ों की बढ़ती मौजूदगी के अवसर का लाभ उठाएं। रक्षा क्षेत्र में सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का बढ़ता महत्त्व भारत की मजबूती से मेल खाता है। वैश्विक रक्षा कंपनियां भारत में अपने केंद्र स्थापित कर सकती हैं।

सरकार के डिफेंस एक्सिलेंस प्रोग्राम ने सैकड़ो स्टार्ट अप्स तैयार किए हैं जो देश के सशस्त्र बलों की मदद कर रहे हैं और जो वायरलेस कम्युनिकेशन, इमेज सेंसर, क्वांटम कम्युनिकेशंस, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आदि क्षेत्रों में वैश्विक लाइसेंस लेने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को लेकर वैश्विक धारणा बदलने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने उसे तेजी से सुधार और नवाचार वाली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है। इसने तेजी से बढ़ते रक्षा उद्योग को विश्वसनीयता प्रदान की है।

रक्षा निर्यात में इजाफे के लिए कई अन्य पहल भी जिम्मेदार हैं। इनमें निजी क्षेत्र तथा स्टार्टअप की भागीदारी शामिल है। इसके साथ ही निर्यात संबंधी स्वीकृतियों की बेहतर व्यवस्था के कारण देरी कम हुई है और रक्षा उद्योग के साथ ऑनलाइन संपर्क बढ़ाया गया है। रक्षा क्षेत्र के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट को सुगम बनाया गया है, डिफेंस एक्सपो और एयरो इंडिया को विश्व स्तरीय प्रदर्शनी के रूप में आरंभ करके, देश के रक्षा नवाचार को बेहतर बनाया गया है।

एक अहम शुरुआत हो चुकी है लेकिन अवसर कहीं अधिक बड़ा है। अगले एक दशक में देश को पांच शीर्ष रक्षा निर्यातकों में शामिल करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। इसके लिए कुछ नीतिगत पहल की जा सकती हैं: सरकार को भारतीय कंपनियों के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए, सरकार से सरकार के स्तर पर बिक्री के लिए नियम और प्रक्रिया बनाने चाहिए।

अमेरिका के साथ आपसी खरीद की चर्चा इसका प्रस्थान बिंदु हो सकती है लेकिन सामरिक दृष्टि से देखें तो रक्षा क्षेत्र की बिक्री के लिए अमेरिका के समान उदार ढांचा तैयार करना लाभप्रद होगा। रक्षा क्षेत्र में ऋण की शर्तों को विशिष्टता प्रदान करनी होगी क्योंकि रक्षा उत्पादन में प्रतिस्पर्धा सीमित है। ऐसे ऋण की ब्याज दरें कम रखनी होंगी ताकि उन्हें प्रतिस्पर्धी देशों की दरों के अनुरूप रखा जा सके। चूंकि अन्य देश हमारी स्टार्टअप द्वारा विकसित तकनीक चाहते हैं इसलिए देश और स्टार्टअप के हितों की रक्षा के लिए एक लाइसेंसिंग व्यवस्था बनानी होगी।

रक्षा निर्यात वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते कद को बढ़ाने और मित्र देशों के साथ रणनीतिक उत्तोलन में सुधार करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। यह संभवतः चुनाव के बाद नई सरकार के लिए प्राथमिकता तय करने का एक एजेंडा हो सकता है।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के वि​शिष्ट अति​थि प्राध्यापक हैं)

First Published : February 21, 2024 | 9:25 PM IST