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मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश ने दिखाया, कैसे कृषि क्षमता के सहारे राज्य तेजी से बढ़ सकते हैं आगे

मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों का उदाहरण हमें यह दिखाता है कि राज्य अपने कृषि जैसे पारंपरिक क्षेत्र की मजबूती के दम पर भी वृद्धि हासिल कर सकते हैं

Published by
शिशिर गुप्ता   
ऋषिता सचदेव   
Last Updated- October 29, 2025 | 9:37 PM IST

इस बात को लेकर लगभग आमराय है कि भविष्य में देश की आर्थिक वृद्धि में राज्यों की अहम भूमिका होगी। यह भी सर्वस्वीकार्य है कि तेज वृद्धि के लिए राज्यों को कारक-बाजार सुधारों के माध्यम से अपने विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को आगे बढ़ाना होगा। मसलन जमीन की कीमतों में कमी, लचीले श्रम कानूनों का क्रियान्वयन तथा शहरों को मजबूत बनाना क्योंकि कृषि को नैसर्गिक रूप से धीमी गति से बढ़ने वाला उपक्रम माना जाता है।

तेज विकास वाले राज्यों मसलन गुजरात और कर्नाटक के प्रदर्शन की बात करें तो उनके सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में बीते दशक में सालाना 8 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी देखी गई है। इसके लिए मुख्य रूप से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र जिम्मेदार रहा है। यह बात उपरोक्त धारणा को पुष्ट करती है। परंतु विकास का यह ढांचा कृषि प्रधान राज्यों के लिए दुविधा उत्पन्न करता है। दुविधा यह कि क्या उन्हें अपनी कृषि संबंधी मजबूती का त्याग करके उद्योग और सेवा क्षेत्र के लिए माहौल तैयार करना चाहिए ताकि वे तेज विकास हासिल कर सकें?

आज यह सवाल और भी प्रासंगिक है क्योंकि वैश्विक व्यापार अनिश्चित है और विनिर्माण आधारित वृद्धि के पारंपरिक मॉडल का अनुसरण करना मुश्किल हो सकता है। मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश (अब विभाजित) जैसे राज्यों ने कृषि क्षेत्र की मजबूती का लाभ लेकर उच्च वृद्धि हासिल की। दोनों राज्यों के जीडीपी में कृषि का योगदान 30 फीसदी है और 2015 से 2025 के बीच उनके यहां यह क्षेत्र क्रमश: 6 फीसदी और 7.5 फीसदी की दर से बढ़ा। इस दौरान उनके जीडीपी में क्रमश: 6.2 फीसदी और 6.7 फीसदी की वृद्धि हुई। तर्क यह नहीं है कि इन राज्यों को कभी भी विनिर्माण या सेवा क्षेत्रों की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि यह है कि इनका वर्तमान आधार यानी कृषि स्वयं विकास को गति दे सकता है, जबकि ये राज्य धीरे-धीरे गैर-कृषि उद्योगों की ओर अग्रसर होने के लिए तैयार होंगे।

आंध्र प्रदेश की कामयाबी की कहानी की जड़ें उसके मछली पालन क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धी केंद्र के रूप में रूपांतरण से जुड़ी है, विशेष रूप से फ्रोजन झींगा उद्योग में। भारत वर्ष 2024 में 4.5 अरब डॉलर के निर्यात के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा झींगा निर्यातक बन गया, जिसमें आंध्र प्रदेश ने झींगा उत्पादन में 78 फीसदी और कुल समुद्री खाद्य उत्पादन का 30 फीसदी योगदान दिया। आंध्र प्रदेश में मछली पालन क्षेत्र ने पिछले एक दशक में 16 फीसदी वार्षिक दर से वृद्धि की है। यदि यह वृद्धि अगले पांच वर्षों तक जारी रहती है, तो मछली पालन राज्य के जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा बन सकता है और राज्य की आर्थिक वृद्धि में 1.2 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है।

मत्स्य उद्योग का उदय अनुकूल समय और रणनीतिक क्रियान्वयन का एक मिश्रण है। वर्ष2009 में थाईलैंड और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के झींगा फार्मों में ‘अर्ली मॉर्टैलिटी सिंड्रोम’ (ईएमएस) फैलने से वैश्विक बाजार में भारी कमी उत्पन्न हो गई। आंध्र प्रदेश ने इस मौके का फायदा उठाया और समय रहते ‘पैसिफिक व्हाइट श्रिम्प’ नामक प्रजाति को अपनाया जो एक अधिक रोग-प्रतिरोधक, किफायती और तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है।

इस नई प्रजाति को आंध्र प्रदेश में व्यापक रूप से अपनाने में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए) ने अहम योगदान दिया। उन्होंने न्यूनतम या बिना किसी शुल्क के बार-बार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। इसके साथ ही, वर्ष 2015 में राज्य सरकार ने अपनी मत्स्य नीति जारी की। इस नीति के तहत झींगा फार्म स्थापित करने के लिए 50 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की गई और बिजली दरों में उल्लेखनीय कटौती की गई। इससे किसानों की लागत कम हुई और विकास के लिए अनुकूल वातावरण बना।

ट्रंप द्वारा भारी शुल्क लगाने के बाद जरूर इस उद्योग को चुनौती उत्पन्न हुई है और उम्मीद की जानी चाहिए कि यह अल्पकालिक होगी। यह इस बात का सशक्त प्रमाण है कि आर्थिक विकास उत्पादकता में सुधार के माध्यम से होता है, जो तुलनात्मक लाभ द्वारा संचालित होता है।

मध्य प्रदेश की सफलता उत्पादकता में सुधार और विविधीकरण पर आधारित है। वर्ष1995 से 2005 के बीच राज्य में वास्तविक कृषि वृद्धि दर केवल 3 फीसदी वार्षिक थी, लेकिन 2000 के दशक के उत्तरार्ध में हुए सुधारों के बाद इसमें उल्लेखनीय तेजी आई। सिंचित क्षेत्र 24 फीसदी से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गया, जिससे 2006 से 2022 के बीच खाद्यान्न उत्पादन दोगुना हो गया जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि केवल 50 फीसदी रही, वह भी खरीफ और रबी दोनों फसलों के लिए।

इसका परिणाम यह हुआ कि आज राज्य देश के गेहूं उत्पादन में 21 फीसदी और सोयाबीन उत्पादन में 42 फीसदी योगदान देता है। इसके अलावा, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए राज्य ने 2013 से 2023 के बीच खाद्यान्न भंडारण क्षमता को तीन गुना बढ़ा दिया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर भंडारण क्षमता लगभग स्थिर रही। राज्य की गहन जल-खपत वाली फसलों से हटकर विविधीकरण पर ध्यान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। कुल फसल उत्पादन का 14 फीसदी तिलहन और 10 फीसदी दलहन से आता है। यह पंजाब से बहुत अलग है जहां तिलहन और दलहन मिलाकर कुल फसल उत्पादन का 1 फीसदी से भी कम हिस्सा हैं।

मध्य प्रदेश ने डेरी के क्षेत्र में भी विविधीकरण किया। वहां वर्ष2002 से 2024 के बीच दूध उत्पादन चार गुना बढ़ा जो राष्ट्रीय स्तर पर हुई 2.8 गुना वृद्धि से कहीं अधिक है। इस वृद्धि में ‘आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना’ जैसी पहलों ने मदद की, जिसके तहत डेरी फार्म स्थापित करने के लिए बैंक ऋण पर सब्सिडी दी गई और देशी गायों की नस्लों को विशेष रूप से बढ़ावा दिया गया। चूंकि राज्य की अधिकांश भूमि अब सिंचाई के अंतर्गत आ चुकी है, इसलिए कृषि क्षेत्र में आगे की वृद्धि के लिए उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर रुख करना और पशुपालन को और अधिक प्रोत्साहित करना आवश्यक है। ऐसा कदम राज्य की मौजूदा ताकतों का बेहतर उपयोग करेगा और पर्यावरणीय व वित्तीय दृष्टि से भी अधिक टिकाऊ सिद्ध होगा।

मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश का आर्थिक सफर दिखाता है कि राज्य अपनी मौजूदा ताकतों को पहचानकर और उनका लाभ लेकर उल्लेखनीय सफलता हासिल कर सकते हैं। क्षेत्रवार प्रशिक्षण, लक्षित सब्सिडी, तकनीक को अपनाने तथा बाजार पहुंच और अधोसंरचना में सुधार के साथ इन राज्यों ने कृषि जैसे पारंपरिक रूप से कम उत्पादक वाले माने जाने वाले क्षेत्र को समावेशी और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि के ताकतवर उत्प्रेरक में बदल दिया है।


(लेखक सीएसईपी में क्रमश: सीनियर फेलो और एसोसिएट फेलो हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : October 29, 2025 | 9:29 PM IST