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…अब महिलाओं के बोलने की बारी

International Women's Day 2024: महिलाओं की आवाज़, चुनावों में परिवर्तन की लहर

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निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- March 07, 2024 | 11:14 PM IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 की थीम, ‘महिलाओं में निवेश करें, प्रगति को गति दें’ है और यह इस बात की तस्दीक करता है कि महिला और पुरुष के बीच समानता हासिल करने के लिए दुनिया में बदलाव लाना होगा। इसका आकलन करने के लिए चुनाव से बेहतर समय नहीं हो सकता है। चुनावों के इस वर्ष (वर्ष 2024 में लगभग 50 चुनाव होने हैं) में जब नेता अपना पक्ष रखते हैं और मतदाता फैसला करते हैं तब महिलाएं किस स्थिति में होती हैं और उनके मुद्दे कितने महत्त्वपूर्ण होते हैं?

हाल ही में शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में लगातार चौथी बार जीत हासिल करने वाली दुनिया की पहली महिला नेता बन गई हैं। हालांकि, इस देश में 300 संसदीय सीट के लिए लड़ रहे 1,895 उम्मीदवारों में से केवल 5 प्रतिशत महिलाएं थीं जो महिलाओं के असमानता के स्तर को साफतौर पर दर्शाता है। यह उस प्रगति के विपरीत है जो महिलाओं ने शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में हासिल की है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में फरवरी में नैशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभा के चुनावों के लिए पहले से कहीं अधिक महिलाएं चुनाव मैदान में उतरीं। फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने खूब मेहनत से प्रचार-प्रसार किया और बेहतर पाकिस्तान बनाने के लिए अपना नजरिया स्पष्ट किया।

मैक्सिको में जून में चुनाव होने वाले हैं और यहां चुनाव के बाद पहली महिला राष्ट्रपति बनने के आसार हैं। अल जजीरा की स्तंभकार बेलेन फर्नांडिस ने हाल ही में एक लेख में महिला नेता के उभरने की संभावना को सकारात्मक तरीके से युगांतकारी बदलाव बताया है। लेकिन इसमें यह सवाल भी किया गया कि क्या इससे मैक्सिको में महिलाओं के अस्तित्व से जुड़ी चुनौतियों का समाधान होगा।

लेखिका ने बताया है कि वर्ष 2015 और 2020 के बीच मैक्सिको में महिलाओं की इरादतन तरीके से की जाने वाली हत्या में 137 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही इस देश में हर दिन औसतन 10 महिलाओं और लड़कियों की हत्या हो जाती है और बड़ी संख्या में महिलाओं से जुड़ी हत्या के मामले में कोई मुकदमा भी नहीं चलता है।

ताइवान में हाल ही में जब लाई चिंग-ते राष्ट्रपति चुने गए तो उनकी साथी हसिआओ बी-खिम को देश में उपराष्ट्रपति का पद मिला। इस उपलब्धि के बावजूद, चुनाव अभियान के विमर्श में महिलाओं से जुड़े मुद्दे शामिल नहीं थे जबकि वेतन और सामाजिक परिवेश के लिहाज से महिलाएं असमानता का सामना कर रही हैं।

ब्रिटेन में होने वाले आगामी चुनावों वाले महिला मतदाताओं को लेकर चर्चा जारी है। हाल ही में, ग्लोबल इंस्टीट्यूट फॉर वीमंस लीडरशिप की निदेशक प्रोफेसर रोजी कैम्पबेल ने जोर देकर कहा कि महिला मतदाता अगले चुनाव के परिणाम के लिहाज से महत्त्वपूर्ण होंगी। ऐसे समय में जब घरेलू वित्त और सार्वजनिक सेवाओं जैसे कि नैशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं तब राजनीतिक दल भी इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि महिलाएं क्या चाहती हैं।

अमेरिका में, प्यू रिसर्च सेंटर के अमेरिकन ट्रेंड्स पैनल के सर्वेक्षण के जरिये इस बात को रेखांकित किया गया है कि उच्च स्तर के राजनीतिक पदों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं क्यों कम हैं। उदाहरण के लिए, सर्वेक्षण में शामिल लगभग 54 प्रतिशत लोगों का मानना है कि महिलाओं को खुद को साबित करने के लिए पुरुषों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, वहीं 47 प्रतिशत मानते हैं कि इसका कारण महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव है। जबकि अन्य 47 प्रतिशत सोचते हैं कि महिलाओं को पार्टी नेताओं से कम समर्थन मिलता है और 44 प्रतिशत इसका कारण महिलाओं की पारिवारिक जिम्मेदारियों से जोड़कर देखते हैं।

भारत में इस बार के महिला दिवस और लोकसभा चुनावों से पहले, राजनीतिक दल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए महिलाओं को लाभ देने के मकसद से कई तरह की रियायतों की घोषणा शुरू कर चुके हैं। विशेष रूप से, केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी उन प्रमुख योजनाओं वाले विज्ञापन जारी किए हैं जिनसे महिलाएं ‘सशक्त’ होंगी।

इन विज्ञापनों में आम जनता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए दिखाया जा रहा है जिन्होंने नल के पानी, शौचालय और सब्सिडी वाले रसोई गैस कनेक्शन जैसे तीन मुख्य कल्याणकारी उपायों के माध्यम से महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने की पहल की है।

जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के डैशबोर्ड इन प्रमुख योजनाओं के जरिये मुख्य रूप से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को लाभ देने का वादा करते हैं। चुनाव से पहले जारी किए गए इन योजनाओं के विज्ञापन इन्हें महिला सशक्तीकरण से जोड़ते हैं।

जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ साझेदारी की है ताकि वर्ष 2024 तक गांव के प्रत्येक घर में नल के पानी की आपूर्ति करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। इस योजना का एक अन्य नाम ‘हर घर जल’ महिलाओं के बीच अधिक लोकप्रिय है। जेजेएम की 2019 में शुरुआत होने के बाद से अब तक अनुमानित रूप से 74 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल का पानी पहुंच चुका है, जो 2019 के17 प्रतिशत से अधिक है जब इस अभियान की शुरुआत की गई थी।

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2014 में दुनिया की सबसे बड़ी स्वच्छता पहल के रूप में की गई थी और सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस अभियान के तहत 10 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया था। इस पहल के तहत स्वच्छता कवरेज का दायरा वर्ष 2014 के 39 प्रतिशत से बढ़ाकर 2019 में शत-प्रतिशत करने का दावा किया गया है।

इस पहल के आर्थिक, पर्यावरण और स्वास्थ्य लाभों के अलावा महिला सशक्तीकरण को भी इसमें शामिल किया गया है। हालांकि आलोचकों ने योजना के क्रियान्वयन संबंधी कमियों की ओर इशारा किया है जैसे कि पाइप वाले पानी की आपूर्ति का अभाव और शौचालय का घटिया निर्माण जिनकी वजह से यह योजना उतनी आकर्षक नहीं लगती जितना इसका प्रचार किया गया है।

तीसरी योजना, पीएमयूवाई या उज्ज्वला योजना है जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिलाओं को सब्सिडी वाले रसोई गैस कनेक्शन देना है जो खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का प्रतीक बन चुका है। योजना के तहत जारी किए गए कुल रसोई गैस कनेक्शन 29 फरवरी तक 10 करोड़ के आंकड़े पार कर गए।

भारत में नई-नई पंजीकृत महिला मतदाताओं की संख्या लगभग 1.4 करोड़ होगी जो 2024 के चुनावों में 1.2 करोड़ नए पंजीकृत पुरुष मतदाताओं से अधिक हो जाएगी। लेकिन कुल पुरुष मतदाताओं की संख्या 49.7 करोड़ है जो अब भी 47.1 करोड़ महिला मतदाताओं से काफी अधिक है।

इन आंकड़ों, रियायतों और सरकारी योजनाओं से परे हालांकि एक सवाल बरकरार है कि महिलाएं असल में किस तरह का बदलाव चाहती हैं? यह उनके लिए अपनी आवाज उठाने का एक मौका है।

First Published : March 7, 2024 | 11:14 PM IST