वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट एक मामले में पिछले वर्ष के बजट से खासतौर पर अलग रहा। इस बजट में गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियों के रूप में अलग की जाने वाली राशि काफी कम रही। बल्कि यह राशि 2021-22 के बजट की तुलना में आधी से भी कम रही। ऐसा इसलिए हुआ कि पिछले बजट में अनुमान जताया गया था कि विनिवेश प्राप्तियों से 1.75 लाख करोड़ रुपये की राशि मिलेगी जबकि ऐसा नहीं होने वाला है। वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक इससे केवल 78,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाई जा सकेगी। ऐसे में 2022-23 के बजट अनुमान सीमित रहे और विनिवेश के लिए केवल 65,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया गया। ऐतिहासिक मानकों से भले यह ऊंचा है लेकिन सरकार की महत्त्वाकांक्षा की दृष्टि से कमी उल्लेखनीय है। गत वर्ष सरकार ने उम्मीद जताई थी कि विनिवेश प्राप्तियों से उसे कठिन राजकोषीय गणित का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी।
विनिवेश प्राप्तियों के लक्ष्य में यह कमी निराशाजनक है क्योंकि सरकार ने अभी हाल ही में एयर इंडिया का सफलतापूर्वक निजीकरण किया है। यह कंपनी लंबे समय से बोझ बनी हुई थी। निश्चित तौर पर सरकार को इस विमानन कंपनी को बेचने के पहले उसके कर्ज निपटान के लिए बजट समर्थन भी उपलब्ध कराना पड़ा। परंतु हम एयर इंडिया का उदाहरण इसलिए दे रहे हैं कि इसने निजीकरण की प्रक्रिया में नई जान फूंकी है। सरकार को अभी भी यही आशा है कि वह इस वित्त वर्ष के बचे हुए महीनों में भारतीय जीवन बीमा निगम में उल्लेखनीय हिस्सेदारी बेच लेगी। परंतु सरकार इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं लग रही है कि वह भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) को अगले वर्ष तक बेच पाएगी या नहीं। चाहे जो भी हो लेकिन यह स्पष्ट है कि विनिवेश कार्यक्रम की मनमानी प्रकृति बजट निर्माण की प्रक्रिया पर भी भारी पड़ रही है। ऐसे में सरकार को कुछ समय और ऊर्जा यह सुनिश्चित करने पर भी लगानी चाहिए कि परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण और निजीकरण करने की उसकी योजना संस्थागत रूप से मजबूत है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन को इस समस्या को हल करने की कोशिश के रूप में देखा गया।
यह सही है कि आर्थिक समीक्षा में इसे अच्छी समीक्षाएं प्राप्त हुईं लेकिन लगता है यह बजट तैयार करने वालों को प्रेरित नहीं कर पाया। इसे देखने का एक सकारात्मक ढंग भी है: इसके मुताबिक सरकार द्वारा विनिवेश प्राप्तियों के लिए कमतर लक्ष्य तय करने ने विनिवेश कार्यक्रम को इस जरूरत से मुक्त कर दिया है जहां साल दर साल उसका इस्तेमाल घाटे की भरपाई के लिए किया जाता रहा है। अब राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन को एक सुरक्षित संस्थागत मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है। इसके लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष रुख की आवश्यकता है जहां उन कंपनियों और परिसंपत्तियों की पहचान की जाए जो निजी क्षेत्र के लिए उपयुक्त हों। इसके बाद इन्हें एक होल्डिंग कंपनी अथवा न्यास के अधीन करना चाहिए जो इन्हें व्यवस्थित कर सके तथा इनके आंतरिक लेखा तथा अन्य प्रणालियों के मानकों और गुणवत्ता में सुधार के लिए जरूरी समय और पैसे का निवेश कर सके।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि परिसंपत्तियों को समय पर बाजार में पेश किया जा सकता है और निर्णय लेने वाले भी भ्रष्टाचार जैसे आरोपों से बचे रह सकते हैं। यही नहीं निवेशक भी समय रहते अपनी योजना तैयार कर सकते हैं। इसका एक परोक्ष लाभ यह है कि किसी खास वर्ष में बाजार की तात्कालिक दशा विनिवेश अथवा निजीकरण की गति या आकार को प्रभावित नहीं कर पाती। राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना पर इसी दृष्टि से विचार किया जाना चाहिए। यदि परिसंपत्तियों का तेज गति से सही मूल्यांकन करना है तो सरकार को निर्णय प्रक्रिया के सर्वोच्च स्तर से इस पर ध्यान देना चाहिए।