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नए प्रयोगों से बदल जाएगा वर्तमान और भविष्य

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:55 PM IST

कोविड-19 महामारी से आई त्रासदी के बाद वर्ष 2020 और 2021 को लेकर जन मानस के मन में एक अलग धारणा बनी है। वे इन दोनों वर्षों को मानव इतिहास के अब तक के सबसे दुखद वर्षों में गिन रहे हैं। कोविड-19 महामारी ने सभी लोगों को प्रभावित किया है। यात्रा एवं आतिथ्य क्षेत्र तो इस महामारी की वजह से तबाह हो चुके हैं और लोग एक दूसरे से दूरी बरतते हुए कार्यालय एवं रोजमर्रा के कार्य निपटाने के लिए विवश हो गए हैं। मगर इस महामारी की वजह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तकनीकी स्तर पर नवोन्मेष हुए हैं। इनमें कुछ नवोन्मेष 2022 में भी जारी रहेंगे जिनके कई फायदे सामने आएंगे। कुछ क्षेत्रों में तो कोविड-19 महामारी के बाद भी नई खोज एवं आजमाइश का सिलसिला लगातार चल रहा है।
कुछ ऐसी तकनीक की चर्चा करनी जरूरी है जो वर्ष 2022 में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। मेसेंजर आरएनए तकनीक इन्हीं में से एक है। कोविड-19 की चुनौती से निपटने के लिए प्रयोगशालाओं में लगातार काम चलते रहे और इसकी क्रम में एम-आरएनए टीकों का विकास हो पाया। परंपरागत टीकों के जरिये शरीर में मृत या कमजोर वायरस दिया जाता है। शरीर वायरस को दुश्मन जानकर आक्रमण करता है और प्रतिरोधी क्षमता का विकास करता है। यहां समस्या यह है कि वायरस को पहले तैयार कर इसे मारना होता है जो अपने आप में काफी पेचीदा है। एमआरएनए तकनीक आधारित टीका शरीर को कोविड-19 के लक्षणों वाले वायरस तैयार करने का निर्देश देता है जिससे शरीर में प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न होती है। वायरस वास्तविक रूप में कभी शरीर में प्रवेश नहीं करता है। एमआरएनए टीके तेजी से बड़ी संख्या में तैयार किए जा सकते हैं। हमने एआरएनए टीकों के बारे में काफी कुछ सीखा है और बड़ी मात्रा में उन्हें तैयार किया है। इन टीकों को लेकर लोगों के मन में भरोसा भी बढ़ गया है। जीका, रैबीज आदि बीमारियों से लडऩे के लिए यही तकनीक अपनाई जा सकती है। हमने मोटे तौर पर सभी टीकों के बारे में काफी जानकारियां अर्जित की हैं। बच्चों को मलेरिया से सुरक्षा देने वाला टीका पिछले साल आम लोगों के लिए उतारा गया था और कैंसर के इलाज के टीके भी तैयार करने के लिए खोज जारी है। ये टीके कैंसर से ठीक हो चुके लोगों में दोबारा यह बीमारी फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
अत्याधुनिक स्वास्थ्य उपकरण: आने वाले समय में हृदय गति नियंत्रित करने वाले पेसमेकर ब्लूटूथ से चलेंगे और पल्स ऑक्सीमीटर और अन्य स्वास्थ्य उपकरण भी नई तकनीकों से लैसे होंगे। इसका मतलब हुआ कि इन उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर स्मार्टफोन के जरिये दूर से ही आसानी से नजर रखी जा सकती है। ऑनलाइन माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाओं के खंड में किए गए ये नवोन्मेष अब एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं और कोविड-19 महामारी में यह प्रक्रिया तेज हो गई है।
सैटेलाइट इंटरनेट: भारत में लगभग 45 करोड़ लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। मगर उन करीब 80 करोड़ लोगों का क्या जो स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं? उन्हें ‘डिजिटल इंडिया’ का लाभ कैसे मिल पाएगा? हिमालय की गोद में बसे क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत या नीलगिरी पहाड़ी जैसे क्षेत्रों तक ब्रॉडबैंड सेवाएं पहुंचाना काफी कठिन है। दुर्गम क्षेत्र होने की वजह से यहां ढांचा विकसित करना काफी खर्चीला है। मगर उपग्रह की मदद से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए  डिजिटल अर्थव्यवस्था तक पहुंच आसान बनाई जा सकती है। एक बार फिर कोविड महामारी की वजह से इन तकनीकों के लिए ढांचा तैयार करने की मांग जरूरी बढ़ गई होगी।
डिजिटल कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग: कोविड-19 से संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने में इस तकनीक को मिली-जुली सफलता मिली है। मगर सफलता और विफलता दोनों से सीख ली जा सकती है। यह इतना उपयोगी है कि तानाशाही शासन भी राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने के लिए डिजिटल माध्यम आधारित तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
जीपीटी-3: यह कार्यक्रम मनुष्य की तरह वार्तालाप करने की क्षमता के परीक्षण से गुजर चुका है। जेनेरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफॉर्मर-3 डीप लर्निंग (मशीन लर्निंग और कृत्रिम मेधा का एक प्रकार है जिसमें मनुष्य की तरह की कुछ खास चीजें सीखने का प्रयास किया जाता है) का इस्तेमाल कर स्वाभाविक भाषा शब्द तैयार कर सकता है। कभी-कभी यह तकनीक असफल भी हो जाती है। यह उन कठिनाइयों की तरफ भी ध्यान खींचता है जिनसे कृत्रिम मेधा पर शोध करने वाले शोधकर्ता जूझ रहे हैं।
हरित हाइड्रोजन: ग्रीन या हरित हाइड्रोजन जल्द ही वाणिज्यिक क्षेत्र के एक वास्तविकता बन सकता है। हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कम से कम कार्बन उत्सर्जन के साथ होता है। उदाहरण के लिए सौर बिजली की मदद से जल में विद्युत प्रवाहित कर इसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभक्त कर दिया जाता है। हाइड्रोजन का इस्तेमाल फ्यूल सेल्स तैयार करने में हो सकता है। इसके लिए हाइड्रोजन को ऑक्सीजन के साथ मिश्रित कर ऊर्जा प्राप्त की जाती है और इस प्रक्रिया के अंत में शुद्ध जल भी मिलता है। उद्योग जगत में हाइड्रोजन का इस्तेमाल तो हो रहा है मगर इसमें कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है। इसे देखते हुए हरित हाइड्रोजन के लिए संभावनाएं अधिक दिख रही हैं।
इलेक्ट्रिक वाहन: वाहन उद्योग के लिए पिछले दो वर्ष कठिन रहे हैं। चिप की कमी और मांग सुस्त रहने से वाहन उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। मगर अब कोविड महामारी के बीच शारीरिक दूरी अधिक से अधिक बरते जाने के बीच सस्ते दोपहिया वाहन और सार्वजनिक परिवहन की मांग अधिक हो गई है। भविष्य में ये दोपहिया वाहन बिजली से चलेंगे और इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।
टिकटॉक: भारत सरकार के प्रतिबंध के बावजूद टिकटॉक दुनिया का सबसे अधिक देखा जाने वाला ऐप बन चुका है। भारत सरकार के प्रतिबंध के बाद 45 करोड़ लोग टिकटॉक का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। टिकटॉक का सफर शानदार रहा है और अब शोधकर्ता एवं सोशल मीडिया कंपनियां यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि आखिर टिकटॉक कैसे यह सब कर पाया।
आपदा में आविष्कार
जब कभी कोई बड़ी त्रासदी आती है तो तकनीकी या सामाजिक बदलाव आते हैं। ब्यूबोनिक प्लेग के बाद श्रम सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई थी। श्रमिकों की कमी के बाद खेतिहर एवं कुशल कामगार अधिक से अधिक पारिश्रमिक पाने का अधिकार हासिल कर पाए। प्रथम विश्व युद्ध में जहरीली गैसों से हमलों के बाद नए कीटनाशकों का विकास हुआ। इसने गैर-परंपरागत नौकरियों में महिलाओं के प्रवेश के द्वार खोल दिए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बड़े बंदी शिविरों में लोगों को तरह-तरह से प्रताडि़त किए जाने के बीच कीमोथैरेपी का विकास हुआ और द्वितीय विश्व युद्ध से पेनिसिलिन जैसे ऐंटीबायोटिक का इस्तेमाल बढ़ता गया। रक्त चढ़ाने की तकनीक भी सामने आ गई। कंप्यूटरीकरण में बड़ी प्रगति के साथ ही रॉकेट, नाभिकीय ऊर्जा के इस्तेमाल के साथ रडार, फोर-व्हील ड्राइव आदि की भी खोज हो गई। अब कोविड-19 महामारी के दौरान भी कुछ नए प्रयोग हुए हैं।
 

First Published : January 19, 2022 | 11:07 PM IST