facebookmetapixel
सरकारी सहयोग मिले, तो एरिक्सन भारत में ज्यादा निवेश को तैयार : एंड्रेस विसेंटबाजार गिरे या बढ़े – कैसे SIP देती है आपको फायदा, समझें रुपी-कॉस्ट एवरेजिंग का गणितजुलाई की छंटनी के बाद टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या 6 लाख से कम हुईEditorial: ‘इंडिया मोबाइल कांग्रेस’ में छाया स्वदेशी 4जी स्टैक, डिजिटल क्रांति बनी केंद्रबिंदुबैलेंस शीट से आगे: अब बैंकों के लिए ग्राहक सेवा बनी असली कसौटीपूंजीगत व्यय में इजाफे की असल तस्वीर, आंकड़ों की पड़ताल से सामने आई नई हकीकतकफ सिरप: लापरवाही की जानलेवा खुराक का क्या है सच?माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में पहली बार बदला संचालन और अनुपालन का ढांचादेशभर में कफ सिरप कंपनियों का ऑडिट शुरू, बच्चों की मौत के बाद CDSCO ने सभी राज्यों से सूची मांगीLG Electronics India IPO: निवेशकों ने जमकर लुटाया प्यार, मिली 4.4 लाख करोड़ रुपये की बोलियां

राष्ट्र की बात: मोदी-भाजपा ने शुरू की 2029 की तैयारी!

शक्तिशाली नेता यह यकीन करते हैं कि वे उम्र और पुरानेपन से पार पा सकते हैं। शी चिनफिंग, जो बाइडन, डॉनल्ड ट्रंप, एर्दोआन और पुतिन ऐसे ही कुछ नाम हैं।

Last Updated- March 10, 2024 | 9:55 PM IST
Prime Minister Narendra Modi

अगर मैं आपसे कहूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस गति से यात्राएं कर रहे हैं, उद्घाटन कर रहे हैं, आधारशिला रख रहे हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों में भाषण दे रहे हैं उससे पता चलता है कि आम चुनावों का प्रचार अभियान शुरू हो चुका है तो आप यकीनन मुझसे कहेंगे कि इसमें बड़ी बात क्या है? आखिर हम सब जानते हैं कि चुनाव बहुत करीब आ चुके हैं।

यह अच्छा प्रश्न है लेकिन अंतर केवल यह है कि हम 2024 के प्रचार अभियान की बात नहीं कर रहे हैं। उन चुनावों में तो मोदी-शाह की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी जीत सुनिश्चित मान कर चल रही है। हम 2029 के चुनावों के प्रचार अभियान की बात कर रहे हैं। भाजपा के दो दिग्गज नेताओं के बयान इसका प्रमाण हैं।

पहला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दरभंगा में कहा देश से गरीबी मिटाने के लिए मतदाताओं को नरेंद्र मोदी को केवल तीसरे नहीं बल्कि चौथे कार्यकाल के लिए भी चुन लेना चाहिए। उसके बाद गृह मंत्री और भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार अमित शाह ने एक मीडिया आयोजन में कहा कि विपक्ष को अब 2034 के बाद के चुनावों की योजना बनानी चाहिए।

इन दोनों बयानों का यही अर्थ निकलता है कि मोदी 2029 में असाधारण रूप से लगातार चौथे कार्यकाल के लिए मैदान में होंगे। अगर आपको यह भ्रम है कि भाजपा में अभी भी 75 वर्ष की उम्र सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त होने की उम्र है तो ध्यान दीजिए कि 75 वर्षीय हेमा मालिनी को मथुरा से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारा गया है।

अगर आप भाजपा नेताओं से पूछेंगे तो वे कहेंगे, ‘आपसे किसने कहा कि उम्र की कोई सीमा है?’ चाहे जो भी हो, हेमामालिनी को टिकट मिलना इस बात का साफ संकेत है कि 75 वर्ष की कोई आयु सीमा नहीं है। अगर वह 75 वर्ष की आयु में चुनाव लड़ सकती हैं तो 79 की उम्र में मोदी क्यों नहीं लड़ सकते (2029 में वह 79 वर्ष के होंगे)। उस समय उनकी उम्र जो बाइडन की वर्तमान आयु से दो साल कम और डॉनल्ड ट्रंप की मौजूदा आयु से दो वर्ष अधिक होगी। अगर इस आयु में इनमें से कोई अमेरिकी राष्ट्रपति बन सकता है तो मोदी क्यों नहीं बन सकते?

राजनीति में उम्र की सीमा कब काम करती है? यहां तक कि चीन के कम्युनिस्ट जिन्होंने अपने नेतृत्व को युवा बनाने के लिए सख्त आयु सीमा लागू की है, उन्होंने भी शी चिनफिंग के लिए नियमों को नए सिरे से लिख दिया है।

यहां मैं सन 2007 में आई फिल्म ‘जॉनी गद्दार’ में धर्मेंद्र के किरदार का उल्लेख करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं जहां उनका एक साथी आश्चर्यजनक ढंग से कहता है कि वह इतनी अधिक उम्र में ‘इतने बुरे’ काम कैसे कर लेते हैं। जवाब में धर्मेंद्र कहते हैं कि यह उम्र का नहीं, माइलेज का मामला है।

‘माइलेज’ वाले नेता मानते हैं कि वे हमेशा पद पर बने रह सकते हैं। शी, बाइडन, ट्रंप, एर्दोआन और पुतिन के उदाहरण सामने हैं और अब तो मोदी को भी इसमें शामिल करने के पूरे प्रमाण मौजूद हैं। 2029 में निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी के चौथे कार्यकाल का प्रचार देखने को मिलेगा।

अमित शाह और राजनाथ सिंह की बातों से भी अधिक प्रमाण इस बात में मिलते हैं कि मोदी फिलहाल कहां और कैसे चुनाव प्रचार कर रहे हैं और क्या कह रहे हैं? तमिलनाडु और केरल में मोदी जितना समय और ऊर्जा लगा रहे हैं वह इसका उदाहरण है।

सभी शंकालु और यहां तक कि द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के नेता भी दबी जुबान में यह स्वीकार करते हैं कि भले ही भाजपा तमिलनाडु में अपने दम पर कोई सीट नहीं जीत पाए लेकिन उसका मत प्रतिशत बहुत बढ़ेगा। कुछ अनुमानों के मुताबिक तो यह 15 से 17 फीसदी तक हो सकता है। भले ही पार्टी को एक भी सीट नहीं मिले लेकिन इतने वोट 2029 में उसे एक मजबूत दावेदार बनाएंगे।

देश में परिवार संचालित दलों का इतिहास बताता है कि तीसरी पीढ़ी के नेतृत्व संभालने तक सत्ता बहुत हद तक हाथ से निकल जाती है। कांग्रेस के नेहरू-गांधी परिवार से लेकर तमाम परिवारों पर नजर डाली जा सकती है। क्या उदयनिधि के अधीन द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम इसका अपवाद होगी?

अगर भाजपा अन्य परिवार संचालित दलों के प्रदर्शन को ध्यान में रखकर देखती है तो उसे तमिलनाडु में बहुत अधिक गुंजाइश नजर आती है। खासतौर पर द्रमुकवाद की दूसरी दावेदार अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक पहले से ही बंटी हुई है और सहारे से टिकी हुई है।

द्रमुक पर यकीन करने वाले कहते हैं कि वह केवल एक परिवार नहीं बल्कि एक विचारधारा है जिस पर उन्हें यकीन है कि वह किसी भी व्यक्ति से परे है। बहरहाल, वास्तव में भारतीय राजनीति में अब तक यह कारगर नहीं रहा है। विचारधारा को भूल जाइए। हमारे यहां तो धर्म भी परिवार आधारित पराभव को रोकने में नाकाम रहा है।
शिरोमणि अकाली दल का उदाहरण हमारे सामने है।

यह देश का इकलौता पूरी तरह धर्म आधारित दल है। इसके संविधान के मुताबिक इस पार्टी का अध्यक्ष किसी अमृतधारी सिख का होना अनिवार्य है। दूसरी पीढ़ी के तहत इसके अतीत और वर्तमान की तुलना करें तो पता चलता है कि परिवार आधारित होने के बाद इसमें कितनी गिरावट आई है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि मोदी क्यों 2029 में एक बार फिर शीर्ष पद के दावेदार होंगे।

केरल में उनके लिए और अवसर दे रहा है। भाजपा राज्य के ईसाइयों तक लगातार पहुंच बना रही है। वे कांग्रेसनीत संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन के प्रतिबद्ध मतदाता रहे हैं। इस गठबंधन के अन्य मतदाता वर्ग यानी मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच पुराने समय से शकोशुबहा रहे हैं।

अगर कुछ ईसाई भाजपा के खेमे में चले जाते हैं और कांग्रेस का पराभव देखकर मुस्लिम वाम मोर्चे की ओर चले जाते हैं तो भाजपा के पास बहुत अवसर होंगे। मोदी अभी इसी प्रत्याशा में प्रचार कर रहे हैं और उन नेताओं को शामिल कर रहे हैं जो कांग्रेस में हो सकते थे। उदाहरण के लिए कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ए के एंटनी और के करुणाकरन के बेटे और बेटी। 2029 में केरल के लिए यही उनका प्रचार अभियान है।

अगर भाजपा के तेजी से गठबंधन करने के सिलसिले पर नजर डालें तो एक दीर्घकालिक रुझान नजर आता है। आज भाजपा बहुत सावधानी से ऐसे साझेदार चुन रही है जो पहले से ही पराभव की ओर अग्रसर हैं, जो बहुत मोलभाव करने की स्थिति में नहीं हैं और जिनकी जगह भरने का काम भाजपा कर सकती है।

असम में भाजपा ने 2016 का चुनाव असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ साझेदारी में जीता। बाद में हुए बोडोलैंड ट्राइबल काउंसिल के चुनावों में उसने बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट का साथ छोड़ दिया और प्रमोद बोरो की युनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल के साथ गठबंधन कर लिया। 2022 में अत्यधिक कमजोर हो चुका बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट दोबारा भाजपा के साथ आ गया। असम गण परिषद भी अपने मूल कद की छाया मात्र बची है।

बिहार में भी ऐसा ही किया गया। भाजपा ने चिराग पासवान का इस्तेमाल नीतीश कुमार को कमजोर करने में किया। याद कीजिए खुद को मोदीजी का हनुमान कहने वाले चिराग ने जनता दल यूनाइटेड के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए थे। जब पार्टी जनता दल यूनाइटेड के सांसदों को तोड़ने के लिए प्रयासरत थी तो नीतीश के पास भाजपा के साथ वापस आने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था। आप कल्पना कर सकते हैं कि 2029 तक जनता दल यूनाइटेड की स्थिति क्या होगी?

आंध्र प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र हर जगह भाजपा स्थानीय साझेदारों के साथ ऐसा ही कर रही है। तेलुगू देशम पार्टी कमजोर होती जा रही है, दुष्यंत चौटाला की पार्टी लगभग समाप्त हो चुकी है शिव सेना बंट चुकी है और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नए घटक का भाजपा के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

अगर इन बातों को मिलाकर देखें तो आपको पता चलेगा कि हम क्यों कह रहे हैं कि मोदी और भाजपा ने 2029 का प्रचार शुरू कर दिया है। विपक्ष क्या कर सकता है? इस बारे में हम आने वाले सप्ताहों में बात करेंगे।

First Published - March 10, 2024 | 9:55 PM IST

संबंधित पोस्ट