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इस सप्ताह का विषय क्रिकेट नहीं बल्कि भारत के पड़ोस की भू-राजनीति है। यही वजह है कि इसकी शुरुआत क्रिकेट से हुई। भारत के आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के लिए पाकिस्तान जाने की कोई वजह नहीं है। इस मामले में सभी दबावों को नकारा जाना चाहिए। इसका इकलौता समझदारी भरा हल होगा जगह में बदलाव। यह उदारवाद, उग्रवाद, राष्ट्रवाद, मित्रता या शत्रुता अथवा सार्क (अब कोई पूछ सकता है कि यह क्या था) को पुनर्जीवित करने का मुद्दा नहीं है। यह एक कट्टर क्रिकेट प्रशंसक की क्रूर लेकिन व्यावहारिक बात है। इस समय पाकिस्तान जाकर क्रिकेट खेलना भारत, पाकिस्तान या क्रिकेट के खेल, किसी के लिए अच्छा नहीं है। यकीनन कुछ किंतु-परंतु होंगे लेकिन इनका कोई महत्त्व नहीं।
पाकिस्तान का कहना है कि वे आईसीसी विश्व कप खेलने भारत आए थे और भारत भी अन्य देशों में उसके साथ खेलता है तो फिर पाकिस्तान में क्यों नहीं खेल सकता? इसका सीधा जवाब है कि उनका देश ऐसी बड़ी प्रतियोगिता की मेजबानी करने की स्थिति में ही नहीं है। यह दो देशों की बात नहीं है। खासकर तब जबकि वहां व्यापक लोकप्रियता और सड़कों पर ताकत रखने वाले एकमात्र राजनीतिक दल के अनुयायियों के बीच भारत-विरोधी भावना इतनी प्रबल हो गई है।
सन 1989 में कराची में एक दर्शक ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कृष्णमाचारी श्रीकांत की कमीज फाड़ दी थी। अब अगर वैसी घटना का एक छोटा हिस्सा भी हुआ तो यह बहुत विनाशकारी साबित हो सकता है। इससे दोनों के रिश्ते और खराब हो सकते हैं, चल रही प्रतियोगिता बाधित हो सकती है, और पाकिस्तान के साथ दुनिया में कहीं भी खेलने को लेकर भारत का रवैया और कड़ा हो सकता है।
अगर पाकिस्तानी सरकार अपनी ‘सड़कों’ तक पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है तो भारत में लोगों की राय नाजुक होनी ही है। पाकिस्तान और उसकी क्रिकेट को लेकर पुराना लगाव कमजोर पड़ चुका है। दोनों देशों और क्रिकेट के लिए यह अहम है कि हम जोखिम को कम करें।
भारतीय उपमहाद्वीप विश्व क्रिकेट का नया घर है जहां क्रिकेट देखने वाले कुल लोगों में से 95 फीसदी लोग रहते हैं लेकिन इसकी भूराजनीतिक स्थिति इस खेल की त्रासदी है। पाकिस्तान की राजधानी में हाल ही में एक शक्तिशाली प्रदर्शन हुआ है जिसमें लोगों की जानें भी गईं हैं। राजनीतिक अस्थिरता के कारण हाल ही में बांग्लादेश से आईसीसी विमेंस टी-20 वर्ल्ड कप की मेजबानी छीन ली गई और उसे संयुक्त अरब अमीरात को दे दिया गया। अफगानिस्तान के क्रिकेटर, जिनकी क्रिकेट भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे तेजी से सुधर रही है, पाकिस्तान में एक मैच नहीं खेल सकते। बल्कि उन्होंने खेला ही नहीं है।
पाकिस्तान इकलौता देश है जहां खेलने गए दूसरे मुल्क के क्रिकेटरों पर हमले किए गए। ऐसा एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार हुआ। 1989 में श्रीकांत से जुड़ी घटना के बाद 2009 में लाहौर में टेस्ट मैच के दौरान श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर आतंकी हमला हुआ था। बहरहाल तब से अब तक काफी सुधार हुआ है। टेस्ट खेलने वाले सभी प्रमुख देश पाकिस्तान खेलने जा रहे हैं और कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पाकिस्तान सुपर लीग में खेलते हैं। लेकिन मौजूदा अनिश्चित समय में भारतीय टीम के लिए वहां जाना काफी जोखिम भरा हो सकता है।
हम जानते हैं कि हमें बदले में क्या सुनने को मिल सकता है। दर्शकों और पत्रकारों के वीजा का मुद्दा, अहमदाबाद में भीड़ का पक्षपाती रवैया और बाबर आजम तथा मोहम्मद रिज़वान का विरोध। बदकिस्मती यह बताता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ किस तरह की समस्याएं हैं। कई बार जब कोई रिश्ता बहुत कमजोर होता है तो समझदारी इसी बात में होती है कि उन तत्वों को सामने नहीं आने दिया जाए जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि भारत और पाकिस्तान कम से कम ऐसी जगहों पर आईसीसी की प्रतियोगिताओं में एक-दूसरे के साथ खेलते रहें जो दोनों पक्षों के लिए सुरक्षित हों।
दुर्भाग्यवश ऐसा लगता है कि बांग्लादेश के साथ भी हम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं जहां हमारे पुरुष और महिला खिलाड़ियों ने हाल ही में अच्छे माहौल में क्रिकेट खेली है। यह सब बताता है कि हमारे पड़ोस में भूराजनीतिक हालात कितनी तेजी से कमजोर पड़ रहे हैं। पिछले सप्ताह आईपीएल की नीलामी में 12 बांग्लादेशी खिलाड़ी सूचीबद्ध थे लेकिन एक भी खिलाड़ी को नहीं चुना गया। आईपीएल की शुरुआत के बाद से आज तक ऐसा नहीं हुआ था। ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश के खिलाड़ी प्रतिभाशाली नहीं हैं, बात बस यह है कि अब हर कोई राजनीतिक जोखिम का आकलन करके चल रहा है। इसमें प्रशंसकों की भावनाओं को भी शामिल कर लीजिए।
इस क्षेत्र के बदलते भूराजनीतिक हालात को आईपीएल के जरिये भी महसूस किया जा सकता है। 26/11 के आतंकी हमले के पहले तक पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खूब पसंद किया जाता था और उनकी खूब मांग थी। उसके बाद जिस तरह पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की ओर से पश्चाताप देखने को नहीं मिला, उस बात ने टीम के घनघोर प्रशंसकों का भी दिल तोड़ दिया। अब बांग्लादेश भी उसी श्रेणी में आ गया है। हालांकि हम उम्मीद करते हैं कि यह अस्थायी होगा।
भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट के टूटे रिश्ते केवल क्रिकेट के बारे में नहीं बल्कि देशों की स्थिति के बारे में हैं। ये रिश्ते बहुत नाजुक हैं। पाकिस्तान 26/11 के हमले के बाद कभी गलती सुधारता नहीं दिखा। उस हमले के जिम्मेदार खुले घूम रहे हैं और 2019 के बाद से वे अगर कोई बड़ा हमला नहीं कर पाए हैं तो उसकी वजह है भारत द्वारा पुलवामा हमले का कड़ा प्रतिकार। उन्हें पता है कि भारत उनके देश में घुसकर बदला लेगा और भले ही जंग ही क्यों न करनी पड़ जाए।
भारत सरकार में या आम जनता में कोई इस बात पर यकीन नहीं करता है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को सरकारी नीति की तरह इस्तेमाल करना बंद कर दिया है। उसने अपने यहां मौजूद आतंकी ढांचे तक को नष्ट नहीं किया है। भारतीय जनता की इस धारणा के साथ पाकिस्तान के आईसीसी टूर्नामेंट की मेजबानी की बात तक खरी नहीं उतरती। वहां टीम भेजना साहस नहीं होगा बल्कि वह बेवकूफाना हरकत होगी। भारतीय टीम के सुबह पहुंचने और मैच खेलकर शाम को वापस लौटने जैसे विचार पूरे हालात को और खराब करने वाले होंगे।
गत 18 नवंबर को अमेरिकी रणनीतिक विद्वान और क्षेत्र विशेषज्ञ क्रिस्टोफर क्लैरी ने एक्स पर लिखा: ‘पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों खुद को ऐसे हालात में पाते हैं जहां मौजूदा सत्ता टिकाऊ नहीं नजर आती है और टिकाऊ सरकार बनाने की कोई मार्ग नजर नहीं आता।’
यह एक बात भारत की कठिनाई को रेखांकित करती है। हमारे पूर्व और पश्चिम में बड़े पड़ोसी देशों में अनिश्चितता बनी हुई है। वहां की सड़कों पर भारत-विरोध का माहौल है। पाकिस्तान में यह बात स्पष्ट है कि परदे के पीछे से कौन चीजों को चला रहा है। बांग्लादेश के बारे में तो हम पूरे भरोसे से यह भी नहीं कह सकते कि जनरल वकार उज-जमां बॉस हैं।
बांग्लादेश में जो शासन है वह अपने आप में विशिष्ट है। यह पहला मौका है जब स्वयंसेवी/एनजीओ क्षेत्र ने किसी देश का शासन संभाला है। वह 17.6 करोड़ की आबादी वाला देश है जिसमें 16 करोड़ मुस्लिम हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि मुहम्मद यूनुस अच्छे व्यक्ति हैं या बुरे। यह जरूर सोचा जा रहा है कि वह किस दिशा में जा रहे हैं और उनके बाद कौन। हिंदुस्तान का विरोध उन्हें वहीं तक ले जाएगा। इतिहास बताता है कि इन चीजों का अंत अच्छा नहीं होता।
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पहले ही आगे बढ़ रही है, सामाजिक संकेतक बेहतर स्थिति में हैं और उसकी प्रति व्यक्ति आय पाकिस्तान की आय के दोगुनी है। अंतत: वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा।
तब भारत इस रिश्ते को सुधारने के लिए और कड़ी मशक्कत करेगा। फिलहाल पाकिस्तान मुशर्रफ को हटाने के लिए हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। यही वजह है कि भारतीय टीम के दौरे को लेकर बचीखुची सद्भावना को जोखिम में डालना या राजनीतिक मुद्दा बनाना अभी भी शायद उसके हित में नहीं हो। चूंकि पाकिस्तान उर्दू को अपनी राष्ट्रीय भाषा कहता है इसलिए उचित होगा कि गुलज़ार की कुछ पंक्तियां उसके लिए पढ़ दी जाएं: सिर्फ एहसास है ये दूर से महसूस करो / प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।