हर साल कुछ ऐसे महीने होते हैं जब फिल्म कारोबार के खत्म होने की बातें शुरू हो जाती हैं। इस वर्ष की पहली छमाही भी कुछ ऐसी ही रही। लेकिन ठीक उसी वक्त जब मीडिया की रिपोर्ट में फिल्म उद्योग की इस परेशानी का जिक्र हो रहा था उसी दौरान आदित्य सरपोतदार की फिल्म ‘मुंज्या’ और नाग अश्विन की फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’आई। इन दोनों ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन का रिकॉर्ड बनाया। इसके साथ ही फिल्म कारोबार में फिर से रौनक आ गई।
इस साल पहली छमाही की नीरस शुरुआत के कई कारणों के साथ ही सबसे महत्त्वपूर्ण बात फिल्म की ओपनिंग के लिए खाली सप्ताहांत का मिलना है। भारत दुनिया में सबसे बड़े पैमाने पर फिल्म बनाता है और यहां वर्ष 2023 में करीब 1,800 फिल्में रिलीज की गईं।
अधिकांश वर्षों में फिल्म की संख्या 1,700 से 1,900 तक होती है लेकिन महामारी के वर्ष में यह अपवाद रहा। एक वर्ष में केवल 52 सप्ताहांत होते हैं, ऐसे में सवाल यह है कि इन 1,800 फिल्म में से कितनी फिल्म के रिलीज के लिए बेहतर सप्ताहांत मिल पाएगा, उन्हें दर्शक मिल पाएंगे और वे कमाई कर पाएंगी?
इन 52 सप्ताहांत में कई सप्ताहांत के दौरान बड़ी इवेंट जैसे कि क्रिकेट मैच, चुनाव, परीक्षाएं या फिर छुट्टियों को निकाल दें। इस तरह फिल्म रिलीज के लिए करीब 40 सप्ताहांत बचते हैं। अगर वर्ष 2023 में रिलीज हुई 1,800 फिल्म को 40 हफ्तों में बांट कर देखें तब हर हफ्ते 45 फिल्म रिलीज हो रही हैं। यह सभी भाषा की फिल्म के लिए है। इसका अर्थ यह है कि कुछ फिल्म महज तमिलनाडु या महाराष्ट्र या फिर पंजाब के बाजार के लिए हो सकती हैं। फिर भी कई फिल्म, बेहतर सप्ताहांत की तलाश में जूझ रही हैं ताकि इन्हें रिलीज का मौका मिल सके।
इत्तफाक से फिल्म के सबसे विकसित बाजार हॉलीवुड, में एक वर्ष में औसतन 500-600 फिल्म रिलीज होती हैं लेकिन यहां भी इसी तरह की दिक्कत दिखती है। इस साल अच्छे सप्ताहांत की होड़ में एड शीरन, लोलापलूजा, वीर दास और कई अन्य प्रदर्शनों के साथ लाइव इवेंट का उभरता बाजार भी जुड़ गया और इस तरह के शो सप्ताहांत के दौरान ही होते हैं। इसके अलावा 10 हफ्ते से अधिक समय तक चलने वाला इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) और करीब सात हफ्ते से अधिक समय तक चलने वाले आम चुनाव का आयोजन भी इसमें शामिल है। इस वजह से इस साल भारत के कई बाजारों में फिल्म रिलीज करने के लिए 30 सप्ताहांत से भी कम का समय बचा था।
यह सिर्फ फिल्म के बारे में नहीं है बल्कि फिल्म रिलीज करने के लिए उपयुक्त समय के सवाल का ताल्लुक पूरे 2.3 लाख करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार के लिए विचारणीय है। फिल्म की हिस्सेदारी 19,700 करोड़ रुपये के कुल राजस्व (बॉक्स ऑफिस, स्ट्रीमिंग एवं टीवी सहित) के साथ महज 8.5 प्रतिशत है। लेकिन इससे यह बात भी उजागर होती है कि फिल्म, शो, इवेंट, वीडियो की लगातार अधिकता आर्थिक बाधाएं भी ला रही हैं।
यदि आप फिल्म की पहचान या उसे खोज कर देखे जाने की समस्या का समाधान चाहते हैं तब किसी फिल्म के लिए रिलीज होने के लिए उपयुक्त समय (विंडो) का सवाल महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अगर किसी फिल्म की ओपनिंग किसी खाली सप्ताहांत में होती है तब इसके सफल होने का मौका होता है और यह आर्थिक रूप से या समीक्षकों के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
अगर कोई चीज देखी या सुनी नहीं जाती है तब इसके कमाई करने की संभावना खुद ब खुद कम हो जाती है। इस चुनौती का सामना संगीतकार, अभिनेता और लेखक कर रहे हैं, भले ही उनका काम बढ़ रहा है लेकिन उनकी आमदनी नहीं बढ़ती है।
इसके अलावा व्यवस्थित तरीके से फिल्म के रिलीज कैलेंडर का सवाल भी बना हुआ है। अगर फिल्म पूरे वर्ष एक नियमित अंतराल पर रिलीज होती रहें तब थियेटर और इससे जुड़े तंत्र में पैसा पर्याप्त रूप से बना रहेगा। अप्रैल और मई में आईपीएल और चुनाव के चलते ‘कल्कि’ सहित कई फिल्म की रिलीज टाल दी गई। इस वजह से सिनेमाघरों में दिखाने के लिए बेहद कम विकल्प बचा।
खाली सप्ताहांत के दौरान फिल्म रिलीज कराने या दिखाने के लिए लगी होड़ के साथ एक दूसरी विंडो की बात भी इसमें जोड़कर देखें। फिल्म के सिनेमाघरों में रिलीज होने और फिर बाद में टीवी, ओटीटी जैसे मंचों पर रिलीज होने के बीच के समय के अंतर को भी ‘विंडो’ कहा जाता है। किसी भी फिल्म द्वारा की जाने वाली कुल कमाई में से करीब दो-तिहाई कमाई के साथ, सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म वास्तव में फिल्म कारोबार की जीवनरेखा है। इनके चलते ही स्ट्रीमिंग या फिर टीवी की कीमतें भी तय होती हैं। जिन फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में ठीक नहीं होता है उसे अच्छी कीमत नहीं मिलती है।
भारत में सिनेमाघरों और स्ट्रीमिंग पर रिलीज के बीच की विंडो 8 हफ्ते की है और सिनेमाघरों और टीवी के बीच की विंडो 12 घंटे की है। दर्शक इसके बारे में जानते हैं और इसी वजह से छोटी और सामान्य पृष्ठभूमि वाली फिल्म को सिनेमाघरों में देखने चूकने के प्रति उदासीनता बनी होती है। इसकी वजह से ही धीमी गति वाली फिल्म को उनका हक मिलने का समय नहीं मिलता जैसे कि ‘12वीं फेल’या ‘लापता लेडीज’।
विधु विनोद चोपड़ा की ‘12वीं फेल’ चंबल से ग्वालियर और फिर दिल्ली तक की मनोज कुमार शर्मा की यात्रा की दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी दर्शाती है कि उन्होंने भीषण गरीबी की स्थिति में भी भारतीय पुलिस सेवा के लिए विभिन्न परीक्षाओं के लिए किस तरह प्रयास किया। यह फिल्म 2023 में आश्चर्यजनक तरीके से हिट हुई और इसे महज सिनेमाघर में रिलीज होने से 70 करोड़ रुपये मिले।
फिल्म उद्योग के जानकारों का मानना है कि अगर फिल्म को ओटीटी पर रिलीज नहीं किया गया होता तब तो सिनेमाघरों के जरिये ही फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 120-130 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर लेती। हालांकि फिल्म निर्माण के दौरान ही स्ट्रीमिंग कंपनियों के साथ कई करार हो जाते हैं क्योंकि फिल्म निर्माताओं को कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है इसलिए रिलीज की तारीखें अनुबंध का हिस्सा होती हैं।
यह केवल फिल्म के बारे में नहीं है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के लोकतंत्रीकरण ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। इसी वजह से दुनिया भर में शो, फिल्में और वीडियो की भरमार है। हमारे पास ‘सामग्री’का अंबार है लेकिन इन्हें देखने के लिए हमारे पास केवल 24 घंटे का ही वक्त है।
ऐसे में यूट्यूब पर कोई वीडियो डालने या स्ट्रीमिंग पर अधिक लागत वाले शो या फिल्में डालने सही वक्त कब मिलेगा? उद्योग के अंदरूनी सूत्र पहले से ही स्ट्रीमिंग मंचों द्वारा किसी शो या फिल्म की रिलीज को कम भीड़ वाले हफ्ते में लाने या आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। इससे आप उन दिनों को याद करने लगते हैं जब फिल्म को सिनेमाघरों में लगातार 25 हफ्ते तक चलने के बाद ही सिल्वर जुबली मनाई जाती थी और फिर यह फिल्म बहुत लंबे अंतराल के बाद तभी देखने को मिलती थी जब इसे दूरदर्शन पर दिखाया जाता था।