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आंतरिक नियंत्रण : मानवीय कारक

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 7:14 PM IST

मेरे कुछ पेशेवर दोस्तों ने आंतरिक नियंत्रण पर अपने पिछले कॉलमों में मेरी इस बात पर आपत्ति व्यक्त की कि हर कोई जन्म से ही लालची है।


उन्हें लगता है कि मैं कुछ गलत लोगों का जिक्र करके, उनके पूरे पेशेवर समुदाय को बदनाम करने की कोशिश करता हूं। सचमुच अगर हम लालच का मतलब किसी एक की अपनी इच्छाओं की पूरा करने से ले लें, वह भी बिना किसी कानून या नैतिकता का ध्यान रखते हुए, तो मैं मानता हूं कि मेरे वे दोस्त सही हैं और इन मायनों में वे लालची हैं।


लेकिन दूसरे मायनों में हम सभी लालची हैं, हम अपनी संस्थाओं में पहले से ही धारण की हुई संस्कृति, जीवन के लक्ष्यों, महत्वाकांक्षाओं और सही-गलत के दृष्टिकोण लेकर जाते हैं। एक बेहतर संस्था को वैसा ही आकार लेना चाहिए, जैसे कि व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षाओं और अभिलाषाओं को एक दिशा देता है।  एक पुराने सवाल कि ‘नजर रखने वालों पर नजर कौन रखेगा?’ के लिए हमारा जवाब होना चाहिए, ‘वे जो सही प्रेरणा और वातावरण दें।’


मानवीय कारक तो आंतरिक नियंत्रण प्रणाली के शुरु में आते हैं। अगर प्रबंधन-बेशक वे प्रमोटर हों या पेशेवर- अगर वे निवेशकों की दिलचस्पी का ख्याल नहीं रखेंगे, तब आंतरिक नियंत्रण प्रणाली भी इस तरह से नहीं बनाई गई कि वे निवेश की रक्षा कर सके।


उदाहरण के लिए, अगर एक कारोबारी समूह एक समूह कंपनी से दूसरी समूह कंपनी में संसाधन के आदान-प्रदान को कामकाज का सही तरीका मानती है तब कंपनी में लागू आंतरिक नियंत्रण प्रणाली छटने वाले निवेशक को प्रमोटरों से संसाधन वापस लेने से नहीं रोक सकता। संभवत: ऑडिट समिति को इस तरह के संसाधनों के आदान-प्रदान पर नजर रखनी चाहिए।


हालांकि, आम तौर पर, यह ऑडिट समिति की प्रभावकारिता पर निर्भर करता है, जो ऑडिट समिति के सदस्यों का प्रबंधन से स्वतंत्र होने पर निर्भर करता है। अगर ऑडिट समिति के सदस्य लालची (अगर बुनियादी चीजों के लिए नहीं तो आराम के लिए) हुए, तो समिति की प्रभाव डालने की क्षमता खत्म हो जाएगी।


पिछले कुछ दिनों से मीडिया लगातार क्षमता की हानि का जिक्र कर रही है, जो बड़ी संख्या में कंपनियां विदेशी बाजार डेरिवेटिव अनुबंधों में व्यय कर चुकी है। मीडिया रिपोर्टों से यह साफ हो रहा है कि कई कंपनियां इन अनुबंधों का आर्थिक आशय नहीं समझ पाई है और कंपनियों ने किसी प्रकार की जोखिम प्रबंधन प्रणाली लागू नहीं की है। इन खुले सौदे में हुए नुकसान का खुलासा करने के बारे में भी कई कंपनियों की इच्छा नहीं है।


इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने अब कंपनियों को खुले सौदे में होने वाले नुकसान की पहचान करने और उसका विवरण देने के निर्देश दिए हैं। क्या इस घटनाक्रम से आपको आंतरिक नियंत्रण की असफलता दिखाई देती है? जवाब है, हां। इन कंपनियों के प्रबंधकों ने निवेशकों की संपत्ति को अनुचित जोखिम में बिना किसी जोखिम प्रबंधन प्रणाली के और इन सौदों के आर्थिक आशय को समझे बिना ही लगा दिया।


उन्होंने इन सौदों से होने सकने वाले नुकसानों की अनदेखी कर और उनका विवरण न बता कर निवेशक के लिए जोखिम और भी बढ़ा दिया। यह साफ तौर पर वित्तीय रिपोर्ट और जोखिम की पहचान और प्रबंधन के प्रति आंतरिक नियंत्रण में कमी का दिखाता है। प्रबंधकों का निवेशकों के पैसों को दांव पर लगाना भी एक तरह का लालच ही है, जो आंतरिक नियंत्रण को बेअसर कर देता है।


कानून भी निवेशकों को गलत कारोबारी निर्णय लेने से नहीं बचा सकत। ये काफी दिलचस्प है कि पूर्व एनरॉन कॉर्प के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैफरी स्किलिंग के वकील ने स्किलिंग को दी गई सजा के खिलाफ दायर कीर् गई अपील में ‘ऑनेस्ट सर्विसेस’ का सिध्दांत बताया। इस सिध्दांत के उनसार कंपनी के कर्मचारी ईमानदारी से सेवाएं देने के लिए बाध्य हैं और वे कंपनी के फायदे के आगे अपने फायदे नहीं रख सकते।


इसका दूसरा पहलू इस तरह से है, अगर एक कर्मचारी जो उसकी कंपनी चाहती है वैसा करता है और उससे खुद को मुनाफा नहीं होता तो कहा जा सकता है कि उसने कंपनी से अपनी ‘ऑनेस्ट सर्विसेस’ को नहीं छीना है और इसलिए उसके कामों के लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता, बेशक उसके कामों से निवेशकों को नुकसान क्यों न हुआ हो।


एक कर्मचारी से कंपनी तभी उसकी (ऑनेस्ट सर्विसेस) छीनती है, जब वह किसी छल-कपट या गबन में शामिल है और उसके काम कंपनी के लक्ष्य से मेल नहीं खाते। एनरॉन  मामले में अपील प्राधिकारी ने ‘ऑनेस्ट सर्विसेस’ के सिध्दांतों पर आधारित एनरॉन-संबंधी दृढ़ धारणाओं को पलट कर रख दिया।


आंतरिक नियंत्रण के असर  प्रबंधन द्वारा कंपनी के लिए तय संस्कृति पर भी निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी बढ़िया प्रमोशन नीतिया और प्रोत्साहन योजनाएं नहीं चलाती और सिर्फ उन्हीं कर्मचारियों को फल देती है जो अपने उच्च अधिकारियों की हां में हां मिलाते हैं, फिर बेशक उनके और कंपनी के उद्देश्य अलग क्यों न हों, यहां पर कहा जा सकता है कि यह आंतरिक नियंत्रण का उल्लंघन है।


ठीक ऐसा ही वर्ल्डकॉम के साथ भी हुआ था, आंतरिक नियंत्रण ऐसे में काम करना बंद कर देगा, अगर उच्च प्रबंधन आवाज उठाने वाले कर्मियों को सुरक्षा मुहैया न करा सके। ऐसे में सिर्फ नीति के रूप में लिखे गए शब्द ही सुरक्षा के लिए काफी नहीं हैं, प्रबंधन को खुद चाहिए कि वे अपने कर्मचारियों को ऐसा वातावरण दें, जहां वे खुद आगे बढ़कर आंतरिक नियंत्रण के उल्लंघन और छल-कपट की गतिविधियों के मामले सामने ला सकें।

First Published : April 7, 2008 | 1:26 AM IST