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अंतरिम बजट अनुमान पुरानी गलतियों से बचें

वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट अनुमान में पारदर्शिता, विवेक और सावधानी की मानक प्रथाओं का अनुपालन होना चाहिए। विस्तार से बता रहे हैं ए के भट्‌टाचार्य

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- September 28, 2023 | 10:12 PM IST

आज से करीब एक पखवाड़े बाद केंद्रीय वित्त मंत्रालय 2024-25 के बजट की कवायद आरंभ कर देगा। वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान और 2024-25 के बजट अनुमान को अंतिम रूप देने के लिए बजट पूर्व चर्चा 10 अक्टूबर से 14 नवंबर तक वित्त मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक स्थित मुख्यालय में होगी।

सभी प्रमुख केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि इन बैठकों में हिस्सा लेंगे और वित्त मंत्रालय को यह आकलन करने में मदद करेंगे कि चालू वर्ष में राजस्व और व्यय के मोर्चे पर संशोधित अनुमान कैसा होना चाहिए। अहम बात यह है कि ये बैठकें 2024-25 की विभिन्न योजनाओं के लिए व्यय प्रावधानों की प्रकृति के बारे में भी इशारा देंगी। हालांकि आम चुनाव के पहले पेश किया जाने वाला अगला बजट लेखा अनुदान होगा लेकिन अगले कुछ महीनों में होने वाली बजट पूर्व कवायदों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

किसी भी बजट संबंधी कवायद में सरकारी राजस्व और व्यय का ऐसा अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए जो हकीकत से दूर हो। न ही इन अनुमानों को वास्तविक आंकड़ों से दूर होना चाहिए। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण फरवरी 2024 में अंतरिम बजट पेश करेंगी।

यह याद रहे कि पांच वर्ष पहले लगभग इसी समय ऐसी ही एक कवायद की गई थी जिसने एक राजकोषीय समस्या को जन्म दे दिया था। वर्ष 2018-19 के लिए सकल कर राजस्व का संशोधित अनुमान 1 फरवरी, 2019 को प्रस्तुत बजट में 22.48 लाख करोड़ रुपये तय था और कुल सरकारी व्यय 24.57 लाख करोड़ रुपये होना था।

महज चार महीने बाद इस अनुमान को कम करके सकल कर राजस्व के लिए 20.8 लाख करोड़ रुपये और कुल व्यय के लिए 23.15 लाख करोड़ रुपये करना पड़ा। बहरहाल अर्थव्यवस्था के आकार में बेहतरी के संशोधन के बाद राजकोषीय घाटे संबंधी आंकड़े प्रभावित नहीं हुए। चाहे जो भी हो परंतु राजस्व के कम आंकड़ों ने सरकार को व्यय में कटौती करने पर विवश किया है ताकि घाटे के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

समस्या उस समय और बिगड़ गई जब 2019-20 का अंतिम बजट जुलाई 2019 के पहले सप्ताह में पेश किया गया। हालांकि वित्त मंत्रालय ने सरकारी राजस्व और व्यय के प्रारंभिक तौर पर अंकेक्षित खातों का आकलन किया था लेकिन 2019-20 के पूर्ण बजट में 2018-19 के संशोधित आंकड़ों का इस्तेमाल करने की बात तय की गई जो अंतरिम बजट में दिए गए थे। उसने इसी आधार पर 2019-20 के प्रावधान पेश किए।

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इस बात ने 2019-20 के आंकड़ों को हासिल करने के काम को और कठिन बना दिया। ऐसे में बजट पूर्व कवायद में एक वर्ष हुई गलती ने लगातार दो बजटों के आंकड़ों को प्रभावित किया। इसलिए अगले माह की कवायद में किसी भी तरह के रोमांच से बचना होगा और 2023-24 को लेकर राजस्व एवं व्यय के क्षेत्र में अतिमहत्त्वाकांक्षी अनुमान नहीं लगाने होंगे।

सरकार के लिए यही समझदारी भरा होगा कि संशोधित अनुमानों के साथ सीमित वादे किए जाएं और वास्तविक आंकड़े पेश होने पर अच्छा प्रदर्शन किया जाए। इससे चुनाव के बाद पेश होने वाले 2024-25 के अंतिम बजट के लिए हकीकत के अधिक करीब व्यय और राजस्व आंकड़े पेश करने में भी मदद मिलेगी। निश्चित तौर पर जुलाई 2019 के बाद पेश किए गए आम बजटों में ऐसा कम हुआ और अनुमान हकीकत के करीब रखे जाने लगे। बीते चार बजटों में भी सरकार द्वारा व्यय की फंडिंग को लेकर पारदर्शिता बरती गई।

परंतु आगामी बजट की कवायद अलग होगी और जरूरत इस बात की है कि वित्त मंत्रालय पारदर्शिता बरते, समझदारी दिखाए और सतर्क रहे। मिसाल के तौर पर उसे यह बात समझनी चाहिए कि अंतरिम बजट की सामग्री और उसका चरित्र बीते कुछ वर्षों में बहुत हद तक बदल चुका है। बीते चार अंतरिम बजट में से कम से कम तीन में योजनाओं अथवा कराधान उपायों की बड़ी घोषणाओं की घोषणा करने से बचा गया है।

2004 और 2014 के अंतरिम बजटों में यह परंपरा निभाई गई है कि किसी तरह के नीतिगत या प्रस्तावित कर बदलाव को लेकर घोषणा न की जाए, हालांकि उनका प्रभाव कम ही रहा। 2019 के अंतरिम बजट में दो बड़ी घोषणाएं की गईं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के माध्यम से दो हेक्टेयर से कम जोत वाले हर किसान परिवार को 6,000 रुपये प्रति माह देने की शुरुआत की गई। बाद में इसका विस्तार करके लगभग सभी किसान परिवारों को इसमें शामिल कर लिया गया। इसके अलावा 5 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले व्यक्तिगत करदाताओं को पूरी कर राहत प्रदान की गई।

ऐसे में उम्मीद यही है कि वर्ष 2024 के अंतरिम बजट में भी उन्हीं परंपराओं का पालन किया जाएगा और कर राहत तथा बड़ी योजनाओं की घोषणा की जाएगी। व्यक्तिगत करदाताओं की बात करें तो उन्हें फरवरी 2019 के तर्ज पर कुछ और राहत प्रदान की जा सकती है। छोटी कंपनियों पर वित्तीय दबाव को देखते हुए कर रियायत का एक नया पैकेज भी सामने आ सकता है।

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वित्त मंत्रालय पर राजनीतिक दबाव भी होगा कि वह किसान परिवारों को आय समर्थन की राशि बढ़ाए ताकि बीते पांच वर्षों में बढ़ी मुद्रास्फीति का मुकाबला किया जा सके। यदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण को दिसंबर 2023 से आगे बढ़ाया गया (जिसकी बहुत संभावना है) तो 2024 के अंतरिम बजट में भी इसके लिए आवश्यक प्रावधान करना होगा।

आवास ऋण के लिए भारी सब्सिडी की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अगले कुछ वर्षों तक करीब 60,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। सब्सिडी योजना को भी फंडिंग की आवश्यकता होगी क्योंकि घरेलू गैस की खुदरा कीमतें कम की जा चुकी हैं और उर्वरक कीमतों में इजाफा होने से उर्वरक सब्सिडी बढ़ानी होगी।

ऐसी कर राहत ओर अतिरिक्त व्यय की सूची लंबी हो सकती है। आश्चर्य नहीं कि वित्त मंत्रालय की टीम पर काफी दबाव हो सकता है। उसे घाटे को भी नियंत्रण में रखना है और व्यय में इजाफे को भी संभालना है। वित्त मंत्रालय पर अतिरिक्त आशावादी बजट पेश करने का दबाव आ सकता है। ऐसा इस उम्मीद में किया जा सकता है कि आम चुनाव के बाद पेश किए जाने वाले अंतिम बजट में इसे सुधारा जा सकेगा।

परंतु ऐसे अवसर आते नहीं हैं। हम 2019 में यह देख चुके हैं। राजस्व अनुमानों में उदारता बरतने से हर हाल में बचा जाना चाहिए। एक फरवरी को बजट पेश करने की नई परंपरा ने पूरे वर्ष के लिए राजस्व अनुमान लगाना मुश्किल कर दिया है। जब राजस्व और व्यय अनुमान अंतरिम बजट के लिए पेश किए जाने हों तो यह अहम है कि उनकी शुद्धता बरकरार रखी जाए।

First Published : September 28, 2023 | 10:12 PM IST