Categories: लेख

विज्ञान और नवाचार की आपसी संबद्धता

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 6:28 PM IST

आम मान्यता कहती है कि वैज्ञानिक शोध से अविष्कार होते हैं। इन आविष्कारों से नयी तकनीकों का विकास होता है और ये नयी तकनीक उत्पाद एवं बाजार की मदद करती हैं। नवाचार का यह रेखीय मॉडल एकदम साधारण है लेकिन उसका यह साधारणपन खतरनाक भी है। वैज्ञानिक शोध वास्तव में औद्योगिक नवाचार में बहुत सीमित भूमिका निभाता है। तकनीक का लक्ष्य मनुष्य की व्यावहारिक संभावनाओं का विस्तार करना होता है। विज्ञान का लक्ष्य है प्रकृति के बारे में समझ बढ़ाना। तकनीक या इंजीनियरिंग के मूल में उपयोगिता है। एक नये तरह के विकास से ज्ञान मिल सकता है लेकिन वह तकनीक का उद्देश्य नहीं है। इसी प्रकार शोध का लक्ष्य है नया ज्ञान हासिल करना। विकास का लक्ष्य है एक नया उत्पाद या सेवा तैयार करना। इन अवधारणाओं को सही ढंग से समझा जाए तो कंपनियों तथा सार्वजनिक शोध को कई बेकार कामों से बचाया जा सकता है।
औद्योगिक नवाचार में शोध की भूमिका: स्टैनफर्ड में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर स्टीव क्लाइन ने नवाचार के एक शृंखला संबद्ध मॉडल की मदद से साधारण रेखीय मॉडल को प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया। यहां कुछ बातें ध्यान देने लायक हैं। नवाचार की शुरुआत और उसका अंत दोनों बाजार के साथ होते हैं। डिजाइनिंग और परीक्षण इसकी मूल गतिविधियां हैं। तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान नवाचार में अहम भूमिका निभाते हैं। जब मौजूद ज्ञान समस्या निवारण के लिए पर्याप्त नहीं होता है तब शोध किया जाता है। समस्या समाधान के लिए केवल ज्ञान पर्याप्त नहीं है। उसके लिए नया ज्ञान आवश्यक है।
जैव प्रौद्योगिकी तथा सेमीकंडक्टर जैसे कुछ क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए वैज्ञानिक शोध आवश्यक हैं। तकनीकी उन्नति में वैज्ञानिक शोध की अहम भूमिका है। विज्ञान आधारित उद्योगों की तकनीकी प्रगति तथा नये तकनीकी क्षेत्रो में नवाचर में भी ऐसे शोध की अहम भूमिका है। दुनिया भर की हजारों शोध एवं विकास संस्थाएं अन्य संस्थाओं से सीखते हुए शुरुआत करती हैं तथा अपने उत्पादों को सुधारती हैं। इसके बाद ही शोध का इस्तेमाल नया ज्ञान तैयार करने में होता है। संस्थान के भीतर होने वाला शोध सार्वजनिक शोध प्रणाली के उत्पादन के इस्तेमाल की पूर्व शर्त होता है। यानी अगर कंपनियां शोध एवं विकास में निवेश करने में पर्याप्त सक्षम हों तो सार्वजनिक वैज्ञानिक शोध उचित है। इसके अलावा सार्वजनिक वैज्ञानिक शोध औद्योगिक नवाचार के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
केनेथ एरो तथा रिचर्ड नेल्सन ने छह दशक पहले वैज्ञानिक शोध में सार्वजनिक सब्सिडी को लेकर दलील तैयार की थी। उन्होंने कहा था कि समाज शोध में कम निवेश करता है क्योंकि उसके लाभ स्पष्ट नहीं होते। ऐसा इसलिए कि शोध के नतीजे अनिश्चित होते हैं। यही नहीं नयी खोज के लाभ निवेशक के साथ-साथ अन्य लोगों तक भी जाने की पूरी संभावना रहती है। शोध के नतीजों की अनिश्चितता के कारण सरकारी फंडिंग को उचित ठहराना जारी रहता है।
मेरे पास अंतिम आधिकारिक आंकड़े 2019 के हैं और उस वर्ष भारत सरकार ने 18 अरब डॉलर के राष्ट्रीय शोध एवं विकास के करीब 63 फीसदी हिस्से की फंडिंग की। इसमें करीब 7 फीसदी हिस्सेदारी विश्वविद्यालयों की है। 56 प्रतिशत हिस्सेदारी स्वायत्त सरकारी शोध एवं विकास प्रयोगशालाओं में होता है। मैंने हाल ही में उस सरकारी तकनीकी शोध के बारे में भी लिखा है जो रक्षा क्षेत्र के लिए हो रहा है। इसमें से करीब 10 प्रतिशत सार्वजनिक फंडिंग वाला वैज्ञानिक शोध है जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की  वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध परिषद की ओर लक्षित है। उद्योग एवं उच्च शिक्षा व्यवस्था के बजाय स्वायत्त प्रयोगशालाओं में सरकारी फंडिंग वाले शोध की तलाश करने के क्रम में हम एक बड़ा अवसर गंवा देते हैं। संदेश एकदम साफ है: सार्वजनिक फंडिंग वाले वैज्ञानिक शोध की राह मजबूत है लेकिन ऐसा शोध उच्च शिक्षा व्यवस्था के तहत होनी चाहिए न कि स्वायत्त प्रयोगशालाओं में।
सार्वजनिक शोध में प्रतिभा महत्त्वपूर्ण: कई लोग सोचते हैं कि शोध विश्वविद्यालय नयी वैज्ञानिक समझ का प्रमुख स्रोत हैं। यह सच भी है। स्टैनफर्ड को सिलिकन वैली तथा उसकी तकनीकी कंपनियों की सफलता में अहम योगदान करने वाला माना जाता है। यह विश्वविद्यालय इस प्रतिष्ठा का पात्र है लेकिन मेरी दृष्टि में स्टैनफर्ड के शोध निष्कर्षों भर को श्रेय नहीं मिलना चाहिए। अगर दुनिया ने 125 वर्षों में स्टैनफर्ड के शोध नतीजों का कोई लाभ नहीं देखा होता तो शायद ज्यादा बुरी बात होती लेकिन यहां अहम शोध नतीजे नहीं बल्कि छात्र हैं। स्टैनफर्ड ने दुनिया की कई दिग्गज कंपनियों की स्थापना की हैं जिनमें प्रमुख हैं: ह्यूलिट पैकर्ड, वैरियन, गूगल, याहू, उबर, ट्विटर, ऐपल वगैरह। इन कंपनियों ने अर्थव्यवस्था में इतना अधिक योगदान किया है कि उसके आगे स्टैनफर्ड के शोध से मिला योगदान पीछे रह जाएगा। वहीं हजारों स्नातकों ने अर्थव्यवस्था, विज्ञान, साहित्य तथा अन्य विषयों में जो योगदान किया है उसका मूल्य इन बड़ी कंपनियों के योगदान से भी आगे है। हर महान विश्वविद्यालय के बारे में यही बात कही जा सकती है।
हमारे पास विश्वस्तरीय शोध को शिक्षण से जोड़ने के कुछ उदाहरण मौजूद हैं। बेंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान खासतौर पर अलग है। परंतु मुंबई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नॉलजी जिसे उसके पुराने नाम यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल टेक्नॉलजी अर्थात यूडीसीटी से अधिक जाना जाता है, वह सबसे उल्लेखनीय उदाहरण है। यूडीसीटी की स्थापना सन 1933 में की गई थी। संस्थान को अपने शोध पर गर्व है लेकिन इसके साथ ही जरा इस बात पर भी विचार कीजिए कि उसने अपने पुराने विद्यार्थियों की मदद से क्या योगदान किया। पुराने विद्यार्थियों की सूची पर एक नजर डालते हैं: मुकेश अंबानी (रिलायंस), अंजी रेड्डी (डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज), मधुकर पारेख (पिडिलाइट इंडस्ट्रीज), के के घार्दा (घार्दा केमिकल्स), अश्विन दानी (एशियन पेंट्स), नीलेश गुप्ता (ल्युपिन), रमेश माशेलकर (एनसीएल के निदेशक और सीएसआईआर के डीजी), एन सेकसरिया (अंबुजा सीमेंट्स) और एमएम शर्मा (जिन्होंने बाद में खुद यूडीसीटी का नेतृत्व किया और उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा स्थापित की)। सन 1800 के आरंभ में जब विल्हेम वॉन हंबॉल्ड ने दुनिया के पहले शोध विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन के स्थापना सिद्धांत दिए तब से शोध विश्वविद्यालयों का लक्ष्य ज्ञान की तलाश करना रहा है। हमें यह बात इसमें शामिल करनी होगी कि ज्ञान खासतौर पर मानवता के काम तब आता है जब वह विश्वविद्यालय से बाहर छात्रों के मस्तिष्क में विराजमान होता है। यही कारण है कि उच्च शिक्षा में शोध किया जाना चाहिए। स्वायत्त प्रयोगशालाओं में शोध समाज को उसके प्राथमिक लाभ से वंचित करता है। जैसा कि स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय के मानद प्रेसिडेंट गेरहार्ड कैस्पर ने दिल्ली में अपने एक भाषण में कहा भी था, ‘एक विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाला शोध ज्ञान के हस्तांतरण के लिए आज भी सबसे अच्छा योगदान बेहतरीन शिक्षा पाने वाले छात्रों के रूप में कर सकता है।’
(लेखक फोर्ब्स मार्शल के सह-चेयरमैन, सीआईआई के पूर्व अध्यक्ष और सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी इनोवेशन ऐंड इकनॉमिक रिसर्च के चेयरमैन हैं)

First Published : June 4, 2022 | 12:26 AM IST