मई महीने के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े जब पिछले महीने जारी हुए, तो सभी चौंक गए। वजह थी, विकास दर के आंकड़े, जो 4 प्रतिशत से भी कम थे।
बेशक, यह गिरावट अटकलों से ज्यादा थी और इस बात की ओर इशारा भी कर रही थी कि महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए मौद्रिक नीतियों में जो कडाई बरती जा रही है, उसका सीधा असर विकास की रफ्तार पर पड़ रहा है। इससे भी बडी बात यह है कि इन नीतियों से महंगाई पर अंकुश लगाने में कोई मदद भी नहीं मिल रही है।
इन कड़ी मौद्रिक नीतियों से महंगाई को नियंत्रित करने में कितनी मदद मिलेगी, यह तो आनेवाला वक्त बताएगा, लेकिन इसने मौजूदा मौद्रिक नीतियों के समर्थकों और विरोधियों के बीच एक बहस जरूर छेड़ दी है। हालांकि, उद्योग संगठनों सीआईआई और फिक्की ने उत्पादकों के जो सर्वेक्षण किए, उनके नतीजे कुछ और ही बताते हैं।
दोनों संगठनों के सर्वेक्षणों में इस धारणा को सिरे से खारिज कर दिया गया है कि औद्योगिक विकास की रफ्तार धीमी हो रही है। आईआईपी के आंकड़ों के ठीक उलट, दोनों सर्वेक्षणों में कहा गया है कि अप्रैल से जून की तिमाही के दौरान कई औद्योगिक क्षेत्रों में 10 फीसद से भी ज्यादा की दर से विकास हुआ। सीआईआई के सर्वेक्षण में 100 औद्योगिक क्षेत्रों में से 47 चुनीर् गईं और यह पता चला कि उनमें 10 फीसद से ज्यादा की रफ्तार के साथ इजाफा हुआ।
सर्वेक्षण में शामिल कई दूसरी बड़ी कंपनियों ने भी साफगोई से बताया कि उनके उत्पादन में 10 फीसद बढ़ोतरी दर्ज की गई है। हालांकि सीआईआई के सर्वेक्षण में शामिल 21 औद्योगिक क्षेत्र ऐसे भी थे, जिनके उत्पादन में इस तिमाही के दौरान गिरावट दर्ज की गई। लेकिन कुल मिलाकर तस्वीर उतनी धुंधली नहीं थी, जितनी आईआईपी के आंकड़ों से नजर आ रही थी। फिक्की के सर्वेक्षण में भी कमोबेश यही नतीजा निकला। उसके मुताबिक साल भर में औद्योगिक उत्पादन में विकास की दर लगभग 9.5 प्रतिशत रहेगा।
हालांकि इस बात पर सवाल खड़ा किया जा सकता है कि ये सर्वेक्षण असलियत के कितने करीब हैं और उद्योगों की असली तस्वीर दिखाते हैं या नहीं। लेकिन आलोचना की यही बौछार आईआईपी पर भी की जाती है, जो इस बात की गारंटी बिल्कुल भी नहीं दे सकता कि हर महीने उसे एक समान कंपनियों से ही उत्पादन आंकड़े मिलते हैं और कंपनियां महीना दर महीना बदल नहीं जातीं। सर्वेक्षण में शामिल कंपनियां अपने मौजूदा और भावी प्रदर्शन और नतीजों के कारकों के बारे में जो कुछ सोचती हैं, उसका आकलन करने के मामले में ये सर्वेक्षण आईआईपी से एक कदम आगे ही निकल गए।
इस नजरिए से अगर देखा जाए, तो फिक्की के सर्वे में कहा गया है कि उत्पादकों को लंबी अवधि के फायदे के लिए आशान्वित होना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में अधिग्रहण और गठजोड़ की परिपाटी के जरिये भी महत्वपूर्ण निवेश आकर्षित होती रहेगी।
कहने का अभिप्राय है कि पिछले कुछ सालों में जो बूम की परिकल्पना थी, वह कमोबेश बरकार रहेगी। लंबी अवधि के उपभोक्ता उत्पादों की मांग भी जोरदार रहेगी, क्योंकि इन वर्षों में आय में काफी बढ़ोतरी हो रही है। अगर भारतीय रिजर्व बैंक आईआईपी के बजाय इन आंकड़ों पर ज्यादा ध्यान देता, तो ब्याज दरों और सीआरआर पर अपने फैसलों में उसे निश्चित रूप से घाटा महसूस होता।